सत्ता में बने रहने का चुनावी बजट या बहुत से लोगों की नजर में ये मोदी का मास्टर स्ट्रोक !

एनडीए सरकार ने 1 फरवरी को अपना पूर्णकालिक बजट पेश किया
एनडीए सरकार ने 1 फरवरी को अपना पूर्णकालिक बजट पेश किया। प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल के इस पहले पूर्ण बजट में सत्ता पर किसी भी तरह बने रहने की भाजपा की लालसा साफ तौर पर नजर आई। लोकसभा चुनावों में भाजपा नुकसान उठा चुकी है, तो अब इसकी भरपाई के लिए उसने मध्यवर्ग को लुभाने की कोशिश की है। इसके साथ ही इस बजट में दिल्ली और बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों का असर भी साफ दिखा। दिल्ली में तो इस समय चुनाव प्रचार जोरों पर है और ढाई दशक से सत्ता से बाहर भाजपा का दावा है कि इस बार दिल्ली की जनता उसे मौका देगी। अपने दावे को सच करने के लिए भाजपा इस बार केन्द्रीय कर्मचारियों और वेतनभोगी मध्यवर्ग को अपने पाले में करने की कोशिश में है। अभी हाल ही में आठवें वेतन आयोग का गठन इसी दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है।
अब 2025-26 के बजट में केंद्र सरकार ने बड़ा ऐलान किया है कि 12 लाख रुपये तक की सालाना आय कर मुक्त रहेगी यानी कोई आयकर नहीं देना होगा और वेतनभोगी लोगों के लिए ये सीमा 12 लाख 75 हज़ार रुपए हैं। सरकार ने करमुक्त आय की सीमा को सीधे 5 लाख रुपए बढ़ाया दिया है। जो बहुत से लोगों की नजर में मोदी का मास्टर स्ट्रोक है। क्योंकि इससे देश का मध्यवर्ग खुश हो सकता है। मध्यवर्ग के दायरे में वो लोग शामिल होते हैं, जिनकी सालाना आय 5 से 30 लाख रुपये है। पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज़ कंज़्यूमर इकानॉमी के मुताबिक़ फ़िलहाल देश की आबादी का 40 प्रतिशत मध्यवर्ग के दायरे में आता है। इस लिहाज से देखें तो लगेगा कि देश के 40 प्रतिशत लोग इस फैसले से राहत पाएंगे। लेकिन यह गणित इतना सीधा नहीं है। भारत की लगभग एक अरब चालीस करोड़ की आबादी में सिफ़र् साढ़े नौ करोड़ लोग आयकर भरते हैं और उनमें से भी छह करोड़ लोग शून्य रिटर्न दाख़िल करते हैं, इसका मतलब केवल साढ़े तीन करोड़ लोगों को इस कर में छूट का लाभ मिलेगा।
सरकार का दावा है कि यह कदम खपत और निवेश को बढ़ावा देने के लिए है। भारतीय अर्थव्यवस्था इस वक़्त मांग की कमी से जूझ रही है। भारत की आर्थिक विकास दर अभी 6.4 प्रतिशत है जो पिछले चार साल में सबसे सुस्त गति दिखा रही है। आर्थिक सर्वे में 6.3 से लेकर 6.8 प्रतिशत विकास का अनुमान लगाया जा रहा है, जबकि देश को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत तक चाहिए। सरकार इस लक्ष्य को शायद आयकर में छूट देकर हासिल करना चाहती है। वस्तुओं और सेवाओं का सबसे बड़ा उपभोक्ता समूह मध्यवर्ग होता है, लगातार बढ़ रही महंगाई और बेरोजगारी के कारण उस के हाथ में पैसा नहीं बच रहा है इसलिए ख़रीद क्षमता प्रभावित हुई और अर्थव्यवस्था में मांग घट गई है। कंपनियों ने भी कम खपत के कारण उत्पादन कम किया है और नए निवेश में भी कमी आई है। अब इस छूट से सरकार उम्मीद बांध रही है कि मांग, खपत, निवेश और बचत सारे लक्ष्य एक साथ साध लेगी। हालांकि सरकार का ही कहना है कि मध्यवर्ग को दी जा रही इस राहत से सरकारी खजाने पर करीब एक लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। प्रकारांतर से यह छूट भी उसी रेवड़ी संस्कृति का हिस्सा दिख रहा है, जिसकी मुखालफत श्री मोदी खुद करते हैं।
