CJI बीआर गवई ने रिटायरमेंट के बाद न्यायाधीशों के पॉलिटिक्स में एंट्री पर जताई चिंता, कहा- ये कदम उठाता है सवाल

CJI बीआर गवई ने कांग्रेस की दुखती रग पर रख दी हाथ, नेहरू-इंदिरा को भी लपेटा, जजों को दी यह नसीहत….
सीजेआई बीआर गवई ने यूके में कहा कि जजों की स्वतंत्रता अहम है. उन्होंने नेहरू और इंदिरा की गलती को भी याद दिलाया. उन्होंने बताया कि कैसे सीनियर जजों को दरकिनार कर चीफ जस्टिस की नियुक्ति की गई थी.
- सीजेआई गवई ने जजों की स्वतंत्रता पर जोर दिया.
- 1993 और 1998 के फैसलों ने कॉलेजियम प्रणाली स्थापित की.
- न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की प्राथमिकता को कमजोर किया गया.
कॉलेजियम सिस्टम को लेकर अक्सर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच तकरार रही है. इस बीच सीजेआई बीआर गवई ने अंग्रेजों की धरती से जजों की नियुक्ति को लेकर अहम टिप्पणी की है. चीफ जस्टिस बीआर गवई ने नेहरू और इंदिरा गांधी का नाम लेकर कांग्रेस की गलतियों को याद दिलाया है. साथ ही उन्होंने जजों की भी नसीहत दी है. उन्होंने कहा कि जजों को स्वतंत्र रहना चाहिए. जस्टिस बीआर गवई ने उदाहरण के साथ बताया कि इतिहास में कब-कब जजों को चुनने में पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी ने मनमानी की थी.
नेहरू-इंदिरा की गलती का जिक्र
जजों को क्या नसीहत
सीजेआई के मुताबिक, इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1993 और 1998 के अपने फैसलों में जजों की नियुक्ति से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या की और स्थापित किया कि भारत के चीफ जस्टिस, चार सीनिय रजजों के साथ मिलकर एक कॉलेजियम का गठन करेंगे, जो सुप्रीम कोर्ट में नियुक्तियों की सिफारिश करने के लिए जिम्मेदार होगा. चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट यानी राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द कर दिया था. उन्होंने कहा कि इस अधिनियम ने न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को प्राथमिकता देकर न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर किया है. उन्होंने कहा, ‘कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना हो सकती है, लेकिन कोई भी समाधान न्यायिक स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं आना चाहिए. जजों को बाहरी नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए.’