10 साल सेअधिक शासन फ़िरभी छात्रों के साथ अन्याय इस अन्याय से मोदीजी को कोई फर्क नहीं पड़ता !

इस साल अप्रैल में एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर होता है
इस साल अप्रैल में एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा पीढ़ी पर निर्भर होता है, इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने युवाओं के भविष्य के लिए और उन्हें भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए तैयार करें। इसमें बड़ी भूमिका देश की शिक्षा प्रणाली की भी होती है, इसलिए हम देश की शिक्षा प्रणाली को 21वीं सदी की जरूरतों के मुताबिक आधुनिक बना रहे हैं। जब श्री मोदी यह भाषण दे रहे थे, तब उन्हें देश पर शासन करते 10 साल से अधिक का वक्त गुजर चुका था, लेकिन वे तब भी यही कह रहे थे कि हम ऐसा कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी यह नहीं कह पाए कि हम ऐसा कर चुके हैं। 10 साल तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने के दौरान नरेन्द्र मोदी ने कई ऐसे फैसले लिए जो कई दशकों में नहीं लिए जा सके थे।
जम्मू-कश्मीर के विभाजन से लेकर राम मंदिर के निर्माण तक भाजपा के घोषणापत्र में दर्ज कई वादों को प्रधानमंत्री मोदी ने पूरा किया और इसी के बूते दावा किया कि उनकी सरकार मजबूत है। लेकिन यह मजबूती शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में क्यों नहीं दिखी, यह बड़ा सवाल है। क्या भाजपा की प्राथमिकता में युवाओं की उच्च शिक्षा और बेहतर रोजगार नहीं है। अगर ऐसा है तो फिर नरेन्द्र मोदी युवाओं के भविष्य और देश के उज्ज्वल भविष्य की जो बातें करते हैं क्या वे बेमानी हैं। ये सवाल इस समय एक और वजह से उठ रहा है। इस साल फरवरी में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सत्र 2025-26 के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति (एनओएस) योजना के लिए आवेदन मंगाए थे।
मंत्रालय ने बताया था कि यह छात्रवृत्ति विशेष रूप से उन छात्रों के लिए है जो वित्तीय कठिनाइयों के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत चुने गए छात्रों को ट्यूशन फीस, रहने की व्यवस्था, स्वास्थ्य बीमा और यात्रा खर्च जैसी सुविधाएं प्रदान की जाएंगी, जिससे वे विश््व स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकें और अपने करियर को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकें। यह सब पढ़ने-सुनने में कितना लुभावना लगता है कि मेधावी छात्रों को श्रेष्ठ संस्थानों से शिक्षा हासिल करने का अवसर मिले, इसमें आर्थिक बाधा न आए, इसका ख्याल सरकार रख रही है। कायदे से हर लोककल्याणकारी सरकार की यही जिम्मेदारी भी होती है। लेकिन फिलहाल ये सारी बातें आकाश कु सुम ही साबित हो रही हैं। क्योंकि सत्र 2025-26 के लिए राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति (एनओएस) योजना के लिए पहले दौर में जिन 106 उम्मीदवारों का चयन किया गया है, उनमें केवल शीर्ष 40 छात्रों को ही तुरंत प्रोविजनल पुरस्कार पत्र जारी किए जाएंगे। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने 1 जुलाई को जो अधिसूचना जारी की है, उसके अनुसार, शेष 66 उम्मीदवारों को ‘उपलब्ध निधियों के आधार पर’ आगे के विचार के लिए रखा गया है।
मतलब 66 होनहार छात्रों का भविष्य अब इस बात पर टिका है कि सरकार के पास उन्हें विदेशों में पढ़ाने के लिए फंड है या नहीं। बता दें कि इस छात्रवृत्ति के लिए 19 मार्च से 27 अप्रैल के बीच एनओएस पोर्टल पर कुल 440 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिसमें से आवेदनों की जांच के बाद 106 अभ्यर्थियों का चयन किया गया, जबकि 64 अन्य पात्र होने के बावजूद चयनित नहीं हो सके। मंत्रालय ने कहा कि ये 64 आवेदक विश्वविद्यालयों की वैश्विक (क्यूएस) रैंकिंग, राज्यवार कोटा और श्रेणी-विशेष आरक्षण जैसे कारणों से चयन से वंचित रह गए। वहीं 270 आवेदनों को अयोग्यता, अधूरे दस्तावेज या अन्य कारणों से खारिज कर दिया गया।
