संसदीय परंपरा को तोड़ रहे हैं सभापति : खरगे

राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने गुरुवार को कहा कि संसदीय परंपरा के निर्वहन में सत्ता पक्ष तथा विपक्ष दो पहियों की तरह काम करते हैं लेकिन सभापति मनमानी करते हुए सिर्फ सत्ता पक्ष की तरफदारी करते हैं और विपक्ष की नहीं सुनते
नई दिल्ली
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने गुरुवार को कहा कि संसदीय परंपरा के निर्वहन में सत्ता पक्ष तथा विपक्ष दो पहियों की तरह काम करते हैं लेकिन सभापति मनमानी करते हुए सिर्फ सत्ता पक्ष की तरफदारी करते हैं और विपक्ष की नहीं सुनते।
खरगे ने आज यहां जारी बयान में कहा,“लोकतंत्र हमेशा दो पहियों पर चलता है। एक पहिया है सत्तापक्ष और दूसरा विपक्ष। दोनों की जरूरत होती है। सांसदों के विचारों को तो देश तब ही सुनता है जब हाउस चलता है। सोलह मई 1952 को सभापति के रूप में राज्यसभा में पहले सभापति डॉ.राधाकृष्णन जी ने सांसदों से कहा था,‘मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से हूँ।’ यह निष्पक्षता की परंपरा आपके कार्यकाल में पूरी तरह खंडित हो गयी। संसद प्रजातंत्र का पोषण घर है। संसद संसदीय मर्यादाओं का आईना है। संसद सत्ता की जबाबदेही निश्चित करने का स्थान है, जहाँ आज विपक्ष की आवाज़ का गला घोटना अब राज्यसभा में संसदीय प्रक्रिया का नियम बन गया है, जहाँ संसद की मर्यादाओं तथा नैतिकता आधारित परंपराओं का हनन अब राज्य सभा में दिनचर्या बन गई है, जहाँ प्रजातंत्र को कुचलने तथा सत्य को पराजित करने की कोशिश लगातार जारी है। संविधान के सिपाही तथा रक्षक के तौर पर हमारा निश्चय और ज़्यादा दृढ़ हो जाता है। हम न झुकेंगे, न दबेंगे, न रुकेंगे और संविधान, संसदीय मर्यादाओं तथा प्रजातंत्र की रक्षा के लिए हर कुर्बानी के लिए सदैव तत्पर रहेंगे।”
उन्होंने कहा,“इन्ही ताकतों ने मुझे आज संसद में सच्चाई बयाँ करने से रोक कर रखा, मैं देश के लोगों के समक्ष 10 बिंदु रखूँगा जिनमें पहला यह है कि संसद में सदस्यों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है लेकिन सभापति महोदय विपक्ष को लगातार टोकते हैं, उन्हें अपनी बात पूरी करने का मौका नहीं देते हैं। विपक्ष से बिना वजह प्रमाण की मांग करते हैं जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों को, मंत्रियों को और प्रधानमंत्री को कुछ भी कहने देते हैं। वो कोई भी झूठ सदन में कह दें, कोई भी फेक न्यूज़ फैला दें, उन्हें कभी नहीं रोकते लेकिन विपक्ष के सदस्यों को मीडिया की रिपोर्ट को भी प्रमाणित करने को कहते हैं। ऐसा न करने पर उन पर कार्यवाही करने की धमकी दी जाती है। दूसरा, सभापति ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए कई बार सदस्यों को थोक मे सस्पेंड किया है। कुछ सदस्यों का निलंबन सत्र पूरा होने पर भी जारी रखा था, जो नियम और परंपराओं के ख़िलाफ़ था।”
