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मोदीजी कांग्रेस हर बात के लिए जिम्मेदार तो आप क्यों हैं सरकार में ?

इस बार इस इलाके में भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है, क्योंकि किसान आंदोलन के कारण भाजपा के खिलाफ काफी नाराजगी देखी जा रही है।

उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों का आगाज गुरुवार से हो गया है। पहले चरण के लिए पश्चिमी उप्र की 58 सीटों पर मतदान हुआ। इस बार इस इलाके में भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है, क्योंकि किसान आंदोलन के कारण भाजपा के खिलाफ काफी नाराजगी देखी जा रही है। हालांकि फिर भी भाजपा शुरु से 3 सौ से अधिक सीटें जीतने का दावा करती आई है। भाजपा के इन दावों पर अब हैरानी से अधिक चिंता होती है, क्योंकि जिस आत्मविश्वास के साथ भाजपा बहुमत लाने का दावा करती है, उसके बाद यह संदेह होने लगता है कि क्या वाकई चुनाव निष्पक्ष तरीके से हो रहे हैं। ईवीएम पर तो एक अरसे से विवाद चल ही रहा है। अब इसके साथ ही निर्वाचन आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। पिछले कई चुनावों से ऐसा ही नजर आ रहा है कि निर्वाचन आयोग द्वारा लागू की गई आचार संहिता अन्य दलों के लिए कुछ और है और प्रधानमंत्री मोदी समेत बाकी भाजपा नेताओं के लिए कुछ और। यह संदेह होने लगता है कि क्या आयोग पक्षपात से ऊपर उठकर पारदर्शी तरीके से चुनाव कराने में अब भी उतना ही सक्षम रह गया है, या यहां भी दबाव का तंत्र असर दिखाने लगा है।

आदर्श आचार संहिता के मुताबिक कोई दल या उम्मीदवार ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं हो सकते जिससे जातियों और धार्मिक या भाषायी समुदायों के बीच पहले से मौजूद मतभेद और भी अधिक गंभीर हो जाए। लेकिन फिर भी पिछले कई दिनों से उप्र के मुख्यमंत्री योगी ऐसी टिप्पणियां करते रहे, जिससे भाषा का स्तर गिरा ही, दूसरे समुदायों की भावना भी आहत हुई। पहले दौर के मतदान के दिन भी उन्होंने जनता से मतदान की अपील की ताकि उप्र को केरल, बंगाल या कश्मीर बनने से रोका जा सके। क्या ये इन राज्यों के नागरिकों का अपमान नहीं है। आचार संहिता कहती है कि मतदान समाप्त होने के 48 घंटों से पहले ही सार्वजनिक सभाएं आयोजित करने पर मनाही है। इस बार कोरोना प्रोटोकॉल के कारण सार्वजनिक से अधिक वर्चुअल रैलियां ही हुई हैं। और मतदान के पहले वे भी रुक गईं। लेकिन फिर भी नरेन्द्र मोदी का साक्षात्कार मतदान की पूर्व संध्या पर प्रसारित हुआ और सोशल मीडिया के कारण ये लगातार प्रसारित ही रहा। क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है।

अगर मोदीजी ने ये साक्षात्कार देश के प्रधानमंत्री के तौर पर दिया होता, उसमें पूछे गए सवालों में देश की मौजूदा चुनौतियों पर बात होती, तब भी इस हरकत को जायज ठहराया जा सकता था। लेकिन मोदीजी का पूरा साक्षात्कार सुनियोजित दिखाई दिया और एक तरह से संसद में कही गई बातों का विस्तार ही लगा। दो दिनों तक संसद में नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस की आलोचना के बाद भी शायद मोदीजी को यह भरोसा नहीं हो पा रहा था कि वे उप्र चुनाव जीत रहे हैं, इसलिए इस साक्षात्कार में एक बार फिर उन्होंने कांग्रेस के प्रति अपनी नफरत का इजहार किया।

सात साल से अधिक सत्ता में रहने के बाद मोदीजी ने देश की आज की हालत के लिए बड़ी आसानी से कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा दिया। जबकि 2014 में वे देशवासियों से अपने लिए 60 महीने मांगते थे, ताकि 60 साल की कमियों को दूर कर सकें। अब उन्हें 90 महीनों से अधिक वक्त बतौर प्रधानमंत्री मिल चुका है, लेकिन देश की हालत आज पहले से कहीं अधिक बुरी है। इससे पहले न कभी बेरोजगारी दर इतनी बढ़ी, न जीडीपी ऋणात्मक हुई। अगर हर बात के लिए कांग्रेस को ही कोसना था, तो फिर जनता को ये सवाल मोदीजी से पूछना चाहिए कि उन्हें सत्ता पर क्यों बने रहना चाहिए। प्रधानमंत्री अब 56 इंच के सीने का दम तो नहीं दिखाते हैं, लेकिन इतनी हिम्मत भी नहीं दिखला पाए कि एक बार प्रेस कांफ्रेंस करवा लें। वे अब भी तय सवालों के तय जवाब दे कर उसका रिकार्ड बजाते दिख रहे हैं।

इस लिहाज से इसे साक्षात्कार की जगह एकालाप कहना ही सही होगा। वैसे भी मोदीजी केवल उन्हीं स्वनामधन्य पत्रकारों के सामने अपनी प्रस्तुति देते हैं, जो दो टूक सवाल न करके, जी-हुजूरी के अंदाज में उनकी बातों को रिकार्ड करें। आचार संहिता कहती है कि सरकार अपनी उपलब्धियों के विज्ञापन मीडिया में नहीं दे सकती। लेकिन मोदीजी ने 9 फरवरी को भाजपा का विज्ञापन ही किया और निर्वाचन आयोग को ये भी नजर नहीं आ रहा है। 2017 में गुजरात चुनाव के वक्त राहुल गांधी का साक्षात्कार दिखाने वाले चैनलों पर कार्रवाई की बात आयोग ने कही थी, मगर अब उसे भी मौन धारण करना पड़ा है।

अपने एकालाप में मोदीजी ने उप्र समेत सभी चुनावी राज्यों में जीत का दावा किया। उन्होंने दो लड़कों और फिर बुआ के साथ का जिक्र कर भाषायी मर्यादा को फिर तोड़ा। वे शायद इस बात को याद नहीं रखना चाहते कि उन दो लड़कों यानी राहुल गांधी और अखिलेश यादव को जनता ने संसद तक चुनकर भेजा है और अखिलेश यादव तो पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं। इस एकालाप में घिसी-पिटी बातें ही थीं, जैसे कारोबार करना सरकार का काम नहीं है, भाजपा सबको जोड़ने वाली पार्टी है, देश के विकास के लिए भाजपा स्थानीय विविधता पर ध्यान देती है, मैं किसानों की पीड़ा समझता हूं, आदि-आदि। लखीमपुर मामले में भी प्रधानमंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस घटना की जांच के लिए जो भी कमेटी बनाना चाहे या अपने जिस भी जज से इसकी जांच कराना चाहे। राज्य सरकार राजी है। यह सब जानते हैं कि 3 अक्टूबर की इस घटना के बाद भी अजय मिश्र टेनी को गृह राज्य मंत्री के पद से मोदीजी ने नहीं हटाया, जबकि किसान इसकी मांग लगातार कर रहे हैं। और अब खबर आ गई है कि इस मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को जमानत मिल गई है। ये स्पष्ट संकेत है कि देश में अब किस तरह से न्यायिक और विधायी कामकाज हो रहा है। इन संकेतों को जनता कितना समझती है, ये देखने वाली बात है।

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