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पाकिस्तानी एयरफोर्स चीफ क्यों गए अमेरिका, क्या फिर से ट्रंप के देश को पाकिस्तान देगा एयरबेस?

पाक एयरफोर्स चीफ के अमेरिका दौरे से सवाल उठा है कि क्या पाकिस्तान फिर अमेरिकी ड्रोन और निगरानी के लिए अपने एयरबेस देगा? पर्दे के पीछे कुछ बड़ा पक रहा है.

 

हाइलाइट्स
  • एयरफोर्स चीफ का दौरा: सिर्फ रूटीन विजिट या कोई बड़ा सौदा?
  • क्या फिर शम्सी-शाहबाज जैसे एयरबेस अमेरिका को मिलेंगे?
  • अफगानिस्तान पर नजर रखने को पाक से फिर मदद चाहता है अमेरिका?
Pakistan News: इस्लामाबाद की हवा फिर से पुरानी करवट ले रही है खुद्दारी की बात करने वाले हुक्मरान अब वॉशिंगटन की तरफ उम्मीद भरी नजरें टिकाए बैठे हैं. हाल ही में पहले पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर और अब पाकिस्तान एयरफोर्स चीफ जहीर अहमद बाबर सिद्धू का अमेरिका दौराइसी बदले हुए रुख का संकेत देता है. सवाल साफ है कि क्या पाकिस्तान एक बार फिर अमेरिका को अपनी जमीन और एयरबेस देने जा रहा है? 

पाकिस्तान की आर्थिक हालत किसी से छुपी नहीं. विदेशी मुद्रा भंडार गिर चुका है, महंगाई आसमान छू रही है और सरकार कर्ज में डूबी हैं. ऐसे में अमेरिका से थोड़ी सी भी ‘दोस्ती’ पाकिस्तान को “आक्सीजन” जैसी लगती है. लेकिन सवाल वही है कि कब तक पाकिस्तान अपनी जमीन को डॉलर के बदले गिरवी रखता रहेगा?
2001 से 2025 तक: बेबसी की वही कहानी?
साल 2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ जंग छेड़ी थी, तो पाकिस्तान ने अपने कई एयरबेस खासकर शम्सी एयरबेस और शाहबाज (जैकबाबाद) मेरिकी सेना को सौंप दिए थे. ड्रोन हमलों से लेकर लॉजिस्टिक बेस तक पाकिस्तान की जमीन को अमेरिका ने ‘हथियारों की मंडी’ बना दिया.
फिर 2011 में जब अमेरिका ने एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया, पाकिस्तान की संप्रभुता की हवा निकल गई. अमेरिका को शम्सी एयरबेस खाली करने को कहा गया और तब पाकिस्तान ने बड़े गर्व से कहा “अब और नहीं.” लेकिन अब? हालात एक बार फिर वैसी ही दिशा में मुड़ते दिख रहे हैं. 

एयरफोर्स चीफ की अमेरिका यात्रा: क्या चल रहा है पर्दे के पीछे?
पाकिस्तान एयरफोर्स चीफ मुहम्मद जहीर अहमद बाबर की अमेरिका यात्रा कई सवाल खड़े करती है. यह दौरा ऐसे समय हुआ है जब अफगानिस्तान में फिर से तालिबानी गतिविधियां बढ़ रही हैं और अमेरिका को वहां अपनी ‘निगरानी’ फिर से मजबूत करनी है. सूत्रों के अनुसार यह दौरा सिर्फ सैन्य संबंध सुधारने के लिए नहीं था, बल्कि ड्रोन ऑपरेशन, इंटेलिजेंस साझेदारी और संभावित एयरबेस एक्सेस पर भी चर्चा हुई.
‘नो’ बोलने की हिम्मत पाकिस्तान में कब आएगी?
अमेरिका से हर बार मदद मांगने वाला पाकिस्तान कभी FATF से छूट चाहता है तो कभी IMF से लोन. लेकिन जब अमेरिका अपनी शर्तें रखता है तो पाकिस्तान के पास ‘ना’ कहने का हौसला नहीं होता. यही कारण है कि जनता भले देश की मजबूती के नारे लगाए लेकिन हुक्मरान चुपचाप धोखेबाजी का दरवाजा खोल देते हैं.

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