खेल

4 साल की उम्र में 65 किमी की रेस पूरी करने वाले बुधिया सिंह हुए गुमनाम, बोले- मैं सब भूल चुका हूं

बुधिया सिंह (Budhia Singh) ने 4 साल की उम्र में 65 किमी की रेस पूरी कर रिकॉर्ड बनाया. तब कहा जा रहा था कि वे देश के बड़े मैराथन (Marathon) रनर बनेंगे. लेकिन आज वे खेल से पूरी तरह से दूर हो चुके हैं. इतना ही नहीं वे इस मामले में बात भी नहीं करना चाहते.

नई दिल्ली.

बुधिया सिंह (Budhia Singh) नाम तो याद है. 2006 में 4 साल की उम्र में बुधिया ने पुरी से भुवनेश्वर के बीच 65 किमी की रेस पूरी करके सबका ध्यान खींचा था. तब कहा जा रहा था कि वे अगले मिल्खा सिंह बनेंगे और देश के लिए बड़े इवेंट में मेडल जीतेंगे. लेकिन आज वे कहां और क्या कर रहे हैं, कोई उनके बारे में चर्चा क्यों नहीं कर रहा है. तो आइए हम बताते हैं कि आखिर इस समय बुधिया सिंह क्या कर रहे हैं.

 

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, बुधिया सिंह अब खेल से दूर हो चुके हैं. भुवनेश्वर के भरतपुर की झुग्गियों में उनकी विधवा मां और दो बहनें एक छोटे से कमरे में रहती हैं. पिछले कई सालों से बुधिया को किसी ने दौड़ते हुए नहीं देखा है. उनके परिवार का कहना है कि सभी लाेगों ने उन्हें धोखा दिया. बुधिया की बड़ी बहन रश्मि ने कहा, ‘मेरा भाई ग्रेजुएशन करने के लिए दिल्ली में है. उसके कोच बिरंची दास से लेकर ओडिशा सरकार सभी ने उसके साथ गलत व्यवहार किया. इस कारण वह यहां नहीं रहना चाहता था.’ उन्होंने कहा कि वह एक बड़ा मैराथन धावक बन सकता था, लेकिन सिर्फ उसे इस्तेमाल किया गया और फिर भुला दिया गया.

एक अच्छा घर तक नहीं मिल सका

 

रश्मि ने आगे कहा, ‘सरकार ने उसे मदद देने का वादा किया था, लेकिन उसे एक ठीक घर तक नहीं मिला. हम किराए के घर में रहते हैं. यहां कोई नहीं रह सकता.’ रश्मि और उनकी मां सुकांति एक इंजीनियरिंग कॉलेज में काम करती हैं. बुधिया सिंह मई-जून में घर आया था. बुधिया ने फोन पर कहा, ‘क्या आप मेरे अतीत के बारे में बात करने की कोशिश कर रहे हैं? मैं इस बारे में अब बात नहीं करना चाहता. मैं सब भूल गया हूं.’ उसने अपनी पढ़ाई और आगे क्या करने वाला है, इस बारे में भी बताने से इनकार कर दिया.

 

दौड़ने की सजा मिली और मैराथन में आए

 

बुधिया सिंह का जन्म 2002 में हुआ था. पिता की मौत के बाद मां सुकांति ने उसे एक फेरीवाले को 800 रुपए में बेच दिया था. हालांकि बाद में एक एसोसिएशन की मदद से बुधिया फिर अपने घर आ गए थे. हालांकि बुधिया के दौड़ने की कहानी भी रोचक है. लोकल जूडो कोच बिरंची दास ने सजा के तौर पर बुधिया को दौड़ने के लिए कहा, लेकिन जब वे 5 घंटे बाद आए तो उसे दौड़ता देखकर दंग रह गए. इसके बाद बुधिया ने 65 किमी की रेस पूरी करके लिम्बा बुक रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया. वे 48 और मैराथन में उतरे. हालांकि बिरंची दास पर बच्चों के शोषण के आरोप लगे और उन्हें 2007 में सरकार ने एक स्पोर्ट्स हास्टल में भेज दिया. अप्रैल 2008 में उनकी हत्या कर दी गई.

 

विवाद के बाद छोड़ दिया था साई हॉस्टल

 

भुवनेश्वर के साई हास्टल में बुधिया का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. उन्हें स्प्रिंट के इवेंट पसंद नहीं थे और अन्य इवेंट में वे पिछड़ गए. खाने की क्वालिटी और ट्रेनिंग को लेकर शिकायत भी करते. बाद में एक विवाद के बाद उन्होंने हास्टल छोड़ दिया. ओडिशा के खेल मंत्री तुषार कांति बेहरा ने कहा कि उनके परिवार ने सरकार से सारे रिश्ते खत्म कर लिए. उनकी मां ने आरोप लगाया कि उनके बच्चे का शोषण हो रहा है.

 

फिल्म भी बनी बुधिया पर

2016 में बुधिया सिंह पर डायरेक्टर सौमेंद्र पांधी ने ‘बुधिया सिंह बॉर्न टू रन’ फिल्म बनाई. इसमें मनोज बाजपेयी थे. इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ बॉल फिल्म का पुरस्कार भी जीता. 2018 में मैराथन रनर एलियुड किपचोगे के कोच पैट्रिक सांग ने बुधिया को ट्रेनिंग देने की बात कही थी. हालांकि ऐसा हो नहीं सका. बुधिया के नाम पर एक ट्विटर पेज Budhiasingh_Ind है. इसमें उनके बड़े होने, दौड़ने और मैराथन में भाग लेने की फोटो हैं. इसमें उनके ओलंपिक के सपने को जिंदा रखने के लिए फंड जुटाने का लिंक भी है. हालांकि इससे अब तक सिर्फ 44, 676 रुपए की जुटाए जा सके हैं. लक्ष्य 13 लाख रुपए का है.

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