चुनावी नतीजे : नए कलेवर में पुरानी कहानी मोदीजी हैं तो सबकुछ मुमकिन हैं !

महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के नतीजे शनिवार को आ गए। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की तरह इस बार भी मुकाबला एक-एक की बराबरी पर छूटा, यानी झारखंड में झामुमो और कांग्रेस गठबंधन को जीत मिली और महाराष्ट्र में महायुति को, जिसमें भाजपा, शिवसेना शिंदे गुट और अजित पवार की एनसीपी शामिल है
महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के नतीजे शनिवार को आ गए। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की तरह इस बार भी मुकाबला एक-एक की बराबरी पर छूटा, यानी झारखंड में झामुमो और कांग्रेस गठबंधन को जीत मिली और महाराष्ट्र में महायुति को, जिसमें भाजपा, शिवसेना शिंदे गुट और अजित पवार की एनसीपी शामिल है। भाजपा समर्थक इस जीत से बेहद गदगद हैं और फिर से पूरे देश में यह विचार फैलाया जा रहा है कि मोदी है तो मुमकिन है। हालांकि महाराष्ट्र की इस जीत को मुमकिन करने में सर्वोच्च न्यायालय से लेकर निर्वाचन आयोग जैसी संस्थाओं ने कितना योगदान दिया है, इसका विश्लेषण भी किया जाना चाहिए।
जब भाजपा ने महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस चलाकर शिवसेना और उसके बाद एनसीपी को तोड़ा, विधायकों को न जाने कौन से चमत्कारी तरीके से अपने साथ किया और फिर सरकार बनाई, तब उस सरकार को, राज्यपाल के फैसले को शीर्ष अदालत ने गलत बताया, लेकिन कमाल देखिए एक अवैध सरकार को कार्यकाल पूरा किए जाने का मौका दिया। निर्वाचन आयोग ने झारखंड के चुनाव तो समय से पहले कराए, लेकिन महाराष्ट्र के चुनाव हरियाणा के साथ न करवा कर जानबूझ कर उसे टाला, त्योहार आने का वास्ता दिया गया। इन सारे अजीब लगने वाले फैसलों के पीछे क्या भाजपा के लिए पक्षपात किए जाने की बू नहीं आती।
असल में महाराष्ट्र में भाजपा की जीत को जिस चमत्कार की तरह पेश किया जा रहा है और इस जीत पर शनिवार को नरेन्द्र मोदी भाजपा मुख्यालय पर जिस तरह फिर से यह बताने की कोशिश की कि कांग्रेस एक परजीवी पार्टी है और जिसके साथ जाती है, उसे खत्म कर देती है, उसमें कांग्रेस और गांधी परिवार को लेकर श्री मोदी का डर ही नजर आया। अब तो प्रियंका गांधी भी वायनाड से रिकार्ड जीत दर्ज करके पहुंची हैं। यानी अब सदन में राहुल गांधी और अखिलेश यादव जैसे नेता ही नहीं, प्रियंका गांधी के सवालों से भी श्री मोदी को जूझना होगा। वायनाड में कांग्रेस की जीत अप्रत्याशित नहीं थी, लेकिन मध्यप्रदेश में विजयपुर में भाजपा प्रत्याशी और मंत्री रामनिवास रावत को कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा ने हरा दिया, वहीं बुधनी में भाजपा के रमाकांत भार्गव जीत तो गए, लेकिन 13 हजार वोटों से ही आगे रहे, भाजपा के 91 हजार वोट इस बार घट गए, ये मामूली बात नहीं है। कांग्रेस ने कर्नाटक में भी उपचुनाव वाली सभी 3 सीटें जीती हैं, और प.बंगाल में आर जी कर मामले के बावजूद टीएमसी ने उपचुनाव की सभी 6 सीटें जीत ली हैं। दरअसल जिस राज्य में जिसकी सत्ता होती है, उपचुनाव के नतीजे कमोबेश उसी के पक्ष में जाते हैं, ये चलन इस बार भी दिखा। इसलिए उप्र जैसे राज्यों के उपचुनाव में जीत पर भाजपा फिर से अपना झंडा गड़ा होने के जो दावे कर रही है, वो शत प्रतिशत सच नहीं हैं।
