नारी शक्ति वंदन उर्फ महिला आरक्षण चुनावी साल में हार की आशंकाओं के बीच भाजपा ने चुनावी दांव चला ?

चुनावी साल में हार की आशंकाओं के बीच जूझ रही भाजपा ने 19 सितम्बर को फिर एक चुनावी दांव चला……
चुनावी साल में हार की आशंकाओं के बीच जूझ रही भाजपा ने 19 सितम्बर को फिर एक चुनावी दांव चला। दांव पुराना था, लेकिन मोदी सरकार ने अपने चलन के अनुरूप उस पर नया मुलम्मा चढ़ाकर इस तरह पेश किया, मानो यह उसी की पहल हो। 19 सितम्बर, 2023 को संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन संसद के नए भवन से कामकाज शुरु हुआ। मोदी सरकार ने इसके लिए गणेश चतुर्थी का दिन ही क्यों चुना, ये समझना कठिन नहीं है। हिंदुओं के लिए गणेश चतुर्थी का दिन खास मायने रखता है। पहले गणेश उत्सव महाराष्ट्र के अलावा कुछ गिने-चुने राज्यों में ही धूमधाम से मनाया जाता था। लेकिन सिनेमा और टीवी की पहुंच और प्रभाव के कारण धीरे-धीरे सारे देश में इसका दायरा बढ़ने लगा। लेकिन फिर भी इस दिन को राजनैतिक तौर पर भुनाने की कोशिश अब तक किसी सरकार ने नहीं की। श्री मोदी यहां भी कीर्तिमान स्थापित कर गए।
गणेश चतुर्थी के दिन संसद में प्रवेश से पहले, वे सेंट्रल विस्टा का उद्घाटन पंडितों की मौजूदगी में मंत्रोच्चार के बीच कर चुके हैं और दोनों ही अवसरों पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का न होना कई सवालों को खड़े कर देता है। राष्ट्रपति महोदया को इन महत्वपूर्ण अवसरों पर मोदी सरकार ने क्यों शामिल नहीं किया, इसका जवाब वही दे सकते हैं। लेकिन एक बात दीवार पर लिखी इबारत की तरह स्पष्ट है कि संसद के कामकाज में भगवान और पूजा पाठ शामिल कर मोदी सरकार ने संविधान की भावना का अनादर किया, जो धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या करता है। मोदी सरकार ने लोकतंत्र के लिए सबसे जरूरी इस मंच को एक धर्म तक समेटने की कोशिश की, ताकि इसका लाभ उन्हें चुनाव में मिल सके। श्री मोदी के पास जनवरी में राम मंदिर के उद्घाटन का मौका अभी बचा है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को अपनी सत्ता के हिलने का अहसास होने लगा है और इसलिए वे इस वक्त किसी भी मौके को चूकना नहीं चाहते।
संसद में कई दशकों से महिला आरक्षण पर कानून बनाने की मांग हो रही है। मोदी सरकार ने अपने 9 सालों के कार्यकाल में तो अब तक इस पर कुछ नहीं किया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में जब साल भर भी नहीं बचे हैं, तो श्री मोदी ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम का जिक्र संसद में किया और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे सदन के पटल पर रखा। इस विधेयक के पारित होने के बाद लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या बढ़कर 181 हो जाएगी। मौजूदा समय में लोकसभा में कुल सदस्य संख्या 543 है। और इस वक्त महिला सांसदों की संख्या 82 है। विधेयक में संविधान के अनुच्छेद- 239 एए के तहत राजधानी दिल्ली की विधानसभा में भी महिलाओं को 33प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।
यानी, दिल्ली विधानसभा में भी 70 में से 23 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। अन्य राज्यों की विधानसभाओं में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाएगा। जो लोकसभा या विधानसभा सीट महिलाओं के एक चुनाव में आरक्षित होगी अगले चुनाव में वही सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं होंगी। बल्कि अन्य 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी। इसके बाद जो तीसरा चुनाव होगा उसमें बची हुई 33 प्रतिशत सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा।
इस विधेयक के ऐसे प्रावधानों को सुनकर लगता है कि देश में कोई अभूतपूर्व क्रांति होने वाली है। महिलाओं को एकदम से शक्ति मिलने वाली है। एक झटके में सारी व्यवस्था सुधर जाएगी, महिला विरोधी मानसिकता ठीक हो जाएगी। लेकिन हकीकत फिलहाल ऐसी नहीं है। विधेयक के मसौदे पर में यह लिखा है कि इसे ‘संविधान (एक सौ अ_ाईसवां संशोधन) अधिनियम 2023 के प्रारंभ होने के बाद होने वाली पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े प्रकाशित होनेÓ के बाद लागू किया जा सकेगा। इसे निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन या पुनर्निर्धारण के बाद लागू किया जाएगा। लागू होने के बाद अधिनियम 15 वर्ष तक प्रभावी रहेगा। अगली जनगणना कब तक होगी, इसका कोई ठिकाना नहीं है, क्योंकि सरकार की प्राथमिकता में शायद जनगणना के आंकड़े जुटाना है ही नहीं। जब तक जनगणना नहीं होगी, तब तक महिला, पुरुष, अजा, जजा, ओबीसी इन सब के ताजा आंकड़े नहीं आएंगे और जब आंकड़े ही नहीं होंगे, तो आरक्षण की व्यवस्था किस तरह होगी, ये बड़ा सवाल है। यह निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और कानून लागू होने के बाद पहली जनगणना के बाद ही संभव हो पाएगा।
इसका यही मतलब है कि संसद के नए भवन में प्रवेश के साथ ही मोदी सरकार ने जिस तरह महिला आरक्षण को एक नए नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम के साथ पेश किया, वो सभी दलों से विचार-विमर्श के बाद पूरी तैयारी के साथ पहले या बाद में भी पेश हो सकता था, लेकिन सरकार ने इसी दिन को चुना ताकि अपना नाम इतिहास में दर्ज करा सके। श्री मोदी ने इस विधेयक के बारे में बोलते हुए कहा भी कि ईश्वर ने इस शुभ काम के लिए शायद मुझे चुना है। इस वक्तव्य में श्रेय बटोरने की हड़बड़ी साफ दिखाई देती है। क्योंकि मोदी सरकार ये जानती है कि महिला आरक्षण का विचार राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल से ही पनपना शुरु हुआ है, और बाद की तमाम सरकारों ने अपने-अपने स्तरों पर इसे पारित करवाने की कोशिश की।
2010 में सोनिया गांधी के प्रयासों से राज्यसभा तक में महिला आरक्षण विधेयक पारित हो गया, लेकिन तब राजद, सपा जैसे दलों की कुछेक आपत्तियों के कारण लोकसभा में लटक गया। महिला आरक्षण विधेयक के लटकने-अटकने का इतिहास तो सबको ज्ञात है, लेकिन अब मोदी सरकार ने इसके नाम पर भटकाने का रास्ता भी प्रशस्त कर दिया। सरकार ने यही इशारा दिया है कि केवल वही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत है, जबकि यह पूरा सच नहीं है। आधे-अधूरे सच और आधी-अधूरी तैयारियों के साथ महिला आरक्षण या नारी शक्ति वंदन अधिनियम किस दिशा में बढ़ता है और किस दशा को प्राप्त होता है, ये जानने के लिए इंतजार करना होगा।