कर्म बुरे हो तो उच्च ग्रह भी नहीं देते अपना शुभ प्रभाव

नई दिल्ली
कई जातकों के जन्मांग में एक से अधिक उच्च ग्रह होते हैं किंतु फिर भी उन्हें इसका पूर्ण शुभ प्रभाव नहीं मिलता। फिर वह ज्योतिषियों के पास भटकता रहता है और पूछता रहता है कि आखिर क्या कारण है कि उच्च ग्रह होने के बाद भी वह परेशानियों से घिरा हुआ है। इसका उत्तर ज्योतिष के ग्रंथ लाल किताब में मिलता है। लाल किताब के अनुसार जातक के कर्म बुरे होते हैं तो उच्च ग्रह भी अपना शुभ प्रभाव नहीं दिखा पाते हैं। उच्च ग्रह का व्यक्ति भी कभी-कभी अपने व्यवहार या दृष्टि से ग्रह के उच्च प्रभाव को खत्म कर देता है जिससे उच्च ग्रह भी नीच प्रभाव देने लगता है। आइए जानते हैं विस्तार से
सूर्य – प्रथम भाव में चंद्र – द्वितीय भाव में राहु- तृतीय भाव में गुरु – चतुर्थ भाव में बुध – छठे भाव में शनि – सप्तम भाव में केतु – नवम भाव में मंगल – दशम भाव में शुक्र – द्वादश भाव में
सूर्य : जन्मांग में यदि उच्च सूर्य वाला जातक अनाचार, अत्याचार में लिप्त है, अपने उच्चाधिकारी, पिता के समान व्यक्तियों से दुर्व्यवहार करता है तो उच्च का सूर्य विपरीत फल देने लगता है। चंद्र : उच्च चंद्र वाला व्यक्ति यदि अपनी माता, नानी या दादी का निरादर करता है तो उच्च चंद्र का प्रभाव क्षीण हो जाता है और जातक को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
मंगल : उच्च मंगल वाला व्यक्ति यदि अपने मित्र या भाई के साथ विश्वासघात करता है तो मंगल उच्च का होने पर भी अपना प्रभाव नहीं दे पाता। बुध : उच्च बुध वाला जातक यदि किसी देवी, बहन, कन्या या बुआ, मौसी का निरादर या अपमान करता है तो उच्च बुध का प्रभाव समाप्त हो जाता है। बृहस्पति : जन्मांग में उच्च बृहस्पति वाला जातक यदि किसी ब्राह्मण, देवता, अपने दादा, नाना या पिता का निरादर करता है या अपमान करता है तो बृहस्पति अपना उच्च प्रभाव नहीं देता है। शुक्र : उच्च शुक्र वाला व्यक्ति किसी गाय को सताए या फिर किसी स्त्री का अपमान करे, पत्नी को प्रताड़ित करे तो शुक्र का उच्च प्रभाव समाप्त हो जाता है।
शनि : उच्च शनि वाला व्यक्ति यदि मांसाहार और शराब का सेवन करे या फिर अपने ताऊ अथवा चाचा को अपमानित करता है तो उच्च का शनि अपना प्रभाव नहीं दिखा पाता।