युद्धविराम के बहाने कश्मीर के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय दखलंदाजी का कया असली खेल रचा गया ?

पिछले बुधवार को शुरु हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश में एक नया जोश और उम्मीद जागी थी कि अब आतंकवाद के पीड़ितों को इंसाफ मिलेगा
पिछले बुधवार को शुरु हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद देश में एक नया जोश और उम्मीद जागी थी कि अब आतंकवाद के पीड़ितों को इंसाफ मिलेगा और पहलगाम हमले का करारा जवाब पाकिस्तान को दिया जाएगा। इस ऑपरेशन के बाद सरकार की तरफ से यही कहा भी गया कि न्याय कर दिया गया। लेकिन फिर पाकिस्तान की तरफ से आक्रमण शुरु हुए, उनका भी माकूल जवाब भारतीय सेना ने दिया। हालांकि इनमें सीमा पर बसे नागरिकों को जान-माल का काफी नुकसान हुआ, लेकिन देशभक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर इन पर सरकार से सवाल करना गुनाह मान लिया गया। इस बीच शनिवार शाम को अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खबर दी कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों पक्षों से लंबी चर्चा की है और उनकी मध्यस्थता के कारण अब युद्धविराम हो गया है।
युद्ध खत्म होगा, इस बात पर राहत तो महसूस हुई, लेकिन यह राहत क्षणिक ही थी क्योंकि कुछ ही देर में पाकिस्तान की तरफ से हमले फिर शुरु हो गए। और फिर शनिवार देर रात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने अपने राष्ट्र को संबोधित करते हुए बताया कि उनकी ऐतिहासिक जीत हुई है। यह झटका काफी नहीं था कि रविवार सुबह डोनाल्ड ट्रंप का एक और ट्वीट आ गया, जिसमें ट्रंप ने दावा किया कि अब वह हजारों सालों से चले आ रहे कश्मीर विवाद को भी सुलझाने में मदद करेंगे।
देश ने पहले भी पांच युद्ध देखे हैं, कई बड़े आतंकी हमलों के जख्म खाए हैं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ हुई साजिशों को झेला है, लेकिन शनिवार से लेकर रविवार तक जितने झटके देश को मिले, ऐसा शायद कभी नहीं हुआ। इनमें सबसे अधिक दुख की बात यह रही कि इतना कुछ होता रहा और नरेन्द्र मोदी का एक लाइन का ट्वीट, एक वाक्य का राष्ट्र के नाम संबोधन सुनाई नहीं दिया। कम से कम रविवार शाम साढ़े छह बजे तक तो यही स्थिति थी।
देश में अब तक जो नहीं हुआ, वो नरेन्द्र मोदी ने मुमकिन कर दिखाया। श्री मोदी ने देश की संप्रभुता को दांव पर लगाते हुए अमेरिका को हमारे मामले में दखलंदाजी की अनुमति दे दी। जिस अंदाज में ट्रंप ने सीज़फायर को लेकर दावे किए उससे तो यही लगता है।
भारत शांतिप्रिय देश है, बावजूद इसके भारत 1947, 1962, 1965, 1971, और 1999 पांच बार युद्ध का हिस्सा बना। इसमें 62 के चीन के आक्रमण में भारत को हार मिली, लेकिन बाकी सारे युद्ध जो पाकिस्तान के साथ लड़े गए, उसमें हमें जीत हासिल हुई। भारत ने यह हमेशा सुनिश्चित किया कि कोई तीसरा देश हमारे मामले में दखलंदाजी न करे। लेकिन इस समय 2025 में पाकिस्तान के साथ जो युद्ध की स्थिति बनी, उसमें पहले तो ऑपरेशन सिंदूर चला कर नरेन्द्र मोदी ने यह बताया कि उनकी सरकार पहले की नीतियों पर ही चलेगी और हमले पर जवाबी कार्रवाई करेगी। लेकिन सात मई को हुए आपरेशन सिंदूर में मिली सफलता के महज 3 दिन बाद ही ट्रंप ने 10 मई की शाम को अचानक दुनिया को संदेश दिया कि उनकी मध्यस्थता के कारण दोनों देश युद्धविराम पर सहमत हुए हैं। 