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बिहार की राजनीति:…तो लालू के पटना लौटते ही पलट जाएगी बिहार की सत्ता-सियासत?

बिहार में NDA नेताओं की असामान्य प्रतिक्रियाएं उनकी भी बेचैनी को दर्शाती हैं क्योंकि सत्ता पक्ष हो या विरोधी पक्ष सभी यह तो मानते ही हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, और यहां कोई भी सगा नहीं होता, बल्कि सत्ता और शक्ति का ही जोर चलता है.

5 जुलाई को राष्ट्रीय जनता दल के स्थापना दिवस पर लालू प्रसाद यादव के पटना लौटने की संभावना.

पटना.

चारा घोटाला मामले में ढाई साल तक जेल में बंद रहने के बाद जमानत पर रिहा हुए लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के पटना लौटने की खबरें सामने आ रही हैं. कहा जा रहा है कि राजद (RJD) की स्थापना के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं. बता दें कि राजद की स्थापना वर्ष 1997 में लालू प्रसाद यादव ने जनता दल (Janta Dal) से अलग होकर की थी. पार्टी ने स्थापना दिवस को प्रदेश, जिला, प्रखंड और पंचायत स्तर पर मनाने का निर्णय लिया है.  कहा जा रहा है कि इस दिन लालू प्रसाद यादव पटना में राजद कार्यकर्ताओं को संबोधित भी कर सकते हैं. हालांकि सबकी नजर उनके संबोधन से अधिक उनके उस सियासी दांव-पेंच पर रहेगी जो बिहार की सियासत (Bihar Politics) का सत्ता समीकरण उलट-पलट कर सकता है.

कुशल राजनीतिज्ञ के तौर पर लालू प्रसाद यादव को भी मालूम है कि बिहार एनडीए की सरकार में कमजोर कड़ी के तौर पर जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी भी शामिल है. इन दोनों की दलों के चार-चार विधायक हैं और इनके पाला बदलने की सूरत में बिहार में बड़ा फेरबदल हो सकता है. यही वजह है कि लालू यादव ने इन दोनों ही नेताओं से हाल में ही फोन पर भी बात की थी जिससे बिहार की सियासत मे उथल-पुथल की अटकलें लगाई जाने लगी थीं.

लालू यादव के नाम भर से क्यों है बेचैनी?
गौरतलब है कि लालू यादव फिलहाल अपनी बेटी मीसा भारती के दिल्ली आवास में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं. सूत्र बताते हैं कि लालू प्रसाद यादव दिल्ली से ही बिहार में सत्ता परिवर्तन का खेल भी खेल रहे हैं. हालांकि हकीकत यही है कि मांझी और सहनी, दोनों ही फोन पर बात होने की स्वीकारोक्ति की पर एनडीए में बिखराव की  कयासबाजियों को सिरे से खारिज भी कर दिया है. वहीं, सत्तारूढ़ खेमे की ओर से लालू के पटना आने को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि लालू कितना बड़ा खेल कर सकते हैं.

भाजपा सांसद क्यों देने लगे धमकी !
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव के पटना आने से राजनीति पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. लेकिन छवि ऐसी बनायी जा रही है जैसे वे कोई जिन्न निकालकर पार्टी का राज वापस ला देंगे. उन्होंने कहा, कि उन्हें जमानत उन्हें स्वास्थ्य के आधार पर मिली है, राजनीति के लिए नहीं. भाजपा सांसद ने यह भी कहा कि लालू यादव जेल में रह कर या जमानत मिलने पर वर्चुअल माध्यम से यदि राजनितिक गतिविधियों में शामिल होते हैं, तो इस पर सीबीआई को संज्ञान लेना चाहिए.

JDU नेताओं तीखे रिएक्शन  का क्या है सबब?
इससे पहले  तेजस्वी यादव द्वारा यह कहने पर कि नीतीश सरकार दो से तीन महीने में गिरने वाली है, पर जेडीयू के उपेंद्र कुशवाहा ने भी दावा किया था कि आगामी पांच सालों तक नीतीश कुमार की सरकार को गिराने की किसी में ताकत नहीं है. इसी तरह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यह कहा था कि बिना सीजन के ही तेजस्वी यादव आम खाना चाहते हैं. उनका यह मंसूबा पूरा नहीं होगा क्योंकि आम तो सीजन में ही पकेगा. उनके कहने का मतलब यह कि चुनाव का समय बीत चुका है, सरकार भी बन चुकी है और वे अब वे 2025 में होने वाले अगले चुनाव की तैयारी करें.

