नशीले पदार्थों की तस्करी का आरोपी ज्यादा दिनों तक जेल में नहीं रह सकता, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

नारकोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (Narcotics Drugs and Psychotropic Substances) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी की जमानत को लेकर बड़ा बयान दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी नतीजे पर पहुंचने तक किसी भी आरोपी को जेल में कैद रखना उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट के संतोष नहीं होने तक किसी को लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता है।
यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन
जस्टिस सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एनडीपीएस एक्ट के तहत प्रतिबंध किसी की स्वतंत्रता के अधिकार पर भारी नहीं हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि किसी व्यक्ति को कितने समय के लिए जेल में रखा गया है।अगर किसी को बिना किसी फैसले के लंबे समय तक जेल में रखा जाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। एनडीपीएस अधिनियम (NDPS Act) की धारा 37(1)(B )(II) के तहत प्रावधानों की तुलना में मौलिक अधिकार अधिक महत्वपूर्ण हैं।
आरोपी की याचिका का विरोध करने का अवसर नहीं दिया जाता
देश के संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है। ऐसे में राइट टू स्पीडी ट्रायल को अनुच्छेद 21 के विस्तार के रूप में देखा जाता है। बता दें, एनडीपीएस कानून मादक पदार्थों की तस्करी से संबंधित है। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को 1 साल से 20 साल तक के कठोर कारावास की सजा हो सकती है। इसके साथ ही एक लाख तक का जुर्माना भी हो सकता है ।
बता दें, इसमें यह भी कहा गया है कि जब तक अभियोजक को आरोपी की याचिका का विरोध करने का अवसर नहीं दिया जाता है और अदालत आश्वस्त नहीं होती है कि आरोपी निर्दोष हो सकता है, उसे जमानत नहीं दी जा सकती है।