शादी के लिए ही नहीं, लिव-इन-रिलेशनशिप के लिए भी… धर्मपरिवर्तन जरूरी, हाईकोर्ट ने क्यों कही ये बात?

हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अभी तक अधिनियम की धारा 8 और 9 के प्रावधानों के अनुसार, धर्मांतरण के लिए आवेदन नहीं किया है. इसलिए याचिकाकर्ताओं के रिश्ते को कानून के प्रावधानों के उल्लंघन में संरक्षित नहीं किया जा सकता है. पढ़ें हाईकोर्ट ने अपने आदेश में और क्या-क्या कहा…
प्रयागराज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में कहा है कि यूपी धर्मांतरण कानून न केवल शादी पर बल्कि लिव-इन रिलेशनशिप पर भी लागू होता है. न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल ने पुलिस सुरक्षा के लिए एक अंतर-धार्मिक जोड़े की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि धर्म परिवर्तन न केवल विवाह के उद्देश्य के लिए आवश्यक है, बल्कि यह विवाह की प्रकृति के सभी रिश्तों में भी आवश्यक है और इसलिए उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 विवाह या लिव-इन रिश्तों पर लागू होता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम जो 5 मार्च, 2021 को लागू हुआ उसने अंतरधार्मिक जोड़ों के लिए इसके प्रावधानों के अनुसार, धर्म परिवर्तन करना अनिवार्य बना दिया है. इसमें कहा गया है कि मौजूदा मामले में माना जाता है कि किसी भी याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 8 और 9 के अनुसार, धर्म परिवर्तन के लिए आवेदन नहीं दिया है. हाईकोर्ट ने अधिनियम की धारा 3(1) के स्पष्टीकरण का भी उल्लेख किया जो कहती है कि कोई भी व्यक्ति गलत बयानी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, बल का प्रयोग या अभ्यास करके किसी अन्य व्यक्ति को सीधे या अन्यथा एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा.
कोर्ट ने आगे कहा कि इस कानून के तहत कोई भी व्यक्ति इस तरह के धर्मांतरण के लिए उकसाएगा, मनाएगा या साजिश नहीं करेगा. कोर्ट ने आगे कहा कि यह कानून स्पष्ट करता है कि विवाह या विवाह की प्रकृति के संबंध में किसी कारणवश धर्म परिवर्तन को इसमें शामिल माना जाएगा. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अभी तक अधिनियम की धारा 8 और 9 के प्रावधानों के अनुसार, धर्मांतरण के लिए आवेदन नहीं किया है. इसलिए याचिकाकर्ताओं के रिश्ते को कानून के प्रावधानों के उल्लंघन में संरक्षित नहीं किया जा सकता है. कानून स्पष्ट है और यह आदेश देता है कि न केवल अंतरजातीय विवाह के मामलों में बल्कि विवाह की प्रकृति के रिश्तों में भी धर्म परिवर्तन की आवश्यकता है. इसमें कहा गया है कि इसलिए जब कानून बहुत स्पष्ट हो तो अदालतों को किसी भी अर्थ में कानून की व्याख्या करने से बचना चाहिए.
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने एक प्रासंगिक मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भी भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि एक जोड़े को शादी करने के लिए कानूनी उम्र होनी चाहिए और अविवाहित होने सहित कानूनी विवाह में प्रवेश करने के लिए योग्य होना चाहिए और उन्हें महत्वपूर्ण अवधि के लिए जीवनसाथी के समान होना चाहिए. 5 मार्च के अपने आदेश में हाईकोर्ट ने कहा था कि इस न्यायालय के समक्ष संयुक्त खाते, वित्तीय सुरक्षा, संयुक्त संपत्ति या संयुक्त व्यय का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया है. याचिकाकर्ताओं ने अब तक धर्मांतरण के लिए आवेदन नहीं किया है. अंतर-धार्मिक जोड़े को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा कि आज तक किसी भी याचिकाकर्ता के माता-पिता द्वारा कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है, इसलिए याचिकाकर्ताओं के रिश्ते को कोई चुनौती नहीं है. .