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सरकारी संपत्तियों व भूखंडों के आवंटन का विवेकाधीन कोटा खत्म हो: सुप्रीम कोर्ट

नीलामी पर जोर: सरकारी संपत्तियों व भूखंडों के आवंटन का विवेकाधीन कोटा खत्म हो, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

नई दिल्ली

भूखंड आवंटन के मामले में ओडिशा के तीन सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक केस समाप्त करने के ओडिशा हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की।

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को कहा कि अब समय आ गया है जब सरकारी संपत्तियों व भूखंडों के आवंटन की विवेकाधीन कोटा प्रणाली खत्म कर दी जाए। इस प्रणाली से भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद और पक्षपात होता है। शीर्ष कोर्ट ने सुझाव दिया कि इन संपत्तियों का आवंटन मोटे तौर पर नीलामी से ही होना चाहिए।

भूखंड आवंटन के मामले में ओडिशा के तीन सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक केस समाप्त करने के ओडिशा हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। इन कर्मचारियों पर आरोप है कि उन्होंने भुवनेश्वर में अपने परिजनों व रिश्तेदारों के नाम पर 10 व्यावसायिक भूखंडों का आवंटन किया।

अहम फैसले में शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कई बार निष्पक्ष व पारदर्शी आवंटन के दिशा निर्देशों का बमुश्किल पालन किया जाता है। ऐसे में अच्छा यह है कि विवेकाधीन कोटे को खत्म कर दिया जाए और सरकारी संपत्तियों व प्लॉटों का आवंटन सार्वजनिक नीलामी के जरिए ही किया जाए।

जस्टिस एमआर शाह व जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट द्वारा किसी आपराधिक मामले को रद्द करना, सामान्य नियम के बजाय अपवाद स्वरूप होना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने ऐसे मामले को बिना ज्यादा गहराई से विचार किए खारिज करने पर नाराजगी भी प्रकट की। पीठ ने कहा कि आरंभिक स्तर पर किसी केस पर विचार करते हुए कोर्ट को और अधिक सतर्क रहना चाहिए।

पूर्व मंत्री समीर डे भी हैं आरोपी
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों के खिलाफ केस चलाने के लिए ओडिशा सरकार की अपील मंजूर कर ली। ये तीनों अधिकारी भुवनेश्वर विकास प्राधिकरण (BDA) में पदस्थ हैं। इनके नाम हैं प्रतिमा मोहंती, एस. प्रकाश चंद्र पात्रा व राजेंद्र कुमार सामल। इनके खिलाफ 2005 में केस दर्ज किया गया था। मामले में राज्य के तत्कालीन मंत्री समीर डे के खिलाफ भी केस दर्ज है।

 

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