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“देश में बोलने की आजादी का मतलब ये नहीं कि…”: ‘सनातन’ विवाद पर मद्रास हाईकोर्ट

न्यायमूर्ति एन शेषशायी ने कहा, “अदालत सनातन धर्म के पक्ष और विपक्ष में बहुत मुखर है. साथ ही समय-समय पर होने वाली शोर-शराबे वाली बहस के प्रति सचेत है और जो कुछ भी हो रहा है, उस पर वास्तविक चिंता के साथ अदालत विचार करने से खुद को नहीं रोक सकती.” अदालत ने यह भी कहा कि स्वतंत्र भाषण घृणास्पद भाषण नहीं हो सकता.

चेन्नई (तमिलनाडु)

सनातन पर उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों पर बहस और विवाद के बीच, मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि सनातन धर्म ‘शाश्वत कर्तव्यों’ का एक समूह है. कोर्ट ने कहा कि हिंदू जीवन शैली में राष्ट्र के प्रति कर्तव्य, राजा के प्रति कर्तव्य, राजा का अपनी प्रजा के प्रति कर्तव्य, अपने माता-पिता और गुरुओं के प्रति कर्तव्य, गरीबों की देखभाल और कई अन्य कर्तव्य शामिल हैं.

न्यायमूर्ति एन शेषशायी ने कहा, “अदालत सनातन धर्म के पक्ष और विपक्ष में बहुत मुखर है. साथ ही समय-समय पर होने वाली शोर-शराबे वाली बहस के प्रति सचेत है और जो कुछ भी हो रहा है, उस पर वास्तविक चिंता के साथ अदालत विचार करने से खुद को नहीं रोक सकती.” अदालत ने यह भी कहा कि स्वतंत्र भाषण घृणास्पद भाषण नहीं हो सकता.

कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 51ए(ए) के तहत, यह प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि वो संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों और संस्थानों का सम्मान करें. इसलिए, अब सनातन धर्म के भीतर या बाहर, छुआछूत नहीं हो सकती है. अदालत ने याचिकाकर्ता एलंगोवन की ओर से दलीलों का हवाला दिया और जोर देते हुए कहा है कि कहीं भी सनातन धर्म न तो अस्पृश्यता को मंजूरी देता है और न ही इसे बढ़ावा देता है, और यह केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों पर सभी के साथ समान व्यवहार करने पर जोर देता है.

बता दें कि बीते दिनों में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने ‘सनातन धर्म’ की तुलना कोरोना वायरस, मलेरिया और डेंगू से करते हुए कहा था कि ऐसी चीजों का विरोध नहीं करना चाहिए, बल्कि इनका विनाश कर देना चाहिए.’

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