‘दोषी व्यक्ति न बना पाएं राजनीतिक पार्टी’, इस मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने टाली सुनवाई

याचिका में दावा किया गया है कि 40 प्रतिशत विधायी सदस्य या तो दोषी हैं या फिर मुकदमे का सामना कर रहे हैं। याचिका में जनप्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 29ए की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है। यही धारा चुनाव आयोग को राजनीतिक पार्टी को पंजीकृत करने का अधिकार देती है।
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने दोषी व्यक्ति को राजनीतिक पार्टी बनाने से रोक की मांग वाली याचिका पर सुनवाई टाल दी है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर अंतिम सुनवाई करने से इनकार कर दिया। सीजेआई ने कहा कि वे इस मामले में कोई फैसला सुरक्षित नहीं करना चाहते। इसके बाद पीठ ने मामले को आखिरी सुनवाई के लिए 11 अगस्त तक के लिए टाल दिया। साथ ही पक्षों को लिखित सबमिशन देने का भी निर्देश दिया है।
दोषी व्यक्ति के राजनीतिक पार्टी बनाने पर रोक लगाने की मांग
याचिका साल 2017 में दायर की गई थी, जिसमें किसी अपराध में दोषी पाए गए लोगों के राजनीतिक पार्टी बनाने और उसमें पद लेने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इससे पूर्व सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर हैरानी जताते हुए कहा था कि चुनावी राजनीति से प्रतिबंधित व्यक्ति राजनीतिक पार्टी बनाकर कैसे चुनाव में उम्मीदवारों का फैसला कर सकता है और इससे सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी कैसे कायम रखी जा सकती है।
जनप्रतिनिधि कानून की धारा 29ए की संवैधानिक वैधता पर उठाए सवाल
याचिका में दावा किया गया है कि 40 प्रतिशत विधायी सदस्य या तो दोषी हैं या फिर मुकदमे का सामना कर रहे हैं। याचिका में जनप्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 29ए की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है। यही धारा चुनाव आयोग को राजनीतिक पार्टी को पंजीकृत करने का अधिकार देती है। याचिका में कहा गया है कि कुछ लोगों का कोई भी समूह एक सामान्य का घोषणा पत्र देकर राजनीतिक पार्टी बना सकता है। याचिका में कई पार्टियों का जिक्र है, जिनके नेता विभिन्न मामलों में दोषी हैं। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से भी जवाब मांगा था।