‘सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच रिपोर्ट का कोई सांविधानिक महत्व नहीं’, कपिल सिब्बल का बयान

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जज यशवंत वर्मा मामले पर सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच रिपोर्ट का कोई सांविधानिक आधार नहीं है और जांच केवल संसद द्वारा न्यायाधीश जांच अधिनियम के तहत हो सकती है। उन्होंने सरकार पर जस्टिस शेखर यादव को बचाने और विपक्षी सांसदों के महाभियोग प्रस्ताव में अड़चनें डालने का आरोप लगाया। सिब्बल ने यह भी पूछा कि जब संविधान में आंतरिक (इन-हाउस) प्रक्रिया का जिक्र नहीं है, तो उस आधार पर कोई निर्णय कैसे लिया जा सकता है।
नई दिल्ली।
राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने शनिवार को कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक (इन-हाउस) जांच रिपोर्ट का कोई सांविधानिक महत्व नहीं है, क्योंकि किसी भी जज के खिलाफ जांच केवल न्यायाधीश जांच अधिनियम के तहत ही हो सकती है।
सिब्बल ने कहा, अनुच्छेद 124 के तहत अगर राज्यसभा के 50 या लोकसभा के 100 सदस्य किसी जज के खिलाफ प्रस्ताव लाते हैं, तभी एक जांच समिति बनाई जाती है और यह प्रक्रिया सिर्फ संसद के जरिए होती है। उन्होंने बताया कि संसद इस अधिनियम के तहत कानून बनाकर ही जांच समिति का गठन कर सकती है और इसी के जरिए किसी जज के गलत व्यवहार या अयोग्यता पर फैसला होता है। संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है।
आंतरिक प्रक्रिया को सिब्बल ने खारिज किया
सिब्बल ने कहा कि संविधान में कहीं भी आंतरिक जांच प्रक्रिया का जिक्र नहीं है। तो फिर आप किस आधार पर कह रहे हैं कि जस्टिस वर्मा दोषी हैं? कुछ मंत्री ऐसे बयान दे रहे हैं, जो सांविधानिक रूप से गलत है। सिब्बल ने यह भी पूछा कि अगर संसद के सदस्य ही महाभियोग प्रस्ताव लाते हैं, तो फिर सरकार के मंत्री कैसे कह सकते हैं कि वे प्रस्ताव लाएंगे? उन्होंने कहा कि सरकार इस आंतरिक प्रक्रिया पर भरोसा नहीं कर सकती, जिसका अनुच्छेद 124 से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पहले कभी भी आंतरिक रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया, लेकिन इस मामले में इसे सार्वजनिक क्यों किया गया?
क्या है मामला?
मार्च में दिल्ली में जस्टिस वर्मा के घर में आग लगने की घटना के दौरान बड़ी मात्रा में जले हुए नोटों से भरे बोरे मिले थे। जस्टिस वर्मा ने इन पैसों से अनभिज्ञता जताई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की समिति ने गवाहों के बयान और जज के बयान के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया। उसके बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना ने उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया, जहां उन्हें अब कोई न्यायिक काम नहीं सौंपा गया है।
सिब्बल ने बताया कि 13 दिसंबर 2024 को उन्होंने और कुछ विपक्षी सांसदों ने जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव दिया था। जस्टिस यादव पर आरोप है कि उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में सांप्रदायिक टिप्पणी की थी। सिब्बल ने कहा कि सरकार ने उन्हें 7 मार्च, 13 मार्च और 1 मई को ईमेल भेजने की बात कही, लेकिन उन्हें 13 मार्च को ही मेल मिला। उसमें भी हस्ताक्षर की पुष्टि नहीं थी। सिब्बल का आरोप है कि सरकार जस्टिस यादव को बचा रही है, क्योंकि उनकी सेवानिवृत्ति 2026 में है और सरकार मुद्दे को टालना चाहती है।
आगे क्या होगा?
मानसून सत्र 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चलेगा। अगर किसी भी सदन में प्रस्ताव स्वीकार होता है, तो न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 के अनुसार, तीन सदस्यीय समिति का गठन होगा। इसमें एक सुप्रीम कोर्ट का जज, एक हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होगा।