संक्रमण की गलत तस्वीर मोदी सरकार दर्शा रही है ये है भाजपा की राजनीति ?

आसमान के नीचे मौजूद कुछ विषय बेशक आप सियासी नजरिये से देखते रहें, परन्तु कुछ मुद्दे तो निश्चित ही ऐसे होते हैं जिन्हें राजनीति से ऊपर उठकर देखना और उससे निपटना चाहिये
आसमान के नीचे मौजूद कुछ विषय बेशक आप सियासी नजरिये से देखते रहें, परन्तु कुछ मुद्दे तो निश्चित ही ऐसे होते हैं जिन्हें राजनीति से ऊपर उठकर देखना और उससे निपटना चाहिये। दुर्भाग्य से हमारे देश में सियासत की यह नई प्रवृत्ति है जिसमें बेहद संवेदनशील एवं राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को भी राजनीति की छतरी के नीचे समेट लिया गया है। मानवीय जीवन के अनेक ऐसे मसले होते हैं जिन पर काम करने के लिए अपने राजनैतिक हितों को परे रखने और सियासी चश्मे को उतार देने की आवश्यकता होती है। अगर ऐसा न हुआ तो न केवल समाज को उसका नुकसान उठाना पड़ता है बल्कि वह एक खराब परम्परा बन जाती है जिसके दूरगामी परिणाम सभी को भुगतने पड़ते हैं।
हमारे संविधान निर्माताओं ने नागरिकों के साथ ही राजनीतिज्ञों के लिए भी लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुरूप व्यवहार निर्धारित किया है। लम्बे समय तक इसका निर्वाह हमारे शासकों ने किया था, लेकिन देश के वर्तमान निजाम की तासीर अलग है। स्थायी रूप से चुनावी मोड में रहने और समस्त भारत को सदा-सर्वदा के लिए अपने शासन तले लाने की महत्वाकांक्षा पालने वाली भारतीय जनता पार्टी ने देश के विचार और मुद्दे को अपनी मान्यताओं के अनुरूप ढालने की मानो मुहिम ही छेड़ी हुई है। पिछले करीब सात वर्षों से हम यही देख रहे हैं। विपक्ष विहीन भारत के निर्माण के पीछे उसकी यही मंशा एवं अवधारणा है। इस प्रवृत्ति का चरम हमें पिछले करीब डेढ़ वर्षों से जारी कोरोना-काल में देखने को मिल रहा है। जिस विषय का निपटान वैज्ञानिक एवं लोकतांत्रिक तरीके से किया जाना था, उसका प्रबंधन केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूंजीवादी सिद्धांतों, सामाजिक विखंडन और राजनैतिक भेदभाव के बूते किया है।
इसके दुष्परिणाम हम कई-कई रूपों में देख रहे हैं। पहला तो यह कि कोरोना की त्रासदी ने करोड़ों लोगों को भीषण गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी के मुंह में ढकेल दिया है। इस दौरान संसद की अनुमति के बगैर देश की सम्पत्ति अपने प्रियजनों के हाथों में औने-पौने भाव में बेचने, पीएम केयर फंड बनाने, विदेशी निवेश को देश में आने के लिए रास्ता खोलने जैसे काम बेधड़क किये गये। देश में आर्थिक विभेद जो बढ़ा है, वह सबके सामने है। देशवासी बेतरह गरीब हुए हैं। करीब 25 करोड़ नये लोग गरीबी रेखा के तहत आ गये हैं। ऐसे में देश के कुछ लोग और भी धनी हो गये हैं क्योंकि पूंजी चंद हाथों में सिमट गई है। दूसरे, मोदी एवं उनकी पार्टी ने इस आपदा का पूरा राजनैतिक फायदा उठाया है। इस दौरान वे विपरीत विचारधारा के दलों एवं व्यक्तियों को नेस्तनाबूत करने में लगे रहे, तो वहीं दूसरी तरफ अपने दल को चुनाव जिताने एवं सरकारें बनाने में लगे रहे। कोविड-19 की विभीषिका के दौरान भी चुनाव कराने, विरोधी दलों की निर्वाचित राज्य सरकारें गिराने, उसके लिए विधायकों को खरीदने में सत्ता की भूख ने मोदी सरकार व उनकी पार्टी को कोई कोताही नहीं बरतने दी। तीसरा और सबसे बड़ा नुकसान जो मोदी सरकार और उनकी पार्टी ने किया, वह है हर तरह के मतभेदों को बढ़ावा- चाहे वह जातीय भेदभाव हो या साम्प्रदायिक वैमनस्यता।
निस्संदेह, इनमें सबसे घृणास्पद हैं सामाजिक विखंडन के कुत्सित प्रयास। कोरोना के आगमन के साथ ही समाज के सुविधाभोगी व सत्ता के नजदीकी वर्ग द्वारा महामारी के प्रसार के लिए वे लाखों श्रमिक जिम्मेदार ठहराये गये जिनमें ज्यादातर गरीब वर्ग के हैं- दलित एवं समाज के निचले पायदानों पर खड़ी जातियां, ओबीसी, जनजाति के लोग। इसके बाद इसे साम्प्रदायिक रंग दिया गया। दिल्ली में तबलीगी जमात के कुछ लोगों को संक्रमित पाए जाने पर उन पर ही पूरा दोष मढ़ दिया गया। उसके पहले नये नागरिकता कानूनों के खिलाफ शाहीन बाग में चलने वाले आंदोलन को भी इसका जिम्मेदार बतलाया गया क्योंकि उनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम शामिल थे। इसके कारण देश के दो प्रमुख सम्प्रदायों में कटुता बढ़ी। बाद में दिल्ली की कोर्ट ने इसे गलत बतलाया।
केन्द्र सरकार व भाजपा का इस सिलसिले में एक और झूठ अब सामने आया है। अभी तक यह बतलाया जाता रहा है कि भाजपा प्रशासित सरकारों ने कोरोना प्रबंधन में अच्छा कार्य किया है जिससे उनके राज्यों में संक्रमण की दर काफी कम रही है। इस धारणा के विपरीत सीरोसर्वे (जो कोविड को लेकर आंकड़े जारी करता है) की ताजा रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि वामपंथी सरकार वाले केरल में 6 साल से अधिक उम्र के कोरोना से प्रभावित केवल 44 प्रतिशत पाये गये हैं, जबकि मध्यप्रदेश (भाजपा सरकार) में 79 प्रतिशत लोग संक्रमित हैं। राष्ट्रीय औसत 50 प्रतिशत का है। अब तक यह बतलाया जाता रहा है कि केरल में सबसे ज्यादा संक्रमण का असर है। राजस्थान (कांग्रेस सरकार) में 76 एवं बिहार (भाजपा गठबंधन) व उत्तर प्रदेश (भाजपा) में 71 प्रतिशत संक्रमण दर पाई गई है। सरकार द्वारा किसी राज्य के लिए ऐसा झूठ फैलाना किसी भी संकट से निपटने में देश की एकता के साथ निपटने की भावना के खिलाफ है। किसी भी सरकार एवं दल को इससे बचना चाहिए।