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सवाल उठाता रहूंगा; अपने स्वार्थ के लिए घुटने नहीं टेक सकता:वरुण गांधी

मैं राजनैतिक दलों की नीतियों और उनकी विचारधाराओं पर टिप्पणी कर सकता हूं उन्हें सही या गलत करार देने का मुझे क्या अधिकार? जो लोगों की बात करते हैं उनके हक में काम करते हैं वही सही हैं पक्ष-विपक्ष का यह चक्र तो चलता रहता है।

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तेवर के कारण अक्सर चर्चा में रहने वाले भाजपा के मुखर और युवाओं मे लोकप्रिय सांसद वरुण गांधी फिर से सुर्खियों में हैं। भाजपा सरकार को लेकर ही वह आक्रामक हैं। उत्तर प्रदेश में जब कुछ मंत्रियों और विधायकों ने पाला बदला तो वरुण की भावी रणनीति को लेकर भी आकलन लगाया जाने लगा। अटकलें तेज हो गई कि वह किस पाले में हैं।  जब यह सवाल किया तो वह कहते हैं- मैं तो हमेशा से जनता के पाले में हूं। जो जनता के सवाल होंगे वह उठाता रहूंगा। अपने स्वार्थ के लिए मैं घुटने नहीं टेक सकता हूं। बातचीत के कुछ खास अंश-

पिछले कुछ महीनों से सरकार को लेकर आपका रुख आक्रामक हो गया है, ऐसा क्यों?

(कुछ सोचते हुए) आपने किस बात का क्या निष्कर्ष निकाला वह मैं नहीं जानता हूं, लेकिन मैं राजनीति में अपना निजी स्वार्थ साधने नहीं आया हूं। आप को मालूम ही होगा कि न तो मैं सांसद के रूप में मिली तनख्वाह लेता हूं, न सरकारी घर और अन्य सरकारी सुविधाएं। मेरी मां और मैं पूरी ईमानदारी से जन स्वाभिमान की रक्षा की राजनीति करते हैं, लोगों को अपना परिवार मान कर उनकी सेवा करते हैं। कोरोना महामारी के दौरान जब मेरे संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में आक्सीजन सिलिंडर का अभाव हो गया, सरकारी अस्पतालों में जरूरी दवाइयां नहीं मिल रही थीं, तो मैंने अपनी बेटी की एफडी तोड़कर उन पैसों से पीलीभीत में आक्सीजन सिलिंडर और दवाएं पहुंचाई। एक स्वस्थ लोकतंत्र में सवाल पूछे ही जाने चाहिए, मुझे लगता है मेरी सलाह पर विचार करने से पार्टी, सरकार और आम जनता सबका भला होगा। बहुत सारे लोग सत्ता की ताकत के आगे अपने निजी स्वार्थ की वजह से उसके समक्ष घुटने टेक देते हैं, मेरे लिए यह अपनी अंतरात्मा को धोखा देने जैसा है।

अगर मैं पूछूं कि आप किस खेमे में हैं, क्योंकि विपक्ष की ओर से रोजगार का मुद्दा उठाया जाता है और आप लिखते हैं बेरोजगारी बढ़ी है? किसान आंदोलन करते हैं तो आप उनके साथ बैठ जाते हैं?

मैं कहूंगा, जनता के खेमे में हूं। जनता ने मुझे किसलिए सांसद चुना है, उनके मुद्दे उठाने के लिए न? सरकारें आएंगी, जाएंगी, यही लोकतंत्र का दस्तूर है। पर हमें देखना होगा कि क्या ये चुनाव लोगों से जुड़े जरूरी और बुनियादी मुद्दों का ध्यान रख रहे हैं या ये राजनैतिक पार्टियों के लोकलुभावन नारों के मकड़जाल में उलझ कर रह गए हैं। हम एक युवा देश हैं, जहां 35 साल से कम उम्र वाले युवाओं की संख्या लगभग 70 फीसदी है। भूलिए मत, इन्हीं युवा मतदाताओं ने 2014 के बाद लगातार भाजपा को वोट दिया है। आज उनकी स्थिति क्या है? आज तो युवाओं के लिए उनकी डिग्री भी नौकरी की गारंटी नहीं रह गई है, 2019 में 5.5 करोड़ युवाओं ने डिग्री हासिल की पर उनमें से 90 लाख बेरोजगार रह गए। हम केवल उत्तर प्रदेश की बात करें, तो यहां भी तेजी से ‘लेबर फोर्स’ बढ़ी है, पहले जहां 14.95 करोड़ लोग मेहनत-मजदूरी से जुड़े थे आज उनकी संख्या बढ़ कर 17 करोड़ 7 लाख के आसपास पहुंच गई है। हमें युवा वर्ग के सपनों को मुकम्मल आसमान देना है।

