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श्रीलंका के लिए नाकाफी साबित हुई भारत द्वारा भेजी गई मदद, बढ़ोतरी नहीं हुई तो बढ़ेगा गहरा संकट

भारत द्वारा अपने पड़ोसी देश श्रीलंका को दी गई 50 करोड़ डॉलर की ऋण-सुविधा तेजी से खत्म हो रही है और अगर ऐसे ही चलता रहा तो अप्रैल के अंत तक उसके पास डीजल खरीद के लिए विदेशी मुद्रा नहीं रह जाएगी। खाद्य उत्पादों, गैस, तेल एवं अन्य जरूरी चीजों की किल्लत और भारी बिजली कटौती से जूझ रहे श्रीलंका में इस समय लोग सड़क पर उतरकर विरोध जता रहे हैं। मुखर जन-विरोध की वजह से श्रीलंका सरकार के सभी मंत्रियों को पद छोड़ना पड़ा है और तमाम सांसदों ने भी राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का साथ छोड़ दिया है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, श्रीलंका में विदेशों से कच्चे तेल की आपूर्ति एक अप्रैल से शुरू होनी थी लेकिन हालात की गंभीरता को देखते हुए मार्च के आखिरी हफ्ते में ही तेल की खेप पहुंचने लगी थी।
इस महीने भी भेजी जाएगी तेल की खेप
भारत से तेल की अगली खेप अगले हफ्ते पहुंचने की उम्मीद है। सूत्रों ने बताया कि भारत से तेल की खेप 15 अप्रैल, 18 अप्रैल और 23 अप्रैल को आने की संभावना है। लेकिन इसके बाद श्रीलंका को भारत से मिली 50 करोड़ डॉलर की ऋण-सुविधा खत्म हो जाएगी और अगर भारत ने इसमें बढ़ोतरी नहीं की तो फिर श्रीलंका गहरे तेल संकट से जूझ सकता है। भारत ने फरवरी में श्रीलंका को ईंधन खरीद के लिए 50 करोड़ डॉलर की ऋण-सुविधा देने की घोषणा की थी। श्रीलंका में डीजल का इस्तेमाल सार्वजनिक परिवहन के लिए खूब होता है। इसके साथ ही तापीय बिजली उत्पादन में भी डीजल की खपत अधिक होती है। लेकिन तापीय बिजलीघरों में डीजल की किल्लत होने से काफी हद तक उत्पादन ठप हो गया है। इसकी वजह से श्रीलंका में इस समय 10-10 घंटों तक बिजली कटौती हो रही है।
दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति की हो रही है कमी
इस बीच, श्रीलंका मेडिकल एसोसिएशन ने राजपक्षे से देश में जरूरी दवाओं की किल्लत दूर करने के लिए जल्द कदम उठाने की मांग की है। संगठन के मुताबिक, इस समय श्रीलंका में जरूरी दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति बहुत कम होने से सिर्फ आपातकालीन सर्जरी ही की जा रही है। सरकार ने इस समय देशभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा है कि, विपक्षी दल जनता विमुक्ति पेरामन (जेवीएम) ही इनका आयोजन कर रहा है।

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