‘संदेह के आधार पर गिरफ्तारी’ के प्रावधानों पर सिब्बल नाराज, कहा- स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता

सेमिनार को संबोधित करते हुए राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि जब हमने भारत का संविधान अपनाया तो वह 1935 के अधिनियम पर आधारित था। आपराधिक कानून भी ब्रिटिश युग का था। अंग्रेजी कानून में प्रावधान था कि आप संदेह के आधार पर किसी को गिरफ्तार कर लो।
नई दिल्ली
देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को पूरी तरह से बदलने के लिए एक जुलाई से तीन नए कानून लागू होंगे। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शनिवार को अधिसूचनाएं जारी कर फैसले की जानकारी दी। राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने संदेह के आधार पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की प्रथा की निंदा की। दरअसल, सिब्बल एनजीओ ‘कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स- (सीजेएआर)’ द्वारा आयोजित एक सेमिनार में पहुंचे थे।
अंग्रेजों ने असहमति दबाने के लिए बनाया था कानून
सेमिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जब हमने भारत का संविधान अपनाया तो वह 1935 के अधिनियम पर आधारित था। आपराधिक कानून भी ब्रिटिश युग का था। अंग्रेजी कानून में प्रावधान था कि आप संदेह के आधार पर किसी को गिरफ्तार कर लो। यह कानून अंग्रेजों ने असहमति को दबाने के लिए बनाया था। इस प्रावधान में अत्याचार के कई प्रावधान थे। नए भारतीय कानूनों में भी ऐसे प्रावधान हैं, मुझे इससे समस्या है। यह संवैधानिक कसौटी पर खरा कैसे उतर सकता है। आपको स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। मुझे इससे समस्या है। मुझे नहीं पता किसी ने इस प्रावधान को चुनौती क्यों नहीं दी।
पुलिसिंग और पीएमएलए के प्रावधानों की भी आलोचना
इसके अलावा, सेमिनार में सिब्बल ने कहा कि मेरा एक और सवाल है। संदेह के आधार पर पुलिसिंग का क्या मतलब है। मुझे बिना आरोप बताए पुलिस मुझे गिरफ्तार कर लेगी और 14 दिनों के लिए जेल में रखेगी, यह कितना तर्कसंगत है। बड़ें देशों में जांच के बाद ही गिरफ्तारी होती है। लेकिन भारत में पहले गिरफ्तार होगी फिर जांच होगी। पीएमएलए के तहत लोगों को जब बयान के लिए बुलाया जाता है तो यह नहीं बताया जाता कि बयान किस एहसियत से दर्ज हो रहे हैं। क्या वह व्यक्ति गवाह है। क्या वह व्यक्ति आरोपी है। वह कौन है। बस एक नोटिस आता है कि इस दिन आएं और अपने बयान दर्ज कराए।