ब्लॉग

सरकार किसी न किसी तरह नेहरूजी का नाम मिटाने की कोशिश कर रही है ?

देश में पिछले आठ सालों में लोकतंत्र पर मंडराते खतरे को कई बार, कई तरह से चिंता व्यक्त की गई

 

देश में पिछले आठ सालों में लोकतंत्र पर मंडराते खतरे को कई बार, कई तरह से चिंता व्यक्त की गई। लोकतंत्र के मूल्यों के दांव पर लगने का एक बड़ा कारण कमजोर विपक्ष को ठहराया गया। भाजपा ने सत्ता संभालने के साथ ही कई बार कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। और जहां कांग्रेस नहीं है, वहां मौजूद अन्य विपक्षी दलों को कमजोर करने में भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इससे भाजपा की मंशा साफ है कि वह अपने लिए केवल बहुमत नहीं चाहती, बल्कि काफी हद तक निरंकुशता की इच्छा भी रखती है, ताकि उसके फैसलों, नीतियों और इरादों पर सवाल न उठें। जबकि मजबूत लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त विपक्ष और असहमति का अधिकार है।

भाजपा के नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जैसे नेता भले कांग्रेस मुक्त भारत और कमजोर विपक्ष को अपनी राजनीति के लिए सही मानते हों, लेकिन भाजपा के ही एक अन्य कद्दावर नेता और केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के विचार उनसे कुछ अलग दिखाई दिए। हाल ही में पुणे में पत्रकारिता से संबंधित एक कार्यक्रम में श्री गडकरी ने कहा कि लोकतंत्र दो पहियों पर चलता है। एक पहिया सत्ताधारी पार्टी है और दूसरा पहिया विपक्ष।

लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है और इसलिए मैं दिल से महसूस करता हूं कि कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि क्षेत्रीय पार्टियों को विपक्ष की जगह लेने से बचाने के लिए कांग्रेस का मजबूत होना जरूरी है। किसी को भी सिर्फ़ चुनावी हार की वजह से निराश होकर पार्टी या विचारधारा नहीं छोड़नी चाहिए। श्री गडकरी ने साफ तौर पर किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन पार्टी छोड़ने की बात से उनका इशारा ज्योतिरादित्य सिंधिया या जितिन प्रसाद जैसे नेताओं की ओर ही था, जिन्होंने सत्ता में आने के लिए कांग्रेस छोड़ दी।

बहरहाल, नितिन गडकरी ने जो विचार व्यक्त किए, वो एक परिपक्व राजनीतिज्ञ के लगे। अतीत में इसी तरह की परिपक्वता व उदार विचार भारतीय संसद में कई बार देखने मिले हैं, जब परस्पर विरोधी विचारधारा रखने वाले नेताओं ने एक-दूसरे के भाषणों या बयानों की तारीफ की है। अटलबिहारी वाजपेयी की जिस तरह तारीफ पं.नेहरू ने की, उसकी मिसाल आज भी दी जाती है। इसी तरह जब १९७७ में जनता पार्टी की सरकार बनी थी, तब साउथ ब्लॉक से पं.नेहरू की तस्वीर हटवा दी गई थी।

अटलजी उस वक्त विदेश मंत्री बने थे और उन्होंने जब पं. नेहरू की तस्वीर को उसकी निर्धारित जगह पर नहीं पाया, तो उन्होंने नाराजगी व्यक्त की। जिसके बाद तस्वीर को फिर से लगाया गया। अटल बिहारी वाजपेयी भी आजीवन कांग्रेस के विरोधी रहे, सत्ता संभालने के मौके उन्हें भी मिले, लेकिन जिस तरह की नफरत आज विपक्ष के लिए दिखाई जा रही है, वह वाकई लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। अभी मोदी सरकार ने नेहरू संग्रहालय का नाम बदलकर पीएम म्यूजियम कर दिया है। यहां देश के सभी १४ पूर्व प्रधानमंत्रियों की यादों को सहेजा जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंबेडकर जयंती यानी १४ अप्रैल को इसका उद्घाटन करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने सुनिश्चित किया है कि सभी प्रधानमंत्रियों के योगदान को मान्यता मिले। उनके इस विचार पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। वैसे भी यह देश अपने पुरखों, महापुरुषों को लेकर काफी भावुक रहता है और उन्हें समय-समय पर याद करता रहता है। लेकिन एक को याद करने के लिए दूसरे की याद मिटाना क्या जरूरी है।

मोदीजी से पहले देश में जितने भी प्रधानमंत्री हुए, उन सभी ने अपनी अलग विचारधारा के बावजूद नेहरूजी के योगदान को कमतर दिखाने या उन्हें भुलाने का कोई काम नहीं किया। क्योंकि इस सच्चाई से सब वाकिफ हैं कि आधुनिक भारत को गढ़ने में नेहरूजी की दूरदृष्टि कितनी काम आई थी। गांधीजी ने अगर उन्हें हिंद का जवाहर बनने का आशीर्वाद दिया था, तो वह अकारण नहीं था। क्योंकि गांधीजी भी जानते थे कि इस विविधता भरे देश को दो सदियों की गुलामी के बाद सहेजने, संभालने में नेहरूजी की उदार, विराट और प्रगतिशील सोच ही काम आ सकती है। सरदार पटेल, डॉ.अंबेडकर, नेताजी व कांग्रेस के भीतर ही कई बड़े नेताओं से समय-समय पर विभिन्न मसलों को लेकर नेहरूजी से मतभेद हुए, लेकिन उनमें से किसी ने भी भारत को संभालने की उनकी क्षमता पर सवाल नहीं उठाए। यही वजह है कि नेहरूजी का नाम इस देश की जड़ों में गहरे तक पैठा हुआ है। अब मोदी सरकार उस नाम को उखाड़ने पर आमादा है।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान २०१५ में एशिया-अफ्रीका के देशों के सम्मेलन की ६०वीं वर्षगांठ मनाई गई थी। इस अवसर पर बांडुंग में बड़ा सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें भारत का प्रतिनिधित्व सुषमा स्वराज ने किया था। परंतु उन्होंने अपने भाषण में नेहरूजी का नाम तक नहीं लिया। जबकि अन्य वैश्विक नेताओं ने नेहरूजी को याद किया था। हाल ही में सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सियन लूंग ने भी वहां की संसद में नेहरूजी को बड़े आदर के साथ याद किया था।

इन उदाहरणों से पता चलता है कि नेहरूजी की गिनती केवल भारत ही नहीं, दुनिया के महान राजनीतिज्ञों में होती है। जिनकी वजह से दुनिया में मानवता और लोकतंत्र के लिए बेहतर मूल्यों की स्थापना में मार्गदर्शन मिला है। विश्व के कई देश नेहरूजी को याद रख रहे हैं, लेकिन हमारी सरकार किसी न किसी तरह अपने पहले प्रधानमंत्री का नाम मिटाना चाह रही है, क्योंकि उनके विचारों से आज भी संघ के लोगों को डर लगता है। सवाल ये है कि नेहरूजी का नाम मिटाकर क्या हम भारत को जिंदा रख पाएंगे।

डोनेट करें - जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर क्राइम कैप न्यूज़ को डोनेट करें.
 
Show More

Related Articles

Back to top button