78 सालों में कभी किसी देश ने इस तरह भारत के नाम पर अपना बयान जारी नहीं किया। यहां तक कि रूस ने भी कभी भारत के साथ दोस्ती का ऐसा नाजायज फायदा नहीं उठाया, लेकिन ट्रंप ने ऐसा किया तो जाहिर है नरेन्द्र मोदी से सवाल हो रहे हैं कि वो पूरे मामले की सच्चाई बताएं। क्या उन्होंने ट्रंप को मध्यस्थता करने कहा, अगर ऐसा है तो फिर उस विपक्ष को भरोसे में क्यों नहीं लिया, जो शुरु से इस मुद्दे पर सरकार के साथ खड़ा है। कांग्रेस की तरफ से फिर से संसद का विशेष सत्र बुलाने और सर्वदलीय बैठक में नरेन्द्र मोदी के शामिल होने की मांग की गई है, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि सरकार विपक्ष की बात सुनेगी।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने तो राष्ट्र्र के नाम संबोधन में इसे पाकिस्तान की ऐतिहासिक जीत कहा, लेकिन श्री मोदी ने तब भी देश को यह नहीं बताया कि भारत अगर जीत का दावा कर रहा है तो फिर पाकिस्तान हार क्यों नहीं मान रहा। अपने संबोधन में शरीफ ने अमेरिका, ब्रिटेन, कतर, सऊदी अरब, तुर्किए, और चीन सबका शुक्रिया अदा किया। ऐसे में भारत को बताना चाहिए कि अगर ये सारे देश पाकिस्तान के साथ खड़े थे तो क्या इन्होंने भारत का विरोध किया है।
दरअसल सीज़फायर के बहाने कश्मीर के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय दखलंदाजी का खेल रचा गया है और इसमें जाहिर हुआ है कि नरेन्द्र मोदी कूटनीतिक मोर्चे पर बुरी तरह पिछड़ चुके हैं। ट्रंप कश्मीर विवाद को जिस तरह भारत-पाक के बीच हज़ारों सालों का मुद्दा बता चुके हैं, यह न केवल तथ्यात्मक तौर पर गलत है, बल्कि बेहद शर्मनाक भी है कि कश्मीर के संवेदनशील मुद्दे को ट्रंप इतने हल्के तरीके से पेश कर रहे हैं। हजारों सालों से विवाद की बात कहकर वे भारत की छवि भी बिगाड़ रहे हैं, क्योंकि भारत का इतिहास ऐसा नहीं रहा है कि वह किसी और की जमीन को जबरन अपना बता कर कब्जा करे। यह काम अमेरिका और ब्रिटेन जैसे साम्राज्यवादी देशों का रहा है, लेकिन ट्रंप भारत का अपमान लगातार कर रहे हैं और मोदी इस पर कुछ नहीं कह रहे।
इन हालात में इंदिरा गांधी को लोगों ने याद करना शुरु किया, जिन्होंने 71 के युद्ध में अमेरिका की धरती से ही अमेरिका को चेतावनी दे दी थी कि हमारे मामले में टांग अड़ाने का उन्हें कोई हक नहीं है। अमेरिका ने तब जो धमकियां दीं, इंदिरा गांधी ने उनका कड़ा जवाब दिया, पाकिस्तान को हराया और उसके दो टुकड़े करके दुनिया का भूगोल बदल दिया। ऐसा कमाल भारत के किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया। मगर मोदी भक्तों को इंदिरा गांधी की वीरता से भी तकलीफ हो रही है। वो सवाल कर रहे हैं कि अगर ऐसा ही था तो फिर देश पर कई आतंकी हमले क्यों हुए। ऐसी मूर्खतापूर्ण बातों का कोई जवाब नहीं हो सकता। लेकिन अफसोस होता है ये देखकर कि मोदी के महिमामंडन में लगे ये भक्तनुमा पत्रकार अनजाने में अपने देश के लिए कृतघ्न हो रहे हैं।