इस बार के विधानसभा चुनाव देखकर ऐसा लगा मानो किसी हिंदी टीवी धारावाहिक का एक और एपिसोड खत्म हुआ है। हिंदी धारावाहिकों में नयी कहानियों की जगह टीआरपी बढ़ाने वाली पुरानी कहानियों को ही घिसा जाता है, इसी तरह चुनावों के इस एपिसोड में नए किरदारों, नए बैकग्राउंड नारों और नए सेट डेकोरेशन के साथ एक पुरानी कहानी को कामयाबी के साथ दोहराने में भाजपा को सफलता मिली है। कहानी वही जिसके अंत में यह कहा जाए कि चुनाव कोई भी लड़े, कहीं भी लड़े, कैसे भी लड़े, जीतेगा तो मोदी ही। इस कहानी में मुख्य किरदार भाजपा या मोदी रहते हैं, उनके इर्द-गिर्द और उनकी सुविधा के हिसाब से सारी पटकथा लिखी जाती है। महाराष्ट्र और झारखंड में इस बार भाजपा ने कुछ नए नारे दिए, कुछ नए चेहरों पर दांव लगाया, कुछ नयी योजनाओं की घोषणा की, लेकिन मूल कहानी यही थी कि किसी भी तरह जीत हासिल करना है, ताकि सत्ता में आ कर मनमानी की जा सके। भाजपा की इस कहानी के सफल मंचन में चुनाव आयोग का पूरा सहयोग मिला। विपक्ष कई गड़बड़ियों की तरफ लंबे अर्से से शिकायत कर रहा था, जैसे मतदाता सूची में गड़बड़ी है, ईवीएम को लेकर संशय है, धर्म के नाम पर वोट मांगा जा रहा है, वोट खरीदने की कोशिश हो रही है, लेकिन इन शिकायतों पर चुनाव आयोग ने ध्यान नहीं दिया और दिखाने के लिए छोटी-मोटी कार्रवाई की। नतीजा बिल्कुल वैसा ही निकला जैसा भाजपा चाहती थी।
महाराष्ट्र में उसे बड़ी जीत हासिल हुई है और झारखंड में अपनी ईमानदारी दिखाने के लिए जनादेश से खिलवाड़ नहीं किया गया और फिर से झामुमो-कांग्रेस की सरकार बनने का रास्ता तैयार हो गया। झारखंड में निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता का मुगालता बने रहने दिया। लेकिन महाराष्ट्र में ये जोखिम भाजपा नहीं उठा सकती थी, क्योंकि यहां की धारावी परियोजना में अडानी समूह के अरबों रूपए लगे हैं। हालांकि धारावी क्षेत्र में कांग्रेस को जीत मिली है। वैसे भाजपा का लक्ष्य इंडिया गठबंधन को कमजोर करना है। महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे को भी भाजपा खत्म करना चाहती है, ताकि उसके सामने चुनौती देने वाले नेता न रहें। ये सारे काम तभी संभव थे, जब महाराष्ट्र में भाजपा जीतती। इसलिए एकनाथ शिंदे और अजित पवार की पार्टियों को सफलता मिली, एकनाथ शिंदे अब सीना ठोंककर खुद को असली शिवसेना वाला बताएंगे, बाला साहेब की विरासत के असली वारिस कहलाएंगे और उधर अजित पवार भी घर तोड़ने के इल्जाम से खुद को मुक्त कर लेंगे। उनकी इस उपलब्धि पर असल में भाजपा के एहसान की परत भी चढ़ी रहेगी, जिसे देखना या न देखना एकनाथ शिंदे और अजित पवार की मर्जी है। इस बार महाराष्ट्र में भाजपा का स्ट्राइक रेट 90 प्रतिशत तक रहा। यानी जितनी सीटों पर उसने चुनाव लड़ा, उसमें केवल 10 प्रतिशत सीटें वो हारी और बाकी पर भारी जीत दर्ज की। ये चमत्कार कैसे संभव हुआ, इस पर चुनाव आयोग ही रौशनी डाल सकता है।
झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को सबसे अहम बनाकर भाजपा ने खेल करने की कोशिश की। असम से हिमंता बिस्वासरमा और मध्यप्रदेश से शिवराज सिंह चौहान ने आकर घुसपैठियों के मुद्दे को गरमाए रखा, लेकिन यहां इंडिया गठबंधन के उठाए मुद्दो ने भाजपा के खेल को चलने नहीं दिया। जनवरी में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने राजनीति के क्षेत्र में कदम रखा था। इस बार फिर उन्होंने गांडेय से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, लेकिन अपनी सीट के साथ-साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा की जीत सुनिश्चित करने में उनका बड़ा योगदान रहा। भाजपा ने जाने-अनजाने अपने लिए एक मजबूत विपक्षी नेता को तैयार कर दिया। इसी तरह हेमंत सोरेन, राहुल गांधी, तेजस्वी यादव यानी इंडिया गठबंधन ने भाजपा के सारे हथकंडों को ध्वस्त करके, जिस तरह अपनी सत्ता को बचाया है, उससे झारखंड में अब भाजपा के लिए काफी चुनौतियां बढ़ गई हैं।