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‘समाज के नैतिक मूल्य गिर रहे हैं’, पॉक्सो मामले पर गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात उच्च न्यायालय ने छेड़छाड़ के एक मामले में एक पिता की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा, पहले हम कह रहे थे कि लड़कियां समाज में सुरक्षित नहीं हैं

अहमदाबाद,

गुजरात उच्च न्यायालय ने छेड़छाड़ के एक मामले में एक पिता की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा, पहले हम कह रहे थे कि लड़कियां समाज में सुरक्षित नहीं हैं, अब समय आ गया है जब लड़कियां घर में सुरक्षित नहीं हैं। दिखाता है कि समाज के नैतिक मूल्य दिन-ब-दिन गिर रहे हैं। अपने आदेश में जस्टिस समीर दवे ने फकीर मोहम्मद हुसैन सुंभनिया की जमानत याचिका खारिज करते हुए मनुस्मृति और पद्म पुराण का भी हवाला दिया। अदालत ने कहा कि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि अभियुक्त भविष्य में दोबारा अपराध नहीं करेगा।

जमानत याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप है कि उसने अपनी 12 वर्षीय बेटी के साथ दुष्कर्म किया था।

जमानत को खारिज करते हुए अदालत ने मनुस्मृति के श्लोक का उल्लेख किया, एक आचार्य दस उपाध्यायों से बड़ा है, एक पिता 100 आचार्यों से बड़ा है, और उन्होंने पद्म पुराण के श्लोक को भी उद्धृत किया, मेरे पिता मेरे धर्म हैं, मेरे पिता मेरे स्वर्ग हैं। वह मेरे जीवन की परम तपस्या हैं।

अदालत ने आदेश में कहा, पीड़िता ने पुलिस को बताया था, 25 दिन पहले उसके पिता ने उसके हाथ बांध दिए, उसके मुंह में कपड़े का टुकड़ा ठूंस दिया था और उसने उसके साथ छेड़छाड़ की थी।

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक आरोपी पिता ने परिवार के अन्य सदस्यों की मौजूदगी में बताया था कि वह अपनी 12 साल की बेटी से शादी करना चाहता है।

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