हम PM मोदी की डिग्री आपको दिखा सकते हैं, मगर…, जब भरी अदालत में बोला दिल्ली यूनिवर्सिटी

Delhi HC on PM Modi Degree: पीएम मोदी की डिग्री को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. डीयू ने कहा कि वह अदालत को डिग्री दिखा सकता है, लेकिन अजनबियों को नहीं. कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है.
यह राजनीतिक उदेश्य से प्रेरित
उन्होंने आरटीआई एक्टिविस्टों की ओर से आरटीआई अधिनियम का दुरुपयोग किए जाने के खिलाफ चेतावनी दी. कहा कि वर्तमान मामले में खुलासे की अनुमति देने से विश्वविद्यालय के लाखों छात्रों के संबंध में आरटीआई आवेदनों का खुलासा हो जाएगा. मेहता ने कहा, ‘यह वह उद्देश्य नहीं है जिसके लिए आरटीआई की परिकल्पना की गई है. यह अधिनियम अनुच्छेद 19(1) के लिए अधिनियमित नहीं किया गया है. यह धारा 8 के तहत (अपवादों) के अधीन पारदर्शिता के लिए है.’ उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान मामले में मांग राजनीतिक उद्देश्य से की गई है.
मेहता ने क्या-क्या दलील दी
उन्होंने कहा कि केवल इसलिए कि सूचना 20 वर्ष से अधिक पुरानी है, ‘व्यापक सार्वजनिक हित’ की कसौटी समाप्त नहीं हो जाती. मेहता ने कहा कि यह कानून उन ‘स्वतंत्र लोगों’ के लिए नहीं है जो ‘‘अपनी जिज्ञासा को संतुष्ट करने’’ या दूसरों को ‘‘शर्मिंदा’’ करने के काम में लगे हैं. प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री को सार्वजनिक करने के अनुरोध के मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने 11 फरवरी को दिल्ली उच्च न्यायालय में दलील दी थी कि उसके पास यह सूचना प्रत्ययी की हैसियत से है और जनहित के अभाव में ‘‘केवल जिज्ञासा’’ के आधार पर किसी को आरटीआई कानून के तहत निजी सूचना मांगने का अधिकार नहीं है.
आरटीआई एक्टिविस्ट ने क्या दलील दी
आरटीआई आवेदकों में से एक का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने 19 फरवरी को दलील दी थी कि किसी छात्र को डिग्री प्रदान करना कोई निजी कार्य नहीं है, बल्कि सूचना के अधिकार के दायरे में आने वाला एक सार्वजनिक कार्य है. सीआईसी के आदेश को चुनौती देते हुए डीयू ने कहा कि आरटीआई प्राधिकरण का आदेश ‘‘मनमाना’’ और ‘‘कानून की नजर में असमर्थनीय’’ है क्योंकि जिस सूचना का खुलासा करने की मांग की गई है वह ‘‘तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी’’ है.
यह तीसरे पक्ष की निजी सूचना
डीयू ने कहा है कि सीआईसी द्वारा किसी सूचना के खुलासे का निर्देश दिया जाना ‘‘पूरी तरह से अवैध’’ है जो उसके पास प्रत्ययी क्षमता में उपलब्ध है. इसने कहा कि प्रधानमंत्री सहित 1978 में बीए परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड की मांग ने आरटीआई अधिनियम को एक ‘‘मजाक’’ बना दिया है. सीआईसी ने अपने आदेश में डीयू को निरीक्षण की अनुमति देने को कहा था और उसके जन सूचना अधिकारी की इस दलील को खारिज कर दिया था कि यह तीसरे पक्ष की निजी सूचना है.