’75 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने मजबूत की अभिव्यक्ति की आजादी’,पूर्व CJI बीआर गवई

मुंबई में जस्टिस केटी देसाई मेमोरियल लेक्चर में पूर्व सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 75 वर्षों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को लगातार मजबूत किया है। उन्होंने बताया कि अदालत ने अनुच्छेद 19(1)(a) के अधिकार को विस्तार दिया और 19(2) के प्रतिबंधों को सीमित रखा।
मुंबई
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि भारती सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 75 वर्षों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को लगातार विकसित किया है। उन्होंने कहा कि संविधान का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकार को दिए गए प्रतिबंध लगाने के अधिकार से नागरिकों की बोलने-सोचने की स्वतंत्रता कमजोर न पड़े। यह बात पूर्व सीजेआई गवई ने शुक्रवार को मुंबई में आयोजित जस्टिस केटी देसाई मेमोरियल लेक्चर 2025 के दौरान कही।
बता दें कि लेक्चर संबोधित करने के दौरान गवई ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ उसका दायरा और सीमाओं’ के विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने आजादी के बाद से सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र किया और बताया कि किस तरह अदालत ने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
बोलने की आजादी पर क्या बोले गवई
गवई ने कहा कि पिछले सात दशकों में न्यायालय ने अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मिले बोलने की स्वतंत्रता को मजबूत किया है और साथ ही अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए जा सकने वाले प्रतिबंधों को स्पष्ट और सीमित भी किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उद्देश्य हमेशा यही रहा कि कहीं दखलअंदाजी ज्यादा न हो जाए और अधिकार कमजोर न पड़े।
उन्होंने बताया कि अदालत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को केवल बोलने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे व्यक्ति की पहचान, गरिमा और आत्मसम्मान से जुड़े अधिकारों तक भी विस्तारित किया है। इसी संदर्भ में उन्होंने एक महत्वपूर्ण फैसले का जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी पहचान और जेंडर व्यक्त करने का संवैधानिक अधिकार है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है, कैसे?
गवई ने यह भी कहा कि 21वीं सदी में अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि यह पारदर्शिता को बढ़ाती है और नागरिकों को चुनावों में सही निर्णय लेने में मदद करती है। उन्होंने बताया कि हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट को डिजिटल दुनिया की चुनौतियों से जुड़े मामलों का सामना अधिक करना पड़ा है। इंटरनेट की विशाल पहुंच, गलत सूचना, निगरानी और बड़ी डिजिटल कंपनियों की बढ़ती ताकत जैसे मुद्दों ने नई कानूनी चुनौतियां खड़ी की हैं।




