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अब इंडिया की राह तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद मोदी ने सम्हाल लिया तो क्या हो?

नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद सम्हाल लिया है और उनकी सरकार ने एक तरह से कामकाज शुरू भी कर दिया है

नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री का पद सम्हाल लिया है और उनकी सरकार ने एक तरह से कामकाज शुरू भी कर दिया है। 2014 और 2019 के मुकाबले एक बड़ी चुनौती को पार करने के बाद मोदी अपनी सरकार फिर से बनाने में कामयाब तो हो गये हैं लेकिन उनके सामने खड़े कांग्रेस एवं संयुक्त प्रतिपक्षी गठबन्धन इंडिया ने उससे कहीं बड़ी बाधाओं को पार करते हुए खुद को ऐसी मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है जहां भाजपा का मुकाबला संसद के भीतर व बाहर दोनों जगहों पर दमदारी से किया जा सकता है। मोदी के तीसरी बार सरकार बनने के पहले से ही, सच कहा जाये तो 4 जून की रात से ही साफ हो गया था कि वह अपने पैरों पर नहीं खड़ी है। इसलिए अनुमान जताये जा रहे हैं कि यह सरकार बहुत लम्बा चलने से रही। विवादास्पद मुद्दों को लेकर जब भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दलों- खासकर तेलुगु देसम पार्टी (टीडीपी) एवं जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) से टकराव बढ़ेगा तो इस सरकार के गिरने के अनुमान जाहिर किये जा रहे हैं।

तो क्या इंडिया को इन अंतर्विरोधों के बढ़ने और भाजपा प्रणीत नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के अपने आप गिरने का इंतज़ार करना चाहिये? इसका जवाब ढूंढ़ने के लिये कई आयामों पर गौर करना होगा। पहली बात, यह तो सच है कि परस्पर टकरावों के कारण इस सरकार के गिरने का अंदेशा कई राजनीतिक विश्लेषक व्यक्त कर रहे हैं। कई तो इसकी समयावधि तक निर्धारित करने से नहीं चूक रहे हैं। यह अवधि कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक की है। इस तरह के कयासों के कई आधार हैं। इनमें प्रमुख है विभागों का वितरण। अनुमान जतलाये जा रहे हैं कि गठबंधन के जिन सहयोगी दलों को प्रभावशाली मंत्रालय, जिन्हें ‘मलाईदार विभाग’ भी कहा जाता है, न मिलें तो खींचतान होगी। माना जा रहा था कि सबसे रौबदार विभाग यानी गृह, रेल, विदेश और रक्षा मंत्रालयों के लिये भी कहा-सुनी सम्भावित है। इसे सभी सहयोगी दल, खासकर बड़े घटक अपने पास रखना चाहेंगे। इनमें टीडीपी एवं जेडीयू शामिल हैं जिनके क्रमश: 16 व 12 सदस्य हैं और जिन पर सरकार काफी-कुछ निर्भर करती है।

किसी भी एक के हाथ खींचने की देर है और मोदी सरकार का पतन हो जायेगा। दूसरा अहम मुद्दा होगा लोकसभा के अध्यक्ष पद का। आने वाली राजनीतिक परिस्थितियों में इस पद का बहुत महत्व होगा। खासकर, टकराव की स्थिति में आसंदी पर बैठे व्यक्ति का आदेश व उसकी प्रतिबद्धता मोदी सरकार के लिये निर्णायक होगी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय टीडीपी ने ही अपने सांसद जीएमसी बालयोगी को इस पद पर बिठाने में सफलता पायी थी। बड़ी बात नहीं कि इस बार भी वह इसकी कोशिश करे। देखना यह होगा कि क्या इस बार जेडीयू यह पद पाना चाहेगी। वैसे अनुमान लगाये जा रहे थे कि दोनों दल ज्यादा मंत्री पद चाहेंगे पर इनके एक-एक सदस्य को ही केबिनेट मंत्री बनाया गया है। फिलहाल तो कोई विवाद होता नहीं दिख रहा है। राकांपा ज़रूर नाराज़ है जिसे केवल एक राज्य मंत्री का पद दिया जा रहा था। इसलिये उसका कोई प्रतिनिधि रविवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुआ।

इंडिया के लिये असली संदेश तो यही है कि वह एनडीए में विवादों के पनपने और उनके इस कदर बड़ा होने का इंतज़ार न करे जिससे सरकार गिरे। अगर यह होना है तो वह अपने समय व कारणों से होता रहेगा लेकिन विपक्ष को अपने तईं प्रयासों को जारी रखना होगा। क्या हैं वे प्रयास? उसे वही करना है जो वह पिछले दो वर्षों से करती आई है। 2014 व 2019 के मुकाबले कांग्रेस को बड़ा जनादेश मिला है और दस वर्षों में उसके सदस्यों का आंकड़ा दहाई को छूने जा रहा है। राहुल गांधी द्वारा वायनाड या रायबरेली की एक सीट छोड़ने पर वहां से जो भी कांग्रेस प्रत्याशी लड़े, जीतेगा। इस तरह कांग्रेस 100 तक पहुंच जायेगी। दो राष्ट्रव्यापी यात्राओं के बाद राहुल का कद तो बढ़ा ही है, एक सर्वे में उन्हें पीएम के रूप में देखने वाले मोदी के मुकाबले 4 प्रतिशत ज्यादा पाये गये- यूपी में पीएम की पहली पसंद के तौर पर 36 फीसदी लोगों ने राहुल गांधी और 32 फीसदी लोगों ने नरेंद्र मोदी को चुना। यह उनकी लोकप्रियता के साथ स्वीकार्यता को भी दर्शाता है। एक उत्तर व दूसरी दक्षिण भारत की सीट जीतकर राहुल विपक्ष के नेता के सहज ही दावेदार बन जाते हैं। उनकी इसी बढ़ी ताकत से कांग्रेस पुनर्जीवित हुई है और अन्य दलों ने उसका नेतृत्व स्वीकार किया है।

ऐसे में कांग्रेस लोकसभा में वैसे ही मोदी सरकार के कारनामों का पर्दाफाश करती रहे, जैसी वह राहुल के नेतृत्व में 17वीं लोकसभा की आखिरी बैठक तक करती रही थी। मोदी द्वारा अपने मित्र कारोबारियों- गौतम अदानी व मुकेश अंबानी की होती सहायता, इलेक्टोरल बॉंड्स, ईवीएम के जरिये होने वाली हेराफेरी, कोरोना वैक्सीन, अग्निवीर योजना आदि ऐसे अनेक मुद्दे हैं जो कांग्रेस व इंडिया संसद के भीतर व बाहर उठाती रही है। भारत जोड़ो यात्रा, न्याय यात्रा, चुनाव प्रचार आदि में भी विपक्ष ने ये मुद्दे जोर-शोर से उठाये थे। इनका असर भी पड़ा। महिलाओं, युवाओं, किसानों, मजदूरों, आदिवासियों आदि के लिये जो वादे कांग्रेस ने अपने न्याय पत्र में किये थे, उन्हें आधार मानकर पूरे इंडिया ब्लॉक को एक मजबूत आवाज दोनों सदनों में उठानी होगी। सामाजिक न्याय के लिये जातिगत जनगणना की वह मांग कर सरकार की घेराबन्दी करे। इंडिया के घटक दलों पर मोदी सरकार के आक्रमण और भी होंगे, तो भी वह अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाये।

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