किसान आत्महत्या और अमीरों की कर्जमाफी मोदी सरकार के 11 सालों के जश्न के बीच ?

मोदी सरकार के 11 सालों के जश्न के बीच दो ऐसी खबरें आई हैं, जो एकबारगी बिल्कुल अलग-अलग दिखती हैं, लेकिन गौर से देखें तो दोनों के बीच गहरा संबंध है
मोदी सरकार के 11 सालों के जश्न के बीच दो ऐसी खबरें आई हैं, जो एकबारगी बिल्कुल अलग-अलग दिखती हैं, लेकिन गौर से देखें तो दोनों के बीच गहरा संबंध है। दोनों ही खबरें मोदी सरकार की बड़ी नाकामी को जाहिर करती हैं, बशर्ते प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का अहसास हो कि उनका काम केवल दुनिया की सैर करना और अपना प्रचार करना नहीं है, बल्कि इस देश को चलाना और यहां के नागरिकों का ख्याल रखना भी उन्हीं की जिम्मेदारी है। 11 साल पहले जब नरेन्द्र मोदी सत्ता में आए थे, तो बात-बात में 60 साल बनाम 60 महीने का जिक्र करते और दावा करते थे कि पिछली सरकारों ने कुछ नहीं किया, केवल देश को बर्बाद किया है। लेकिन अब खुद नरेन्द्र मोदी को सत्ता पर बैठे 132 महीने हो चुके हैं और इस समय जो बर्बादी दिख रही है, श्री मोदी उसे नजरंदाज कर रहे हैं।
एक खबर आई है महाराष्ट्र से जहां पिछले तीन महीनों में 767 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या एक गंभीर समस्या बन चुकी है। साल दर साल आत्महत्या से होने वाली मौतों के आंकड़े बदल रहे हैं, लेकिन सरकार इस तरफ कोई ध्यान ही नहीं दे रही है। मानो गरीब आदमी जिए या मरे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। खुद सरकार ने किसान आत्महत्या के आंकड़े विधानपरिषद में पेश किए हैं। महाराष्ट्र के राहत और पुनर्वास मंत्री मकरंद पाटिल ने एक लिखित जवाब में विधान परिषद में बताया कि जनवरी 2025 से मार्च 2025 के बीच राज्य में आत्महत्या के 767 मामले सामने आए हैं। आत्महत्या करने वाले 767 किसानों में से 373 किसान परिवार सरकार की मदद के लिए पात्र हो गए हैं, जबकि 200 किसानों के परिवारों को कोई सहायता नहीं मिल पाएगी, क्योंकि वे सरकार द्वारा तय किए गए मानदंडों पर खरे नहीं उतरे। वहीं अभी 194 मामले जांच के लिए लंबित हैं। सोचिए कैसी विडंबना है कि जिन लोगों के घरों में आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठाया गया, क्योंकि उनके लिए सम्मानित जीवन के सारे रास्ते बंद हो गए, उन लोगों को सहायता देने के लिए सरकार अब भी मानदंडों पर परख रही है। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार को 1 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देती है। इससे भी जाहिर होता है कि सरकार कहीं न कहीं अपनी ही कमजोरी को स्वीकार कर रही है। जो धनराशि किसी की जान चले जाने के बाद सहायता के तौर पर दी जा रही है, अगर वह पहले ही जिम्मेदारी के तौर पर किसानों को मिल जाए, तो कितने लोग अकाल मौतों से बचाए जा सकते हैं। लेकिन सरकार की प्राथमिकता में किसान नहीं उद्योगपति हैं। ये एक दूसरी खबर से जाहिर होता है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड (आरकॉम) के कर्ज खाते को ‘धोखाधड़ी’ के रूप में वर्गीकृत कर दिया है। इसके साथ ही बैंक ने कंपनी के पूर्व निदेशक अनिल अंबानी का नाम भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को रिपोर्ट करने का निर्णय लिया है। एसबीआई की ‘धोखाधड़ी पहचान समिति’ की जांच में पाया गया कि आरकॉम द्वारा प्राप्त लोन का इस्तेमाल निर्धारित उद्देश्यों के बजाय अन्यत्र किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, समूह की विभिन्न इकाइयों के बीच फंड के ट्रांसफर का एक जटिल जाल फैला हुआ हंंै, जो फंड डायवर्जन की ओर इशारा करता है।
