महिला सुरक्षा और केन्द्र -राज्य सरकार की जवाबदेही
कोलकाता के सरकारी आर जी कर अस्पताल में एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और फिर हत्या के जघन्य अपराध पर इस समय पूरा देश आक्रोशित और आंदोलित दिखाई दे रहा है
कोलकाता के सरकारी आर जी कर अस्पताल में एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और फिर हत्या के जघन्य अपराध पर इस समय पूरा देश आक्रोशित और आंदोलित दिखाई दे रहा है। 9 अगस्त को घटी इस घटना से 16 दिसंबर 2012 के निर्भया प्रकरण की भयावह याद लोगों को आ रही है। हालांकि ऐसा नहीं है कि बलात्कार का एक घिनौना अपराध 2012 को हुआ और उसके बाद सीधे 2024 को हुआ हो, बल्कि इस बीच इस तरह के अपराध की एक लंबी श्रृंखला बन गई, जिसे सियासत ने टूटने ही नहीं दिया। यह सोचकर ही वितृष्णा होती है कि हम कितने गिरे हुए समाज में तब्दील हो चुके हैं, जिसमें एक स्त्री पर हुए भयानकतम अत्याचार को सत्ता हासिल करने का माध्यम बनाने में कोई संकोच नहीं होता। महाभारत में कुरुसभा में द्रौपदी के चीरहरण का प्रसंग अभी और न जाने कितने युगों तक चलने वाला है। क्योंकि तब जिन लोगों से उम्मीद थी कि वे राजधर्म और नैतिकता के धर्म का पालन करके एक स्त्री का साथ देंगे, उन लोगों ने आंखें मूंद ली थीं और अब भी वही रवैया नजर आ रहा है।
कोलकाता की घटना के बाद इसी तरह की घटनाएं उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार से भी सामने आईं। जहां एक दलित को, एक नाबालिग को शिकार बनाया गया। लेकिन भाजपा शासित राज्यों में घटी इन घटनाओं पर समाज में हलचल नहीं देखी जा रही है। फिलहाल सबका ध्यान प.बंगाल पर टिका है। वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस्तीफे की मांग से लेकर राज्य में राष्ट्रपति शासन तक लगाने की मांग हो चुकी है। ममता बनर्जी को महिला होने का वास्ता भी दिया जा रहा है। उनके साथ टीएमसी की मुखर सांसद महुआ मोईत्रा पर भी सवाल उठ रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस पर उंगलियां उठाई जा रही हैं और भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा बड़े हक से पूछ रहे हैं कि राहुल और प्रियंका गांधी कोलकाता कब जाएंगे।
राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ही हैं और प्रियंका गांधी तो कांग्रेस की एक सामान्य पदाधिकारी से अधिक कुछ नहीं हैं। प.बंगाल में कांग्रेस की सत्ता भी नहीं है, न ही केंद्र में कांग्रेस का शासन है, इसलिए इस मामले में कांग्रेस से सवाल किया जाना, राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है। कायदे से इस वक्त दो ही लोगों से जवाब मांगे जा सकते हैं, एक हैं ममता बनर्जी और दूसरे हैं नरेन्द्र मोदी। ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं, तो उन्हें अपने राज्य के लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी होगी, मगर इसमें जो लोग महिला वाला कोण सामने कर रहे हैं, वो संकुचित मानसिकता को ही दिखाता है।
एक महिला के साथ होने वाले अपराध के दर्द को एक महिला ही क्यों समझे, एक पुरुष क्यों न समझे, यह सवाल समाज को करना चाहिए। इस मामले में महुआ मोईत्रा पर उंगलियां उठाने का भी कोई मतलब नहीं है, क्योंकि वे एक सांसद ही हैं, न कि प.बंगाल सरकार का हिस्सा। और अगर उनसे जवाब मांगे जा रहे हैं, तो फिर यही बर्ताव सारे सांसदों के साथ किया जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने लालकिले के अपने भाषण में महिला अपराधों को रोकने और अपराधियों को दंडित करने की बात जरूर कही, लेकिन उनका रवैया भी अब तक चयनित ही रहा है। अगर प.बंगाल में पहले संदेशखाली और अब कोलकाता बलात्कार कांड पर वे सख्त फैसलों के पक्ष में खड़े दिखते हैं, तो उन्हें मणिपुर, हाथरस, कठुआ, उन्नाव और उत्तराखंड में अंकिता भंडारी जैसे मामलों पर भी यही रुख अपनाना चाहिए था।
इस पूरे प्रकरण में पीड़िता को इंसाफ दिलाने का सवाल सबसे अहम होना चाहिए था, मगर वही अब प्राथमिकता सूची में सबसे आखिरी में दिख रहा है। सियासत के कारण इसमें भ्रामक तथ्यों को फैलाने का जोर बढ़ गया है। मामला फिलहाल सीबीआई के सुपुर्द है, तो उसे उसका काम करने देना चाहिए। लेकिन नियमों, कानूनों का उल्लंघन करते हुए कहीं पीड़िता की पहचान उजागर की जा रही है, कहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट का ब्यौरा दिया जा रहा है और उसमें भी सच-झूठ का घालमेल है। इस मामले में प.बंगाल पुलिस ने अब भाजपा के दो और टीएमसी के एक नेता को नोटिस भी भेजा है। लेकिन इस नोटिस के बावजूद गलत सूचनाएं या अफवाहें फैला दी गई हैं और अब सोशल मीडिया के जरिए उन्हें देश भर में प्रसारित किया जा चुका है। इससे लोगों में नाराजगी और बढ़ गई है।
महिला सुरक्षा को लेकर समाज सतर्क रहे और सरकार से जवाबदेही चाहे, इसमें कुछ गलत नहीं है। लेकिन यह सतर्कता और उद्वेलन सत्ता हासिल करने के षड्यंत्र की तरह इस्तेमाल हों, तो फिर समाज को सोचना चाहिए कि आखिर वह क्यों अपनी भावनाओं का इस तरह दोहन होने दे रहा है। अभी निर्भया प्रकरण को लेकर फिर से कांग्रेस पर उंगलियां उठाई जा रही हैं, जबकि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने निर्भया के इलाज से लेकर दोषियों को पकड़ने तक सबमें तत्परता दिखाई। हालांकि तब बीजेपी लोगों के आक्रोश को मनमोहन सिंह और शीला दीक्षित की सरकारों के खिलाफ इस्तेमाल करने में सफल हो गई थी। अब एक बार फिर वही खेल खेला जा रहा है। जबकि अब सरकार से लोगों को पूछना चाहिए कि इस देश में महिलाएं घरों से लेकर कार्यस्थलों तक हर जगह कब सुरक्षित महसूस करेंगी।