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भारत मीडिया कर्मियों के लिये दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक कहीं मोदी शाशन में बीबीसी पे कार्रवाई लोकतंत्र की नींव पर प्रहार तो नहीं ?

बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों में आयकर विभाग के सर्वे जिसके आधार पर बीबीसी पर कोई गंभीर आरोप लगाया जा सके।….

बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों में आयकर विभाग  14 फरवरी से सर्वे का काम शुरू हुआ था और लगभग 48 घंटे के बाद भी शायद अधिकारियों के हाथ ऐसा कोई सबूत नहीं लगा, जिसके आधार पर बीबीसी पर कोई गंभीर आरोप लगाया जा सके। सर्वे में बीबीसी दफ्तर की न केवल तलाशी ली गई बल्कि तमाम बीबीसी पत्रकारों के फोन कई घंटे तक जब्त रहे। अधिकारियों का कहना है कि यह सर्वे अंतरराष्ट्रीय टैक्सेशन और बीबीसी सहायक कंपनियों के ट्रांसफर प्राइस निर्धारण से संबंधित मुद्दों की जांच के लिए किया जा रहा है।

आयकर अधिकारी वित्तीय लेन-देन, कंपनी संरचना और समाचार कंपनी के बारे में अन्य विवरणों पर जवाब मांग रहे हैं और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से डेटा की नकल कर रहे हैं। ध्यान देने की बात ये है कि बीबीसी कोई औद्योगिक उपक्रम नहीं है, न ही गैर-सरकारी समाजसेवी संगठन है, जिसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता मिलती है। बीबीसी एक मीडिया संस्थान है, जहां कई सूत्रों से खबरें एकत्र की जाती हैं। इन सूत्रों में कई गोपनीय होते हैं। लेकिन इस सर्वे से उन सूत्रों के उजागर होने की आशंका है, जो स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए खतरा है। आयकर विभाग सर्वे, पूछताछ, जांच-पड़ताल जैसे सारे तकनीकी शब्द अपनी कार्रवाई के लिए इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन उसकी यह अचानक कार्रवाई एक प्रतिष्ठित, अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान पर छापेमारी की तरह ही देखी जा रही है। और केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में इस के चर्चे हो रहे हैं।

देश में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने बीबीसी कार्यालयों में आयकर अधिकारियों के सर्वे पर सवाल उठाए कि यह सब नरेंद्र मोदी पर डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ प्रसारित होने के बाद ही क्यों हुआ। सरकार चाहे तो इसे मासूमियत के साथ संयोग बता दे, चाहे इसे विपक्ष के आधारहीन आरोप कहे, चाहे सवाल उठाए कि बीबीसी पर कार्रवाई से उसे तकलीफ क्यों हो रही है और चाहे तो अपनी मर्जी का हवाला देते हुए कुछ भी न कहे। आखिर पहले भी कई गंभीर सवालों के जवाब देना सरकार ने जरूरी नहीं समझा। लोकतंत्र में मौन की ताकत को एक नए अंदाज में सरकार दिखा रही है।

सरकार चाहे जिस रास्ते पर चले, लेकिन दुनिया के जिन देशों में लोकतंत्र अभी सांसें ले रहा है और जहां मीडिया आजादी महसूस कर सकता है, उन देशों के मीडिया मंचों पर इस कार्रवाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं। और लगभग सभी मीडिया प्रतिष्ठानों में आयकर विभाग के सर्वे को बीबीसी की डाक्यूमेंट्री विवाद से जोड़ा जा रहा है। वैसे सरकार ने इस डाक्यूमेंट्री के भारत में प्रदर्शन पर पहले ही रोक के आदेश दे दिए हैं। एक याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी, जिसमें बीबीसी पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग की गई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इस याचिका को ‘पूरी तरह से गलत’ बताते हुए खारिज कर दिया था। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डॉक्यूमेंट्री के लिंक को ब्लॉक करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अप्रैल में सुनवाई होनी है और इस पर क्या फैसला होता है, ये देखना दिलचस्प होगा।

बीबीसी पर आयकर की कार्रवाई के प्रकरण से विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की स्थिति पर क्या फर्क पड़ेगा, ये भी गौरतलब रहेगा। वैसे पिछले साल 2022 में जो रैंकिंग आई थी, उसमें भारत 180 देशों में 142वें में से आठ पायदान गिरकर 150वें स्थान पर आ गया था। भारत 2016 के सूचकांक में 133वें स्थान पर था इसके बाद से उसकी रैंकिंग में लगातार गिरावट आ रही है।

रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर इस सूचकांक को तैयार करता है और इसमें प्रत्येक देश या क्षेत्र के स्कोर का मूल्यांकन पांच प्रासंगिक संकेतकों का उपयोग करके किया जाता है, जिनमें राजनीतिक संदर्भ, कानूनी ढांचा, आर्थिक संदर्भ, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ और सुरक्षा शामिल हैं। इन मानदंडों के आधार पर पिछले साल की रिपोर्ट में कहा गया है कि रैंकिंग में गिरावट के पीछे का कारण ‘पत्रकारों के खिलाफ हिंसा’ और ‘राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण मीडिया’ में वृद्धि होना है।

सूचकांक के अनुसार, भारत में मीडिया लोकतांत्रिक रूप से प्रतिष्ठित राष्ट्रों की तुलना में ‘ते•ाी से सत्तावादी और या राष्ट्रवादी सरकारों’ के दबाव का सामना कर रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत मीडियाकर्मियों के लिये भी दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है। पत्रकारों को पुलिस हिंसा, राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा घात लगाकर हमला करने और आपराधिक समूहों या भ्रष्ट स्थानीय अधिकारियों द्वारा घातक प्रतिशोध सहित सभी प्रकार की शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है।

इस रिपोर्ट का संज्ञान अगर गंभीरता से लिया जाता तो हालात सुधारने की कोशिश होती। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि अब बात देश के कुछ मीडिया संस्थानों पर कार्रवाई से होते हुए अंतरराष्ट्रीय संस्थान तक पहुंच गई है। सरकार पर सवाल उठे तो बदले में इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल की याद समर्थकों द्वारा दिलाई जाने लगी। जबकि उस दौर में जनसंघ के कई नेताओं ने आपातकाल का यथाशक्ति विरोध किया था। जो बात तब गलत थी, वो अब सही कैसे हो सकती है। वैसे देश में प्रेस की स्वतंत्रता कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत संरक्षित है, जिसके अनुसार ‘सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा’। रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य,1950 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव है। आज उसी नींव के कमजोर होने का डर कायम हो गया है।

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