जिन्होंने सारे दस्तावेज के साथ आवेदन नहीं किया, उनका खारिज होना तो वाजिब है। मगर जो छात्रवृत्ति पाने के काबिल हैं, उन्हें किसी बहाने से चयन से बाहर करना छात्रों के साथ नाइंसाफी है। और उससे भी बढ़ी नाइंसाफी तो यह है कि जिनका चयन हो गया है, उन्हें सरकार के पास धन न होने के कारण बाहर पढ़ने से रोका जा रहा है। और यह सब उस सरकार में हो रहा है, जो गैरजरूरी चीजों में बेतहाशा पैसे बहा रही है। अभी दो दिनों में कांवड़ यात्रा शुरु हो जाएगी। इस बार दिल्ली सरकार ने कांवड़ समितियों को 50 हजार से 10 लाख तक का भुगतान करने का फैसला लिया है, कांवड़ यात्रियों को मुफ्त बिजली, शिविर, खाने-पीने आदि की सुविधाएं मिलेंगी और यह सब जनता के दिए टैक्स से ही खर्च होगा। उत्तरप्रदेश में तो योगी सरकार कांवड़ यात्रियों पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाती है। 2018 में योगी सरकार ने हेलीकॉप्टर से फू ल बरसाने पर 14 लाख रूपए खर्च किए थे। अभी जो महाकुंभ लगा था, उस पर 7500 सौ करोड़ रूपए खर्च हुए। पिछले साल राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर 113 करोड़ रुपये खर्च हुए। उससे पहले मंदिर निर्माण पर 1,800 करोड़ रुपये खर्च किए गए। यह सब तो धार्मिक खर्च है। सरकार ने नए संसद भवन समेट पूरे सेंट्रल विस्टा को बनाने में 26 सौ करोड़ लोकतंत्र के नाम पर खर्च कर दिए और अब आलम ये है कि लोक भी रो रहा है और तंत्र भी बर्बाद हो रहा है। इन सारे खर्चों में अगर मामूली कटौती भी की जाती तो करोड़ों छात्रों का भविष्य संवर जाता। सरकारी आयोजनों में ही जो साज-सज्जा की जाती है, मंच को फूलों से सजाने से लेकर वीडियोग्राफी जैसे तामझामों में करोड़ों रूपए बहाए जाते हैं, जिनकी उपयोगिता केवल कुछ घंटों की होती है। अगर उन रूपयों को भी बचा लिया जाए तो देश में अच्छे शिक्षा संस्थान बनाए जा सकते हैं या पहले से बने संस्थानों को इतना अच्छा किया जा सकता है कि बच्चों को बाहर जाकर पढ़ने की मजबूरी ही नहीं रहे। लेकिन फिर वही प्राथमिकता का सवाल आ जाता है। सरकार की प्राथमिकता में दिखावा है, शिक्षा नहीं है। इसलिए बच्चों के बेहतर भविष्य की बात करने का दिखावा होता है, उसका इंतजाम नहीं राहुल गांधी ने कहा है कि, जब कोई दलित, पिछड़ा या आदिवासी छात्र पढ़ना चाहता है, तभी मोदी सरकार को बजट याद आता है। नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप में चयनित 106 में से 66 वंचित छात्रों को सिर्फ इसलिए विदेश में पढ़ने की स्कॉलरशिप नहीं दी गई क्योंकि सरकार के पास ‘फंड नहीं’ है। प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं, प्रचार और इवेंटबाजी पर हजारों करोड़ रुपये बेहिचक खर्च किए जाते हैं। बीजेपी-आरएसएस नेताओं के बच्चों को कहीं पढ़ने पर कोई अड़चन नहीं है। मगर, जैसे ही कोई बहुजन छात्र आगे बढ़ता है, पूरा सिस्टम अड़ंगा लगाने लगता है। ये सिर्फ अन्याय नहीं, भाजपा का खुला बहुजन शिक्षा विरोध है। यही मनुवादी सोच आज फिर से एकलव्य का अंगूठा मांग रही है। मोदी सरकार को यह अमानवीय फैसला तुरंत पलटना होगा और इन 66 छात्रों को विदेश भेजना ही होगा। हम बहुजनों से शिक्षा का यह मौलिक अधिकार छिनने नहीं देंगे। राहुल गांधी की आपत्ति वाजिब है, लेकिन सरकार को इस अन्याय से कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है।