धर्म

बैकुंठ चतुर्दशी पर जरूर जलाएं 365 दीये, जीवन बदल जाएगा !

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन बड़ी संख्या में निसंतान दंपतियों के अलावा स्थानीय और अन्य क्षेत्रों से आए श्रद्धालु यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. साथ ही केले के पत्तों पर 365 बत्तियों के साथ पूजा अर्चना भी करते हैं, जिससे कि पूजा-पाठ न करने के दोष से वे मुक्त हो सकें.

 

श्रीनगर गढ़वाल. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है. इस साल 25 नवंबर से 26 नवंबर तक बैकुंठ चतुर्दशी रहेगी. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शंकर की पूजा करने का विधान है. साथ ही इस दिन को नर-नारी पर देव कृपा का उत्तम दिन माना गया है. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में भगवान शिव के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक कमलेश्वर महादेव मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन 365 दीपक जलाने का भी एक विशेष विधान है. इसी दिन यहां निसंतान दंपतियों द्वारा संतान सुख की प्राप्ति के लिए खड़े दीये का अनुष्ठान भी किया जाता है, लेकिन 365 दीये जलाने की मान्यता इससे भिन्न है. साथ ही माना जाता है कि इस दिन पूजा करने से बैकुंठ धाम के द्वार भी खुलते हैं.

सालभर पूजा न करने के पाप से मुक्ति!

कमलेश्वर महादेव मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने बताया कि इस दिन बैकुंठ चतुर्दशी की गोदली बेला पर 365 दीये जलाने का विशेष महत्व है. वह आगे जानकारी देते हुए बताते हैं कि सनातन धर्म में प्रत्येक दिन पूजा-पाठ का विधान है. जो व्यक्ति किन्हीें कारणवश सालभर पूजा पाठ से वंचित रह जाता है, तो वह बैकुंठ चतुर्दशी के दिन गोदली बेला पर अगर 365 दीये जलाता है, तो वह सालभर के पूजा न करने के दोष से मुक्त हो जाता है. वहीं उसे इसका पुण्य भी मिलता है.

बड़ी संख्या में पहुंचते हैं श्रद्वालु

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन बड़ी संख्या में निसंतान दंपतियों के अलावा स्थानीय और अन्य क्षेत्रों से आए श्रद्धालु यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. साथ ही केले के पत्तों पर 365 बत्तियों के साथ पूजा अर्चना भी करते हैं, जिससे कि पूजा-पाठ न करने के दोष से वे मुक्त हो सकें. बैकुंठ चतुर्दशी के शुरू होने से लेकर खत्म होने तक पूरा मंदिर परिसर भगवान शिव के जयकारों और भजनों से गुंजायमान रहता है.

किस समय शुरू होगी बैकुंठ चतुर्दशी?

वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी यानी बैकुंठ चतुर्दशी 25 नवंबर दिन शनिवार को शाम 5 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी. यह अगले दिन 26 नवंबर रविवार को दोपहर 3 बजकर 57 मिनट तक रहेगी. इस दौरान भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है.

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