महाराष्ट्र

धूमिल प्रतिष्ठा को वापस नहीं ला सकती न्यायिक राहत:बॉम्बे हाईकोर्ट

,मुंबई

बेंच ने कहा कि निराधार आरोप और लंबे समय तक चली कोर्ट की कार्यवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ऐसे मामलों में व्यक्ति को गंभीर मानसिक सदमा, बदनामी और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि निराधार आरोप से प्रतिष्ठा को धूमिल करना और चरित्रहनन, न्यायिक राहत देकर भी बहाल नहीं किए जा सकते। बॉम्बे होईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक न्यायिक अधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने का आदेश देते हुए उक्त बात कही। बता दें कि न्यायिक अधिकारी की भाभी ने उनके और उनके भाई और माता-पिता के खिलाफ शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए नवंबर 2019 को जलगांव पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई थी।

जिस पर 40 वर्षीय महिला न्यायिक अधिकारी ने अपने और अपने परिवारजनों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त कराने की मांग करते हुए हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में याचिका दाखिल की। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस आरएम जोशी ने सात जनवरी को दिए अपने आदेश में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 और 19(2) में नागरिकों के लिए प्रतिष्ठा का अधिकार अभिन्न अंग है।

याचिका में कहा गया है कि वैवाहिक विवाद में याची को जबरन शामिल कर लिया गया है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर याची पर लगे आरोपों को सही भी मान लिया जाए तो भी याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच को सही नहीं ठहराया जा सकता। बेंच ने कहा कि निराधार आरोप और लंबे समय तक चली कोर्ट की कार्यवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ऐसे मामलों में व्यक्ति को गंभीर मानसिक सदमा, बदनामी और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इससे व्यक्ति के करियर पर और भविष्य पर भी गंभीर असर हो सकता है।

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि धूमिल प्रतिष्ठा, चरित्रहनन से व्यक्ति की अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच छवि खराब होती है। यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि चरित्र की बदनामी को न्यायिक राहत देकर बहाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता और उनके परिजनों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने का आदेश दिया और कहा कि कानून प्रक्रिया को निजी दुश्मनी के लिए गलत इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

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