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कोरोना से उबरे लोगों के लिए ब्लैक फंगस बना जान का दुश्मन, बचाव के लिए इन बातों का रखें खास ख्याल

वाराणसी

स्टेरॉयड के ओवरडोज के बल पर कोरोना से उबर चुके मधुमेह ग्रसित लोगों के लिए ब्लैक फंगस जान का दुश्मन बन रहा है। चिकित्सक कोरोना की दूसरी लहर के बाद ब्लैक फंगस के विस्फोट की आशंका जता रहे हैं। इसका ठोस आधार है। सर्वे के मुताबिक भारत में हर दसवां व्यक्ति शुगर का रोगी है। इनमें से आधे लोगों को पता ही नहीं कि वे शुगर से ग्रसित हैं।

दूसरी लहर ने जिस तादाद में लोगों को जद में लिया है, उससे ब्लैक फंगस के विस्फोट की आशंका को बल मिलना स्वाभाविक है। सिर्फ बनारस की बात करें तो बीते एक सप्ताह में 20 से अधिक ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। ये आंकड़े सिर्फ बीएचयू के हैं।

आईएमएस के ईएनटी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुशील अग्रवाल का कहना है कि बहुत से लोग होम आइसोलेट होकर कोरोना का उपचार में स्टेरॉयड के हाईडोज ले रहे हैं। उनके संपर्क में जो 20 रोगी अब तक आए हैं उनमें से 12 रोगी होम आइसोलेट थे। समय के साथ ब्लैक फंगस के मामलों में वृद्धि भी होती जाएगी।

भारत में हर दसवां व्यक्ति मधुमेह का रोगी
विश्व स्वाथ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक भारत में शुगर पेशेंट सर्वाधिक हैं। डब्ल्यूएचओ ने यह दिशा निर्देश जारी किए थे कि कोरोना संक्रमितों के उपचार में स्टेरॉयड का इस्तेमाल कम से कम हो। ओवरडोज की मनाही की थी, लेकिन इसका ठीक उल्टा हुआ। ज्यादातर संक्रमितों ने इस बात का ध्यान नहीं रखा  कि वह शुगर पेशेंट हैं या नहीं।

हाईजीन का ध्यान रखना जरूरी
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि होम आइसोलेट हुए कोराना रोगी हाईजीन मेंटेन करें। ऑक्सीजन मास्क की सफाई नियमित करें। नाक साफ रखें। गरम पानी की भाप लें और सुबह शाम गरारा करते रहें। हाई प्रोटीन डाइट उनके लिए बहुत जरूरी है।

किडनी पर भी गहरा असर
वहीं डॉ. विमलकांत सिंह कहते हैं कि कोराना के उपचार में कुछ दवाएं ऐसी भी इस्तेमाल हो रही हैं, जिनका साइड इफेक्ट किडनी पर पड़ रहा है। यदि कोरोना रोगी पहले से किडनी की बीमारी से ग्रसित है तो उसपर इन दवाओं का दुष्प्रभाव अधिक होगा।

मधुमेह के रोगियों को स्टेरॉयड देने से उनका इम्युनिटी पावर तेजी से कम हो रहा है। इसके कारण ब्लैक फंगस का प्रकोप उनपर तेजी से होगा। ऐसे लोग  शुगर की नियमित जांच कराते रहें। शुगर नहीं बढ़ेगा तो ब्लैक फंगस से संक्रमित होने की आशंका भी कम हो जाएगी।
-प्रो.सुशील अग्रवाल, ईएनटी विभाग, बीएचयू

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