दिल्ली

11 दोषियों की रिहाई मामले में बिलकिस बानो को सुप्रीम कोर्ट से झटका, रिव्यू याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 के फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए दायर बिलकिस बानो की याचिका को खारिज किया. सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में कहा था कि गुजरात सरकार के पास 11 दोषियों के क्षमा आवेदनों पर फैसला करने का अधिकार है, भले ही मुकदमा महाराष्ट्र में किया गया था.

11 दोषियों की रिहाई पर फिर से नहीं होगा विचार, SC ने खारिज की बिलकिस बानो की रिव्यू याचिका

नई दिल्ली:

गुजरात में 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है. बिलकिस बानो के दोषियों की समय से पहले रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट अब कोई विचार नहीं करना चाहता. सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो की 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है. दरअसल, बिलकिस बानो ने अपनी याचिका में 11 दोषियों को रिहा करने के फैसले को चुनौती दी थी और मई 2022 के फैसले पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में कहा था कि गुजरात सरकार के पास 11 दोषियों की क्षमा आवेदनों पर फैसला करने का अधिकार है, भले ही मुकदमा महाराष्ट्र में किया गया था. याचिका खारिज होने से पहले इस मामले पर त्वरित सुनवाई की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आप बार-बार एक ही मामले की मेंशनिंग मत करिए. यह बहुत परेशान करने वाला है.

दरअसल, पीड़िता बिलकिस बानो ने 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और सभी दोषियों को फिर से जेल भेजने की मांग की थी. इससे पहले बिलकीस बानो की याचिका पर सुनवाई से जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने खुद को अलग कर लिया था.

बता दें कि इससे पहले बिलकिस बानो ने कहा था कि उनके और उनके परिवार के सात लोगों से जुड़े मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई ने न्याय पर उनके भरोसे को तोड़ दिया है. बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले के दोषी सभी 11 लोगों को भाजपा नीत गुजरात सरकार ने माफी नीति के तहत सजा माफी दे दी थी, जिसके बाद 15 अगस्त को उन्हें गोधरा उप-कारागार से रिहा कर दिया गया.

गुजरात सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए बिलकिस ने कहा बीते दिनों कहा था कि ‘इतना बड़ा और अन्यायपूर्ण फैसला’ लेने से पहले किसी ने उनकी सुरक्षा के बारे में नहीं पूछा और नाही उनके भले के बारे में सोचा. उन्होंने गुजरात सरकार से इस बदलने और उन्हें ‘बिना डर के शांति से जीने’ का अधिकार देने को कहा.

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