राहुल गांधी के बाद महुवा मोहित्री को अदानी पर सवाल पूछने की मोदी राज में मिली सज़ा ?

भारतीय जनता पार्टी केन्द्र की मोदी सरकार ने कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की उस बात को एक बार फिर से सही साबित कर दिया है
भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार ने कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की उस बात को एक बार फिर से सही साबित कर दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘देश में पहले क्रमांक पर गौतम अदानी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह उनके नीचे हैं।’ शुक्रवार को जिस प्रकार से तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोईत्रा को लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित कर दिया गया, उससे संदेश गया है कि जो भी अदानी के खिलाफ बोलेगा, उसकी आवाज़ ऐसे ही बन्द की जायेगी। वैसे अपनी सदस्यता जाने के बाद जिस प्रकार से महुआ ने अपनी लड़ाई जारी रखने के इरादे जाहिर किये हैं और सारा विपक्ष उनके समर्थन में लामबन्द हुआ है, उससे स्पष्ट है कि महुआ को लोकसभा से निकालना मोदी के लिये महंगा साबित हो सकता है।
मोदी सरकार द्वारा जिस तरह से एक के बाद एक सारी सार्वजनिक सम्पत्तियां अदानी के हवाले की जा रही हैं, उसे लेकर राहुल गांधी लगातार हमलावर रहे हैं। उन्होंने पिछले वर्ष सितम्बर में निकाली अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मोदी द्वारा अदानी को दिये जा रहे संरक्षण पर सवाल किये थे। बाद में उन्होंने मोदी-अदानी के रिश्तों को लोकसभा में भी उठाया था। इसके चलते गुजरात की एक अदालत में लम्बित मानहानि की याचिका के आधार पर इस साल के प्रारम्भ में राहुल की सदस्यता भी छिनी गई थी। महुआ भी मोदी सरकार के उसी कोप का शिकार हुई हैं। उन पर पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगाया गया था। यह मामला संसद की आचार समिति (एथिक्स कमेटी) के पास विचारार्थ गया था।
समिति ने उन्हें इस बात का दोषी पाया कि उन्होंने एक समूह विशेष के खिलाफ ज्यादातर सवाल पूछे और इसके लिये अपना लॉग इन पासवर्ड बाहरी व्यक्ति को दिया। शुक्रवार को करीब 500 पन्नों की रिपोर्ट लोकसभा के पटल पर रखी गई और इस पर चर्चा के लिये बहुत अल्प समय रखा गया। अनेक सदस्य मांग करते रहे कि इस पर कुछ दिनों के बाद चर्चा हो ताकि सदस्यगण प्रस्तुत रिपोर्ट का ठीक से अध्ययन कर सकें। सरकार ने यह बात नहीं मानी और सदन में अपने बहुमत के बल पर महुआ की सदस्यता रद्द कर दी।
उस्लेखनीय है कि इसके पहले जब कमेटी के समक्ष उनका बयान हुआ था, तो उनसे बेहद अशिष्ट और अशोभनीय सवाल किये गये थे जो किसी भी महिला की गरिमा के खिलाफ थे। उन्हें वकील के जरिये जिरह की अनुमति भी नहीं मिल सकी थी जो कि किसी भी आरोपी का नैसर्गिक अधिकार होता है। सदन में महुआ के पक्ष में खड़े सदस्यों ने इस प्रक्रियागत त्रुटि की ओर ध्यान दिलाया परन्तु सम्भवत: उस कमेटी ने ऐसा सायास किया था जिसमें भाजपा के सदस्यों का बहुमत है। वैसे भी इस मामले में एथिक्स कमेटी ने जिस प्रकार से सुनवाई की, उसमें कई तरह की खामियां हैं। जिस निशिकांत दुबे की ओर से यह शिकायत दर्ज की गई थी, उनका प्रतिपरीक्षण (क्रॉस एक्जामिनेशन) नहीं हुआ। इसके अलावा महुआ को अपनी बात कहने का अवसर भी नहीं मिला- न तो कमेटी के सामने और न ही लोकसभा में। इसमें सबसे बड़ी कमी तो यह है कि उनके पास से कोई नगदी या वे वस्तुएं बरामद नहीं हुई हैं, जिनके बारे में कहा गया कि सांसद ने इसके एवज में सवाल किये थे। यानी कि आरोप को सही साबित करने के लिये कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये गये। फिर उनके खिलाफ आयकर, प्रवर्तन निदेशालय या सीबीआई तो दूर की बात है, पुलिस द्वारा भी अपराध दर्ज नहीं किया गया जो इसलिये होना था क्योंकि यह तो आपराधिक मामला बनता है।
बहरहाल, यह देश के सामने अब स्पष्ट हो गया है कि अदानी के बाबत प्रश्न पूछने का अर्थ है उसके लिये किसी को भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। खासकर, अगर वह ऐसे मंच से बोले जिससे अदानी को किसी भी तरह का नुकसान होने का अंदेशा हो। चूंकि संसद में उठाये जाने वाले मामलों की गूंज न केवल देश भर में वरन पूरी दुनिया में सुनी जाती है, मोदी सरकार के लिये ऐसी आवाज़ों को बन्द कराना बहुत आवश्यक हो जाता है। जब हिंडनबर्ग रिपोर्ट आई थी तो अदानी की कम्पनियों के शेयर रातों-रात नीचे गिर गये थे। जैसा कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री सत्यपाल मलिक कह चुके हैं कि ‘अदानी का पैसा मोदी का है और अदानी तो एक तरह से उनका मैनेजर है’, यह कोई भला कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि अदानी के बाबत कोई सवाल किये जायें?
जो कीमत पहले राहुल ने चुकाई वही अब महुआ को चुकानी पड़ रही है। जिस प्रकार पहले राहुल को सदन से निकालना मोदी व भाजपा को भारी पड़ा था, वैसे ही महुआ के मामले में भी होता दिखाई दे रहा है। सदस्यता जाने के बाद महुआ ने प्रेस के समक्ष मोदी को खुली चुनौती दी है कि वे बाहर भी अपनी लड़ाई जारी रखेंगी। जब वे मीडिया को सम्बोधित कर रही थीं, कांग्रेस की नेत्री सोनिया गांधी, राहुल गांधी सहित विपक्षी गठबन्धन इंडिया के कई नेता उनके साथ मौजूद थे। वहीं टीएमसी की सुप्रीमो व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने भी इसे लेकर मोदी सरकार के प्रति गुस्सा दिखाया और बड़ी लड़ाई का ऐलान किया जो बताता है कि महुआ अकेली नहीं है। महुआ एपीसोड ने सम्पूर्ण विपक्ष को एक कर दिया है। पांच में से तीन (राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़) राज्यों में मिली पराजय के कारण जो कांग्रेस कमजोर दिख रही थी, इंडिया समेत वह फिर से सशक्त दिख रही है।