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तालिबान को मान्यता देने से परहेज क्यों कर रहा भारत? जानें- क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

नई दिल्ली

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से दुनिया में एक बहस जारी है। ये बहस तालिबान सरकार को मान्यता देने को लेकर है। चीन, ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों ने मान्यता देने की बात कही है। रूस जैसे कई देशों ने मान्यता देने को लेकर कहा है कि यह तालिबान के आचरण पर निर्भर करता है कि उसे मान्यता दी जाए या नहीं। कनाडा जैसे देश ने तालिबान को मान्यता देने का विरोध किया है। भारत का अब तक कोई साफ़ स्टैंड नहीं सामने आया है। लेकिन ये मान्यता देने की बात क्यों सामने आई?

मान्यता को लेकर तब तक सवाल नहीं उठते जब तक कि कानून के हिसाब से सत्ता परिवर्तन हो। लेकिन असंवैधानिक साधनों का इस्तेमाल कर मौजूदा सरकार को उखाड़ने के बाद नियंत्रण करना कानूनी तौर पर गलत है। और चूंकि तालिबान ने ऐसा ही किया है। तो ऐसे में तालिबान सरकार को मान्यता देने पर बहस जारी है।

तो भारत की क्या राय है?

तालिबान के हिंसक और क्रूर इतिहास, उसकी चरमपंथी विचारधारा और लोकतंत्र की भारी कमी को देखते हुए भारत को पूरा अधिकार है कि वह तालिबान शासन को मान्यता दे या ना दे। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के रवैये से ऐसा लगता है कि भारत तालिबान शासन को मान्यता नहीं देने के पक्ष में दिख रहा है। और अगर मान्यता देने की सोच भी रहा है तो भारत उसमें कोई जल्दबाजी नहीं करने के मूड में है।

यह सच है कि भारत ने अफगानिस्तान में भारी निवेश किया हुआ है। मध्य एशिया में अपने हित को देखते हुए भारत अफगानिस्तान को छोड़ना नहीं चाहता है। ऐसे में भारत को तालिबान से जुड़ने का कोई न कोई रास्ता खोजना होगा। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि तालिबान को लेकर भारत को एक स्पष्ट नीति अपनानी चाहिए। इसे लेकर एक्सपर्ट्स दलील देते हैं कि भारत को ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि मौजूदा वक्त में सच यही है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार है। क्योंकि बिना तालिबान से बात किए भी भारत का नुकसान ही दिखता है। ऐसे में भारत को तालिबान से बातचीत करने में परहेज नहीं करनी चाहिए।

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