आपने गन्ना और एमएसपी को लेकर केंद्र और राज्य सरकार को पत्र लिखे हैं? आपने खेती-किसानी पर एक चर्चित किताब भी लिखी है, क्या एमएसपी पर वैधानिक गारंटी संभव है?

उत्तर प्रदेश की पिछली तीन सरकारों में गन्ना मूल्य में सबसे कम वृद्धि इस मौजूदा सरकार के दौरान हुई है, यही कारण है कि भाजपा सरकार से गन्ना किसान इतना नाराज हैं। फसलों का लाभकारी मूल्य किसानों का अधिकार है, यदि हम यह सुनिश्चित नहीं करेंगे तो किसान धीरे-धीरे कर्ज के जाल में फंस जाएगा और खेती-किसानी छोड़ देगा। याद रखना चाहिए कि किसान आंदोलन अभी स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं। अभी कई मुद्दों पर किसान सरकार से जवाब चाहते हैं। जैसे एमएसपी पर कानूनी गारंटी, लखीमपुर कांड में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का इस्तीफा, आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए मुकदमों की वापसी, मुआवजे की मांग, ऐसे बहुत सारे विषय हैं, जिन पर सरकार को अपना निर्णय लेना है। उत्तर प्रदेश के किसान भी ‘वोट की चोट’ कार्यक्रम और तेज कर सकते हैं।

इसीलिए मैंने पूछा कि आप सरकार के खेमे में हैं या विपक्ष के खेमे में?

मैंने बताया तो कि जनता के खेमे में हूं।

आप उत्तर प्रदेश से सांसद हैं, विधानसभा चुनाव को लेकर आपका क्या अनुमान है?

मैं किसी भी चुनाव को 80:20 या 85:15 के सांचे में नहीं देखना चाहता। मेरे हिसाब से किसी भी वोटर को धर्म या जाति के आधार पर देखना ही गलत है। मैं तो वोटर को सबसे बड़ा ‘स्टेक होल्डर’ मानता हूं। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को अपने वोट के जरिये इन मूल सवालों के जवाब देने हैं कि क्या इस पांच साल की सरकार में जमीन पर भ्रष्टाचार कम हुआ? क्या किसानों के साथ न्याय हुआ? क्या महंगाई की मार से जनता को राहत मिली है? संविदा कर्मचारियों को इंसाफ के लिए और कितना इंतजार करना होगा, एक और बड़ा सवाल कि क्या युवाओं को रोजगार मिला? किसी भी चुनाव को ऐसे बुनियादी और जरूरी सवालों के जवाब देने ही पड़ते हैं।

विपक्ष में कौन-सा दल आपको सही लगता है, क्या वरुण गांधी भाजपा में बरकरार रहेंगे?

मैं राजनैतिक दलों की नीतियों और उनकी विचारधाराओं पर टिप्पणी कर सकता हूं, उन्हें सही या गलत करार देने का मुझे क्या अधिकार? जो लोगों की बात करते हैं, उनके हक में काम करते हैं, वही सही हैं, पक्ष-विपक्ष का यह चक्र तो चलता रहता है। जो कल सर्वव्यापी थे, आज सूक्ष्म हो गए, जो कल सूक्ष्म थे, आज वे सर्वव्यापी हैं, यह राजनैतिक चक्र तो चलता ही रहेगा।

विपक्षी दलों की ओर से क्या आपसे संपर्क किया गया है?

इस सवाल का कोई औचित्य नहीं है। मैं जनता के संपर्क में हमेशा रहता हूं और मेरे क्षेत्र की जनता हमेशा मुझसे संपर्क करती है।

 

Edited By: Tilakraj

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