बहरहाल मध्यवर्ग को दी गई इस राहत से फौरी विकास तो शायद नजर आ जाए, लेकिन इसका दीर्घकालिक असर क्या पड़ेगा, ये विचारणीय है। राजकोषीय घाटे में एक लाख करोड़ का बोझ सरकार किस तरह उठाएगी या अप्रत्यक्ष तरीके से जनता से कैसे वसूली करेगी ये देखना होगा।
अभी अप्रत्यक्ष करों के जरिए भी सरकार को अच्छी-खासी कमाई होती है और उसमें केवल मध्यवर्ग नहीं गरीब से गरीब व्यक्ति को भी जेब हल्की करनी पड़ती है। ज़्यादातर वस्तुओं और सेवाओं पर ली जाने वाली जीएसटी की दरें 28 प्रतिशत तक हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ जीएसटी संग्रह लगातार बढ़ रहा है, साल 2023 की तुलना में साल 2024 में इसमें 7.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और ये दिसंबर 2024 में 1.77 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यानी सरकार अप्रत्यक्ष कर के ज़रिये लोगों की जेब से ज़्यादा पैसा निकाल रही है।
बजट में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए खास प्रावधान नहीं है। कृषि, मनरेगा, रोजगार कौशल, आंगनबाड़ी और पोषण कार्यक्रमों आदि के लिए बेहद मामूली बढ़त की गई है, जो ऊंट के मुंह में जीरा साबित होगी। लगभग 50 लाख करोड़ के आम बजट में अगर सभी तबकों के लिए यथोचित प्रावधान होते, तब तो इसे वाकई विकसित भारत का बजट कहा जा सकता था। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे 140 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं का बजट बताया और कहा कि ये हर भारतीय के सपनों को पूरा करने वाला बजट है। सवाल ये है कि क्या पांच किलो राशन के लिए कतार में खड़े 80 करोड़ लोगों के पास सपने देखने की गुंजाइश बची है।
इस बजट में बिहार के लिए मखाना बोर्ड का गठन, पटना आईआईटी का विस्तार, ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट, रार्ष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान की स्थापना, पश्चिमी कोसी नहर परियोजना जैसी अहम घोषणाएं की गई हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री ने इसे बिहारवासियों के लिए उपहार बताया है, वहीं भाजपा, जदयू, लोजपा और हम जैसे दलों के नेताओं ने भी इन घोषणाओं का स्वागत किया है। निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करने के लिए जो साड़ी पहनी, उसकी बार्डर पर मिथिला की चित्रकारी की गई है, यह साड़ी मिथिला की कलाकार दुलारी देवी द्वारा भेंट की गई है। यानी बिहार को साधने की कोशिश मोदी सरकार ने की और इसके कारण एकदम स्पष्ट हैं। इसी साल बिहार में चुनाव होने हैं, जिसमें नीतीश कुमार को साथ रखने की चुनौती भाजपा के सामने है। साथ ही सत्ता पर भी उसे काबिज होना है इसलिए उसने एक साथ दो निशाने साधे हैं। अब चुनावी नतीजे बताएंगे कि निशाने कामयाब हुए या नहीं। लेकिन बजट जैसे महत्वपूर्ण विषय और अवसर को चुनावी राजनीति का मुद्दा बनाकर भाजपा ने बता दिया कि उसके लिए सत्ता से बढ़कर कुछ नहीं है। जहां तक बात विकसित भारत की है, तो 2014 के अच्छे दिनों से चलकर 2025 में विकसित भारत तक जुमले पहुंचे हैं, जनता वहीं की वहीं ठहरी है।