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पिछड़-अतिपिछड़ और दलितों को नेतृत्व करने लायक नहीं मानती भाजपा – राजीव रंजन

जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय महासचिव राजीव रंजन इस बात से नाराज हैं कि बिहार से सिर्फ एक व्यक्ति को दूसरे राजनीतिक दल की टीम में चुना गया। उनका मानना ​​है कि गरीब या निचली जाति के लोगों को नजरअंदाज किया जा रहा है और उन्हें नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया जा रहा है। राष्ट्रीय महासचिव राजीव रंजन ने भाजपा के केंद्रीय टीम में बिहार प्रदेश इकाई से केवल एक व्यक्ति को शामिल किए जाने को लेकर एक बार फिर निशाना साधा और कहा कि इस टीम के चयन में जिस तरह से राज्य के पिछड़-अतिपिछड़ एवं दलित समाज के नेताओं की उपेक्षा की गयी है उससे यह साफ़ जाहिर होता है कि आज भी इनमें जातिगत भेदभाव कूट-कूट कर भरा है और यह लोग पिछड़-अतिपिछड़ एवं दलित समाज के नेताओं को नेतृत्व करने लायक समझते ही नहीं है।
इसका जवाब ज़रूर देगा
रंजन ने सोमवार को बयान जारी कर भाजपा के पिछड़-अतिपिछड़ विरोधी रवैए का खुलासा करते हुए कहा कि भाजपा की केंद्रीय टीम के चयन में जिस तरह से बिहार के पिछड़-अतिपिछड़ एवं दलित समाज के नेताओं की उपेक्षा की गयी है उससे यह साफ़ जाहिर होता है कि आज भी इनमें जातिगत भेदभाव कूट-कूट कर भरा है। यह लोग पिछड़-अतिपिछड़ एवं दलित समाज के नेताओं को नेतृत्व करने लायक समझते ही नहीं है। अपनी सामंतवादी मानसिकता के कारण आज भी यह लोग इस समाज के लोगों को झंडा ढ़ने वाले मजदूरों से अधिक नहीं समझते। उन्होंने कहा कि भाजपा यह जान ले बिहार का पिछड़-अतिपिछड़ समाज इस भेदभाव को बखूबी समझ रहा है और वक्त आने पर इसका जवाब ज़रूर देगा।
भाजपा नेताओं के लिए एक जुमला भर है
जदयू महासचिव ने कहा कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व ही नहीं बल्कि राज्य नेतृत्व भी पिछड़-अतिपिछड़ समाज का कट्टर विरोधी है। इस समाज की बड़ जनसंख्या को देखते हुए यह लोग खुल कर कुछ नहीं बोलते लेकिन अंदर ही अंदर इस समाज के नेताओं को आगे बढ़ने से रोकने की साजिशों में लगे रहते हैं। उन्होंने ने कहा कि दिखावे के लिए यह लोग पिछड़-अतिपिछड़ समाज के कुछ नेताओं को आगे बढ़ने का दिखावा ज़रूर करते हैं लेकिन उन्हें भी काम करने की आजादी नहीं दी जाती। रंजन ने कहा कि ‘सबका साथ-सबका विकास’ का नारा भाजपा नेताओं के लिए एक जुमला भर है, जिसे यह पिछड़-अतिपिछड़ और दलित समाज के लोगों को ठगने के लिए करते रहते हैं। हकीकत में इनके बड़ नेता इन समाजों से आने वाले नेताओं पर न तो विश्वास करते हैं और न ही उन्हें देखना चाहते हैं। अपने नेताओं की इसी उपेक्षा से पार्टी छोड़कर जा चुके इनके अतिपिछड़ मोर्चा अध्यक्ष ने भी स्वीकार किया था कि भाजपा में अतिपिछड़ नेताओं को जूते की नोक पर रखने का रिवाज है।

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