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मोदी शाशनमें क्या लोकतंत्र और न्यायपालिका दोनों खतरे में हैं ?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव ने रविवार आठ दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में शिरकत की

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव ने रविवार आठ दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में शिरकत की। इस दौरान वे भाजपा के राजनैतिक एजेंडे और कट्टर हिंदुत्व की सोच को आगे बढ़ाते नजर आए। जस्टिस यादव का भाषण रविवार से ही सोशल मीडिया के जरिए सब ओर पहुंच चुका है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट तक इस भाषण को पहुंचने में शायद दो दिन लग गए। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार दोपहर को एक बयान जारी कर कहा कि उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के उस भाषण का संज्ञान लिया है। जिसे मीडिया ने प्रकाशित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने बयान में कहा- ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट से और विवरण मंगाया गया है और मामला विचाराधीन है।’ वहीं देश के वरिष्ठ वकील, राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने कहा है कि उनकी कांग्रेस, सपा, माकपा आदि दलों के कुछ नेताओं से चर्चा हुई है और वे जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी कर रहे हैं। कपिल सिब्बल ने इस मामले में प्रधानमंत्री और सत्तापक्ष का सहयोग मांगा है, साथ ही कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को देखना चाहिए कि ऐसे लोग जज न बनें।

अदालतों में बैठे लोग हिंदुत्व की पैरोकारी कर रहे हैं, यह बात संविधान की मर्यादा, न्यायपालिका की गरिमा और लोकतंत्र के तकाजों के खिलाफ जरूर है, लेकिन संघ के निर्देशों पर नरेन्द्र मोदी के बनाए नए भारत में यह चलन बढ़ता जा रहा है। इसका सार्वजनिक इजहार तो तभी हो चुका था जब पांच जजों की पीठ ने बाबरी मस्जिद तोड़ कर खाली की गई जमीन को हिंदू पक्ष के हवाले कर दिया और फिर राम मंदिर बनाने की पूरी व्यवस्था भी कर दी। बाबरी मस्जिद तोड़ना अपराध था, यह बात सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आने के बावजूद अपराधी खुले घूम रहे हैं, सम्मानित हो रहे हैं, यह नए भारत का सच है। पांच जजों की पीठ में शामिल तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई अब राज्यसभा सांसद हैं। इसी तरह कलकत्ता हाईकोर्ट में जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने इस साल मार्च में अपनी अंतरात्मा की आवाज पर इस्तीफा दे दिया और फिर दो महीने बाद ही वे भाजपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने उतर गए। फिलहाल न्यायपालिका की साख इतनी बची है कि आसंदी पर बैठे लोगों ने पद पर बने रहते हुए चुनाव लड़ना शुरु नहीं किया है। हालांकि मोदी सरकार चाहेगी तो संविधान में संशोधन कर इसे भी मुमकिन करा देगी। आखिर देश ने मुख्य न्यायाधीश रहे डी वाय चंद्रचूड़ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक साथ गणेश आरती करती तस्वीरें देश ने देखी ही हैं और इस पर सवाल उठे तो पूर्व मुख्य न्यायाधीश को इसमें कुछ गलत भी नहीं लगा। बल्कि उन्होंने तो राम मंदिर पर दिए अपने फैसले के बारे में यह भी कहा है कि उन्होंने देवी प्रतिमा के सामने बैठकर इस पर मंथन किया।

