देश में लोकतंत्र के ज़िंदा रहने के लिए स्वतंत्र मीडिया की आवश्यकता है:असदुद्दीन ओवैसी

एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि देश में लोकतंत्र के ज़िंदा रहने के लिए स्वतंत्र मीडिया की आवश्यकता है.
उन्होंने नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री का भी ज़िक्र किया और कहा कि ‘मोदी सरकार इस डॉक्यूमेंट्री को लेकर परेशान क्यों है, वो तो ऐतिहासिक सच्चाई है.’
कांग्रेस पार्टी ने इसे अघोषित आपातकाल कहा था.
मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा था, “ये तलाशी क़ानून के दायरे में हैं और इसकी टाइमिंग का सरकार से कोई लेना-देना नहीं है.”
सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी इस मामले में कहा था कि ‘कोई भी क़ानून से ऊपर नहीं है.’
पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा था, “आयकर विभाग बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ़्तरों में सर्वे के बारे में विस्तार से जानकारी देगा.”

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दूसरी ओर कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा था, “हम अदानी के मामले में जेपीसी की मांग कर रहे हैं और सरकार बीबीसी के पीछे पड़ी है. विनाशकाले विपरीत बुद्धि.”
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी आयकर विभाग की कार्रवाई पर सवाल उठाए.
भारत में एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया और प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने भी इस कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने इसे सरकार की ओर से डराने वाली कार्रवाई कहा है.
अमेरिका में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने बीबीसी पर जाँच के सवाल पर कहा कि ‘इस मामले पर आपको भारत सरकार के पास जाना चाहिए.’
लेकिन अपने नियमित प्रेस कॉन्फ़्रेंस में नेड प्राइस ने ये भी कहा, “इस जाँच पर ख़ास तौर पर बात किए बिना व्यापक बात ये है कि हम दुनिया भर में स्वतंत्र प्रेस के महत्व का समर्थन करते हैं.”

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डॉक्यूमेंट्री
बीबीसी ने हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया था, जिसके कुछ हफ़्ते बाद नई दिल्ली और मुंबई स्थित दफ़्तरों की तलाशी ली गई.
हालाँकि ये डॉक्यूमेंट्री भारत में प्रसारण के लिए नहीं थी.
यह डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर थी. उस समय भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
इस डॉक्यूमेंट्री में कई लोगों ने गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाए थे.
केंद्र सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री को प्रोपेगैंडा और औपनिवेशिक मानसिकता के साथ भारत-विरोधी बताते हुए भारत में इसे ऑनलाइन शेयर करने से ब्लॉक करने की कोशिश की.
बीबीसी ने कहा था कि भारत सरकार को इस डॉक्यूमेंट्री पर अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिया गया था, लेकिन सरकार की ओर से इस पेशकश पर कोई जवाब नहीं मिला.
बीबीसी का कहना है कि “इस डॉक्यूमेंट्री पर पूरी गंभीरता के साथ रिसर्च किया गया, कई आवाज़ों और गवाहों को शामिल किया गया और विशेषज्ञों की राय ली गई और हमने बीजेपी के लोगों समेत कई तरह के विचारों को भी शामिल किया.”
बीते महीने, दिल्ली में पुलिस ने इस डॉक्यूमेंट्री को देखने के लिए इकट्ठा हुए कुछ छात्रों को हिरासत में भी लिया था.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय समेत देश की कई यूनिवर्सिटीज़ में इस डॉक्यूमेंट्री को प्रदर्शित किया गया था. हालाँकि कई जगह पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे रोकने की कोशिश की थी.