लालू के लौटने पर होगा पाला बदल का खेल!
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि  जेडीयू और भाजपा नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाओं से तो यही लगता है कि लालू यादव के पटना लौटने की खबरों से कहीं न कहीं सत्तारूढ़ दल में अंदरुनी बेचैनी जरूर है. वजह बहुमत के लिए जरूरी सीटों का कम अंतर तो है ही, साथ ही नेताओं का वह चरित्र भी जो मौका मिलते ही पाला बदल की राजनीति करने से कतई परहेज नहीं करते. मांझी और सहनी जैसे नेताओं ने कई बार पाला बदलने वाली अपनी फितरत पहले भी दिखाई है ऐसे में लालू यादव के लौटने भर से ही बिहार की सियासत में पाला बदल का खेल होने की संभावना जताई जा रही है.

बिहार की सत्ता पर लालू यादव की पैनी नजर
यहां यह बताना जरूरी है कि लगभग तीन साल बाद लालू के पटना लौटने के बाद के सियासी हलचल पर इसलिए भी कयासबाजियों का दौर चल रहा है क्योंकि सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच बहुमत का बारीक अंतर ही है. 243 सदस्यीय विधानसभा में जहां एनडीए के पाले में 127 विधायकों का समर्थन है, वहीं महागठबंधन के पास 110 विधायकों का सपोर्ट है. यानी बहुमत के लिए जरूरी 122 सीटों से महज 12 सीटें कम. ऐसे में कयास तो यही लगाए जा रहे हैं कि लालू के पटना लौटने के बाद कुछ न कुछ जरूर होगा क्योंकि उनकी नजर बिहार की सत्ता सियासत पर है.

सीटों के समीकरण में उलझी सूबे की सत्ता- सियासत
विधानसभा में अगर महागठबंधन की राजद, कांग्रेस और वामपंथी दलों की क्रमश: 75+19+16= 110 सीटों में मांझी और सहनी की 4+4 सीटों को मिला दिया जाए तो यह आंकड़ा 118 तक पहुंच जाता है. बहुमत के लिए 122 सीटों की पूरी करने की स्थिति में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के 5 विधायकों का भी समर्थन महागठबंधन को मिल सकता है. ऐसे में इनकी कुल सीटों की संख्या 123 हो जाएगी, जो कि बहुमत से 1 अधिक होगी. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि यही वजह है कि एनडीए और महागठबंधन में सत्ता-सियासत को लेकर खींचतान लगातार जारी है.

पाला बदल के खेल की आशंका से सियासी हलचल
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लालू यादव की नजर सिर्फ इसी पर नहीं है बल्कि जेडीयू और भाजपा से जुड़े कई विधायकों पर भी है जो इस बहुमत के बारीक अंतर को पाट सकते हैं. यह सीधे तौर पर समर्थन के साथ नहीं तो वोटिंग के समय उनकी अनुपस्थिति भी महागठबंधन के लिए सत्ता-सियासत का गणित सुलझा सकी है. यही वजह है कि जेडीयू की ओर से बार-बार यह दावा किया जाता है कि राजद के कई विधायक भी उनके संपर्क में हैं और कभी वे पाला बदल सकते हैं.

सत्ता की रेस और दावों की दौड़ का कम्पीटिशन जारी
जाहिर है जेडीयू के कद्दावर नेताओं की ऐसी प्रतिक्रियाएं उनकी भी बेचैनी को दर्शाती है क्योंकि सत्ता पक्ष हो या विरोधी पक्ष सभी यह तो मानते ही हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है और यहां कोई भी सगा नहीं होता, बल्कि सत्ता और शक्ति का ही जोर चलता है. हालांकि हकीकत यह भी है कि सत्ता की रेस में दावों की दौड़ भी चलती रहती है, लेकिन अंत में जीतता वही है जिसका विधान सभा की फ्लोर पर कब्जा होता है. बहरहाल इन सारी कयासबाजियों और अटकलबाजियों के बीच लालू यादव के पटना लौटने की खबरों के के साथ ही  बिहार की सियासत में हलचल होने लगी है.

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