चुनावी साल में नए राज्यपालों की चुनौतियां क्या राज्यपाल संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करेंगे ?

चुनावी साल में केंद्र सरकार ने बड़ा फेरबदल करते हुए महाराष्ट्र समेत 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में राज्यपालों को बदल दिया है
चुनावी साल में केंद्र सरकार ने बड़ा फेरबदल करते हुए महाराष्ट्र समेत 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में राज्यपालों को बदल दिया है। नगालैंड में जल्द ही चुनाव होने हैं, जहां ला. गणेशन को राज्यपाल बनाया गया है, श्री गणेशन अब तक मणिपुर के राज्यपाल थे। जबकि छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुया उइके को मणिपुर में राज्यपाल बनाकर भेजा गया है। सुश्री उइके और छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार के बीच नए आरक्षण विधेयक को लेकर विवाद चल रहा था।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में दिसंबर में आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित कर दिया गया, लेकिन राज्यपाल उइके ने उन पर हस्ताक्षर नहीं किए। पिछले साल दिसंबर से लेकर अब तक इस विवाद का कोई समाधान नहीं निकला है और अब राज्यपाल ही बदल दिए गए हैं। अब नए राज्यपाल विश्व भूषण हरिचंदन इस मामले पर क्या रुख अख्तियार करते हैं, ये देखना होगा। श्री हरिचंदन अब तक आंध्रप्रदेश के राज्यपाल थे। महाराष्ट्र में भी राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच का टकराव काफी वक्त तक चर्चा में रहा, खासकर उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में।
महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे भगत सिंह कोश्यारी केवल 3 साल महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे, लेकिन इन तीन सालों में कई विवादों में वे घिरे। 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद श्री कोश्यारी ने 23 नवंबर, 2019 को तड़के देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ जिस तरह से दिलाई थी, उससे बड़ा विवाद खड़ा हो गया था।
हालांकि ये सरकार टिक ही नहीं पाई। अजीत पवार ने शरद पवार की बात मान कर भाजपा का साथ छोड़ा, इसके बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार बनी, जिसमें उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। लेकिन श्री ठाकरे विधानसभा के किसी सदन के सदस्य नहीं थे, और उन्हें उच्च सदन का सदस्य नियुक्त करने में भगत सिंह कोश्यारी ने काफी वक्त लिया था। जिस पर कई सवाल उठे थे। इसके बाद श्री कोश्यारी और राज्य सरकार के बीच कई मामलों को लेकर टकराव चलता रहा।
शिवसेना ने उन्हें बार-बार भाजपा का एजेंट बताया। लेकिन सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ, जब शिवाजी महाराज को पुराने समय का प्रतीक श्री कोश्यारी ने बताया। इसके बाद महाराष्ट्र के कई राजनैतिक दलों ने उन्हें निशाने पर लिया। श्री कोश्यारी को बार-बार अपनी सफाई देनी पड़ी। भाजपा भी रक्षात्मक मुद्रा में आ गई। और बात बढ़ते-बढ़ते श्री कोश्यारी के इस्तीफे की मांग तक जा पहुंची। कुछ वक्त पूर्व श्री कोश्यारी ने खुद ही इस्तीफे की इच्छा जतलाई थी और अब आखिरकार वे पद से मुक्त हो ही गए। अब उनकी जगह झारखंड के राज्यपाल रहे रमेश बैस ने महाराष्ट्र के राज्यपाल का पद संभाला है। श्री बैस किस तरह शिंदे सरकार के साथ-साथ महाविकास अघाड़ी के घटक दलों को संभालते हैं और विवादों पर विराम लगाते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा।
नए राज्यपालों में एक और नाम पर चर्चा हो रही है, वो हैं जस्टिस एस अब्दुल नजीर। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है। दिलचस्प बात ये है कि जस्टिस नजीर पिछले महीने की 4 तारीख को सेवानिवृत्त हुए हैं और इसके एक महीने बाद ही उन्हें राज्यपाल नियुक्त किया गया है। रामजन्मभूमि, नोटबंदी, तीन तलाक जैसे चर्चित मामलों की सुनवाई में जस्टिस नजीर शामिल रहे हैं। राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के मुकदमे के दौरान वे सुनवाई करने वाली 5 जजों की बेंच में शामिल थे। वह पीठ के एकमात्र मुस्लिम न्यायाधीश थे। उनके अलावा तत्कालीन सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जो अभी सीजेआई हैं, और जस्टिस अशोक भूषण बेंच में शामिल थे।
बेंच ने नवंबर 2019 में विवादित भूमि पर हिंदू पक्ष के दावे को मान्यता दी थी। जस्टिस नजीर ने भी राम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसके अलावा सेवानिवृत्ति से ठीक पहले जस्टिस नजीर ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया था। नोटबंदी पर सुनवाई भी पांच जजों की संविधान पीठ ने की थी, जिस में जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थीं। जस्टिस नागरत्ना के अलावा चार जजों ने नोटबंदी को सही ठहराया था। इन महत्वपूर्ण मामलों के अलावा तीन तलाक की सुनवाई के लिए गठित बेंच में भी जस्टिस नजीर शामिल रहे। अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने बहुमत के साथ तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। बेंच में अलग-अलग धर्मों के जजों को शामिल किया गया था। इसमें जस्टिस अब्दुल नजीर ने माना था कि तीन तलाक असंवैधानिक नहीं है।
गौरतलब है कि जस्टिस अब्दुल नजीर फरवरी 2017 में कर्नाटक हाई कोर्ट से पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे थे। जस्टिस अब्दुल नजीर ने कर्नाटक हाई कोर्ट में करीब 20 सालों तक बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस की थी। साल 2003 में उन्हें हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्तकिया गया था। पिछले महीने जस्टिस अब्दुल नजीर के विदाई समारोह में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने उन्हें ‘पीपल्स जज’ की उपाधि दी थी। तब जस्टिस नजीर ने अपने विदाई भाषण में संस्कृत का एक बहुत ही प्रसिद्ध श्लोक धर्मो रक्षति रक्षित: उद्धृत किया था। उन्होंने श्लोक को समझाते हुए कहा था, ‘इस दुनिया में सब कुछ धर्म पर आधारित है। धर्म उनका नाश कर देता है, जो इसका नाश करते हैं और धर्म उनकी रक्षा करता है, जो इसकी रक्षा करते हैं।’
बहरहाल, चुनाव से पहले राज्यपालों के ये फेरबदल सामान्य प्रक्रिया नहीं कहे जा सकते। खासकर तब, जबकि गैर भाजपा शासित राज्यों में सरकारों के साथ राज्यपालों के टकराव अब आम बात बनती जा रही है। संभवत: भाजपा सरकार ने किसी चुनावी रणनीति के तहत यह फैसला लिया है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के अलावा बाकी के 6 राज्यों में जब चुनाव होंगे, तब इन नयी नियुक्तियों का क्या लाभ मिलेगा, ये आने वाले वक्त में स्पष्ट हो जाएगा। फिलहाल उम्मीद की जा सकती है कि नए राज्यपाल संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करते हुए पुराने विवादों को खत्म करेंगे और नए विवादों की गुंजाइश नहीं रहने देंगे।