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “सभापति ने कई बार सदन के बाहर भी विपक्षी नेताओं की आलोचना की है। वो अक्सर भाजपा की दलीलें दोहराते हैं और विपक्ष पर राजनैतिक टीका टिप्पणी करते हैं। हर रोज़ ही सीनियर मेंबर्स को स्कूली बच्चों की तरह पाठ पढ़ाते है, उनके व्यवहार में संसदीय गरिमा और दूसरों का सम्मान करने का भाव नहीं दिखता है। उन्होंने इस महान पद का दुरपयोग करते हुए, पद पर आसीन होकर, अपने राजनीतिक विचारक – आरएसएस की प्रशंसा की और यहाँ तक कहा कि ‘मैं भी आरएसएस का एकलव्य हूँ’ जो की संविधान की भावना से खिलवाड़ है। अध्यक्ष सदन में और सदन के बाहर भी सरकार की अनुचित चापलूसी करते दिखते हैं। प्रधानमंत्री को महात्मा गांधी के बराबर बताना या प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी की माँग को ही ग़लत ठहराना, ये सब हम देखते आए हैं। अगर विपक्ष वॉकआउट करता है तो उस पर भी टिप्पणी करते हैं, जबकि वॉकआउट संसदीय परंपरा का ही हिस्सा है। सभापति मनमाने ढंग से विपक्ष के सदस्यों के भाषणों के पार्ट्स हटा देते हैं। यहाँ तक की नेता विपक्ष के भाषण के भी महत्वपूर्ण हिस्सों को मनमाने तरीक़े से और दुर्भावनापूर्ण रूप से हटाने का निर्देश देते रहे हैं। जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों की बेहद आपत्तिजनक बातों को भी रिकॉर्ड पर रहने देते हैं।”
उन्होंने कहा, “सभापति ने रूल 267 के तहत कभी भी किसी भी चर्चा की अनुमति नहीं दी है। विपक्षी सदस्यों को नोटिस पढ़ने की भी अनुमति नहीं देते हैं। जबकि पिछले तीन दिनों से सत्ता पक्ष के सदस्यों को नाम बुला-बुला कर रूल 267 में नोटिस पर बुलवा रहे हैं। सभापति के कार्यकाल के दौरान संसद टेलीविजन का कवरेज बिल्कुल एकतरफ़ा है। ज़्यादातर समय केवल उनकी और सत्ता पक्ष के लोग दिखाए जाते हैं। विपक्ष के किसी भी आंदोलन को ब्लैकआउट कर देते हैं। जब कोई विपक्षी नेता बोलता है तो कैमरा काफी समय के लिए चेयर पर रहता है। संसद टीवी के प्रसारण के नियम मनमाने ढंग से बदले गए हैं। सामान्य कामकाज समिति-जीपीसी की मीटिंग के बगैर बदल दिए हैं।”
राज्यसभा में विपक्ष के नेता ने कहा,“अल्पकालिक चर्चा और ध्यानाकर्षण प्रसताव अब बहुत कम लगाए जाते हैं। यूपीए के वक्त हर हफ़्ते दो ध्यानाकार्षण और एक अल्पकालिक चर्चा लगता था। अब नहीं होता। एक घंटे का प्रश्नकाल, वैधानिक प्रस्ताव भी नहीं होते। सारे बिल भी स्थायी समिति को नहीं भेजते। लोक महत्व के मुद्दे पर भी चर्चा नहीं होती है। सभापति ने कई फैसले बिल्कुल मनमाने ढंग से लिए हैं। स्टेटस शिफ्ट करना हो या वाच एंड वार्ड की व्यवस्था बदलना हो, किसी के लिए मशविरा नहीं किया। स्टेटस कमेटी की मीटिंग नहीं हुई। जीपीसी की कोई मीटिंग नहीं हुई, नियमन समिति की मीटिंग अब नहीं होती। विपक्षी सदस्यों को मंत्रियों के स्टेटमेंट पर अब सवाल नहीं पूछने देते हैं। राज्यसभा में स्टेटमेंट पर स्पष्टीकरण की परंपरा थी, वो भी बंद कर दी है।”