बैंक ने बताया कि ‘कारण बताओ नोटिस’ के जवाबों की जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि कंपनी और उसके पूर्व निदेशक अनिल अंबानी लोन शर्तों के उल्लंघन और बैंक की संतुष्टि के लिए आवश्यक स्पष्टीकरण देने में विफल रहे। इसके चलते ऋ ण खाते को ‘धोखाधड़ी’ घोषित किया गया। धोखाधड़ी पहचान समिति की रिपोर्ट के मुताबिक आर कॉम ने 13,667.73 करोड़ का उपयोग कर्ज और दायित्वों के पुनर्भुगतान में किया है। 12,692.31करोड़ रूपए की राशि संबंधित पक्षों को भुगतान में लगाई गई। 6,265.85 करोड़ रूपए अन्य बैंकों के कर्ज चुकाने में प्रयोग हुआ। और 5,501.56 करोड़ रूपयों का भुगतान जुड़ी कंपनियों को किया गया। यानी आरकॉम ने जिन कारणों को सामने रखकर लंबा-चौड़ा कर्ज लिया, उस राशि का इस्तेमाल दूसरी जगहों पर किया है। इसलिए इसे धोखाधड़ी कहा जा रहा है।
इस रिपोर्ट के निष्कर्षों को अनिल अंबानी के वकीलों ने एकतरफा बताते हुए खारिज किया है। अपनी सफाई में तर्क पेश करना उनका अधिकार है। इस मामले में अब आरबीआई क्या करता है, क्या एसबीआई की रिपोर्ट पर अनिल अंबानी की कंपनी पर कोई कार्रवाई होती है या नहीं, ये अलग बात है। देश ने विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी जैसे लोगों को हजारों करोड़ का कर्ज लेकर देश से भाग जाने और विदेशों में ऐश का जीवन जीने के उदाहरण देखे हैं। खुद को कंगाल बताकर ये लोग जनता से लूटे धन पर अय्याशी करते हैं, क्योंकि सरकार भी इनकी अनकही मदद करती है। जिस तरह आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार को मदद करने के सरकारी मापदंड बनाए गए हैं, वैसे मापडंद इन भगोड़े अमीरों के लिए क्यों नहीं बनते, ये सवाल सरकार से पूछा जाना चाहिए। गरीब किसान को चंद हजार का कर्ज लेना भी मुश्किल होता है। बैंक के लोग सौ तरह के सवाल पूछते हैं, शर्तें रखते हैं और तब जाकर कर्ज मिलता है। अगर किसी वजह से किसान कर्ज न चुका पाए, तो उसे प्रताड़ित किया जाता है। सरकार जानती है कि कर्ज लेकर किसान देश छोड़कर तो भागेगा नहीं, लिहाजा उससे पाई-पाई वसूलने की सख्ती दिखाई जाती है। जब किसान हर तरफ से हारता है, तो फिर दुनिया छोड़कर जाने का रास्ता ही उसे नजर आता है। राहुल गांधी ने इस बारे में लिखा है कि सोचिए.. सिर्फ 3 महीनों में महाराष्ट्र में 767 किसानों ने आत्महत्या कर ली। क्या ये सिर्फ एक आंकड़ा है? नहीं। ये 767 उजड़े हुए घर हैं। 767 परिवार जो कभी नहीं संभल पाएंगे। और सरकार? चुप है। बेरुख़ी से देख रही है। किसान हर दिन कज़र् में और गहराई तक डूब रहा है – बीज महंगे हैं, खाद महंगी है, डीज़ल महंगा है.. लेकिन एमएसपी की कोई गारंटी नहीं। जब वो कज़र् माफ़ी की मांग करते हैं, तो उन्हें नजरंदाज़ कर दिया जाता है। लेकिन जिनके पास करोड़ों हैं? उनके लोन मोदी सरकार आराम से माफ कर देती है। आज की ही खबर देख लीजिए – अनिल अंबानी का रुपए 48,000 करोड़ का एसबीआई ‘फ्रॉड’। मोदी जी ने कहा था, किसान की आमदनी दोगुनी करेंगे- आज हाल ये है कि अन्नदाता की ज़िंदगी ही आधी हो रही है। ये सिस्टम किसानों को मार रहा है – चुपचाप, लेकिन लगातार और मोदी जी अपने ही पीआर का तमाशा देख रहे हैं। राहुल गांधी की बात का कोई जवाब सरकार के पास नहीं है और ऐसे में भाजपा नेता अमित मालवीय एक नया तर्क लेकर सामने आए हैं कि कांग्रेस-एनसीपी (शरद पवार) के राज में महाराष्ट्र में 55,928 किसानों ने आत्महत्या की थी। इस तरह के जवाब से जाहिर है कि भाजपा अपनी गलती स्वीकारने या किसानों के हालात सुधारने की जगह कांग्रेस को गलत साबित करने में लगी है।