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क्या जल्द खत्म हो जाएगी दुनिया? बर्फ में दबा 48500 साल पुराना वायरस हुआ जिंदा, यह कोरोना से सैकड़ों गुना खतरनाक

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हजारों सालों से बर्फ के नीचे दबा जॉम्बी वायरस जल्द बाहर निकल सकता है. अगर यह वायरस बाहर आ गया, तो दुनिया में कोरोना से भी ज्यादा तबाही मच सकती है. जॉम्बी वायरस साइबेरिया में करीब 48 हजार साल से बर्फ में कैद है.

कोरोना महामारी के बाद अब दुनिया पर सबसे बड़ा संकट मंडरा रहा है. यह संकट इतनी तबाही फैला सकता है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगले कुछ सालों में पूरा विश्व जॉम्बी वायरस की चपेट में आ सकता है. इसकी वजह धरती का बढ़ता तापमान है. जानकारों की मानें तो साइबेरिया के आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में जमे हजारों साल पुराने वायरस बाहर आ सकते हैं. दरअसल पृथ्वी का तापमान बढ़ने से पर्माफ्रॉस्ट पिछले रहे हैं और इन वायरस के बाहर आने का खतरा बढ़ गया है. वैज्ञानिकों की इस चेतावनी से कोरोना महामारी का प्रकोप झेल रहे लोगों की चिंता बढ़ गई है. लोग कोविड महामारी से उबरे भी नहीं हैं और ऐसे में नई महामारी की आशंका ने सभी को हैरानी में डाल दिया है.

द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक पर्माफ्रॉस्ट पिघलने से लाखों सालों से जमे तमाम कार्बनिक पदार्थ और तबाही मचाने वाले वायरस बाहर निकल सकते हैं. पर्माफ्रॉस्ट पृथ्वी के नीचे स्थायी रूप से जमी बर्फ की सतह को कहते हैं, जो धरती का टेंपरेचर बढ़ने से पिघलने लगी हैं. इसमें से सबसे ज्यादा खतरा जॉम्बी वायरस के बाहर आने का है, जो करीब 48,500 सालों से बर्फ में दबा हुआ है.

यह वायरस अगर बाहर आ गया, तो इससे इंसान ही नहीं, बल्कि जानवरों और पेड़-पौधों के अस्तित्व को भी खतरा पैदा हो सकता है. इसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने आर्कटिक निगरानी नेटवर्क की योजना बनाना शुरू कर दिया है, जिससे प्राचीन सूक्ष्म जीवों के कारण होने वाली बीमारी के शुरुआती मामलों का पता लगाया जा सके. पिछले साल फ्रांस के वैज्ञानिकों ने सालों की रिसर्च के बाद इस वायरस के जिंदा होने का दावा किया था और कुछ सैंपल भी इकट्ठा किए थे.

रॉटरडैम में इरास्मस मेडिकल सेंटर के वायरोलॉजिस्ट मैरियन कूपमैन्स के मुताबिक यह वैज्ञानिक भी नहीं जानते कि पर्माफ्रॉस्ट में कौन से वायरस मौजूद हैं, लेकिन इनसे बीमारियां फैलने का जोखिम जरूरी है. हो सकता है कि इसमें पोलियो का प्राचीन वायरस हो. यह मानकर चलना होगा कि पर्माफ्रॉस्ट में ऐसा कुछ हो सकता है. 2014 में वैज्ञानिकों की एक टीम ने साइबेरिया में जीवित वायरस को अलग किया था और यह दिखाया था कि हजारों वर्षों से पर्माफ्रॉस्ट में दबे हुए वायरस जीवों को संक्रमित कर सकते हैं.

पिछले साल भी साइबेरिया में सात अलग-अलग साइटों से कई अलग-अलग वायरल स्ट्रेन्स के अस्तित्व का पता चला था. इनमें से एक वायरस का सैंपल करीब 48,500 साल पुराना था. इनमें से कुछ वायरस ऐसे भी थे, जिनसे मनुष्यों के लिए कोई खतरा नहीं था. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि जो वायरस फिलहाल पर्माफ्रॉस्ट में जमे हुए हैं, वे मनुष्यों में बीमारियों को ट्रिगर करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.

वैज्ञानिकों की मानें तो पर्माफ्रॉस्ट के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि यह ठंडा होता है और इसमें अंधेरा होने के साथ ऑक्सीजन की कमी होती है. यह जैविक सामग्री को संरक्षित करने के लिए बिल्कुल सही होता है. आप दही को पर्माफ्रॉस्ट में रख सकते हैं और यह 50,000 साल बाद भी खाने योग्य हो सकता है. लेकिन दुनिया का पर्माफ्रॉस्ट बदल रहा है. कनाडा, साइबेरिया और अलास्का के पर्माफ्रॉस्ट की ऊपरी परतें पिघल रही हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन आर्कटिक को काफी प्रभावित कर रहा है.

मौसम विज्ञानियों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि की औसत दर से कई गुना अधिक तेजी से यह क्षेत्र गर्म हो रहा है. साइबेरिया में शिपिंग, यातायात और औद्योगिक विकास में वृद्धि हो रही है, जिससे पर्माफ्रॉस्ट को खतरे पैदा हो रहे हैं. साइबेरिया में खनन कार्यों की योजना बनाई जा रही है और तेल व अयस्कों को निकालने के लिए गहरे पर्माफ्रॉस्ट में विशाल छेद किए जा रहे हैं. इससे इन वायरस के बाहर आने का खतरा बढ़ गया है. इसके प्रभाव विनाशकारी हो सकते हैं.

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