हाल के इन प्रसंगों के अलावा कई और ऐसे प्रकरण दर्ज हैं, जिनमें न्यायाधीश मोर के आंसुओं और मोरनी के गर्भवती होने पर ज्ञान दे रहे हैं या घृणा भरे भाषण देने वालों के चेहरों के भाव पढ़ रहे हैं कि उन्होंने गुस्से से ऐसा कहा या मुस्कुराते हुए जहर उगला। ये तमाम उदाहरण यह समझने के लिए काफी हैं कि अब देश के तीसरे स्तंभ न्यायपालिका में भी ऑक्टोपस की तरह हिंदुत्व की भुजाएं दसों दिशाओं से बढ़ चुकी हैं। सत्ता और प्रशासन में बैठे लोगों से देश की उम्मीदें चुकती जा रही थीं, क्योंकि यहां से जो फैसले लिए जा रहे हैं, उनमें शक्तिसंपन्न, सवर्ण तबकों को ही तवज्जो मिलती है। जो गरीब हैं, वर्ण व्यवस्था में निचले क्रम पर हैं, या अल्पसंख्यक हैं, उनके हित के लिए खैरात की तरह कुछ योजनाएं चलाई जाती हैं, ताकि वे उसी में खुश रहें। अन्याय के इस माहौल में केवल अदालत से लोगों की उम्मीदें बंधी थीं कि यहां चाहे जितनी देर लगे लेकिन जाति, धर्म, धन, लिंग सबके भेद से परे उठकर इंसाफ हासिल होगा। लेकिन जस्टिस शेखर कुमार यादव के भाषण से उस उम्मीद पर एक गहरा प्रहार हुआ है।

गौरतलब है कि विश्व हिन्दू परिषद के विधि प्रकोष्ठ (लीगल सेल) ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के लाइब्रेरी हॉल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसमें जस्टिस शेखर यादव के अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक और मौजूदा जज जस्टिस दिनेश पाठक भी शामिल हुए थे। कार्यक्रम में ‘वक्फ़ बोर्ड अधिनियम’, ‘धर्मान्तरण-कारण एवं निवारण’ और ‘समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता’ जैसे विषयों पर चर्चा हुई, जिससे समझ आता है कि इस आयोजन का मकसद क्या था। जस्टिस शेखर यादव ने ‘समान नागरिक संहिता एक संवैधानिक अनिवार्यता’ विषय पर बोलते हुए कहा कि देश एक है, संविधान एक है तो क़ानून एक क्यों नहीं है? जस्टिस यादव ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आलोचना करते हुए कहा कि हमें किसी का कष्ट देखकर कष्ट होता है, लेकिन आपके यहां ऐसा नहीं होता है। उन्होंने लोकतंत्र को धता बताते हुए यहां तक कह दिया कि हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा। यही क़ानून है।

आप यह भी नहीं कह सकते कि हाई कोर्ट के जज होकर ऐसा बोल रहे हैं। क़ानून तो भैय्या बहुसंख्यक से ही चलता है। परिवार में भी देखिए, समाज में भी देखिए। जहां पर अधिक लोग होते हैं, जो कहते हैं उसी को माना जाता है।’ इसके अलावा सांप्रदायिक नफरत जाहिर करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द कठमुल्ला का इस्तेमाल करते हुए जस्टिस शेखर यादव ने ये भी कहा कि ‘कठमुल्ले’ देश के लिए घातक हैं। ‘जो कठमुल्ला हैं, ‘शब्द’ ग़लत है लेकिन कहने में गुरेज़ नहीं है, क्योंकि वो देश के लिए घातक हैं. जनता को बहकाने वाले लोग हैं. देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं, उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।

जिस तरह से भाजपा और संघ के राजनैतिक एजेंडे को जस्टिस यादव ने आगे बढ़ाया है, उसकी जितनी निंदा की जाए, वो कम है। देश में इस भाषण की काफी चर्चा हो रही है और न्यायपालिका से जुड़े कई लोग इस पर चिंता भी जतला रहे हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि चिंता जताने से आगे बढ़कर ऐसे अलोकतांत्रिक, सांप्रदायिक और संकुचित विचार रखने वाले न्यायाधीशों पर सीधी कार्रवाई हो, वर्ना न्यायपालिका की साख तो इसमें खत्म होगी ही, लोकतंत्र को जिंदा रखना भी मुश्किल हो जाएगा।

 

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