मोदीजी के आत्मनिर्भर भारतमे लोकतंत्र का मकबरा !

केंद्र की सत्ता पर काबिज मोदी सरकार ऐतिहासिक संसद भवन की जगह देश की राजधानी दिल्ली में नया संसद भवन बना रही है
केंद्र की सत्ता पर काबिज मोदी सरकार ऐतिहासिक संसद भवन की जगह देश की राजधानी दिल्ली में नया संसद भवन बना रही है, और उसके आसपास के इलाकों में कई सारे बदलाव कर रही है। इस समूचे बदलाव को बड़ा लुभावना नाम दिया गया है सेंट्रल विस्टा। शब्दकोष के मुताबिक विस्टा के मायने होते हैं किसी खास जगह से नजर आने वाला दृश्य, खासकर किसी ऊंचाई से नजर आने वाला कोई खूबसूरत नजारा। मुमकिन है मोदीजी सत्ता की जिस ऊंचाई पर बैठे हैं, वहां से उन्हें जनप्रतिनिधियों के लिए बनाई जा रही यह भव्य इमारत खूबसूरत नजर आए। लेकिन हर खूबसूरत इमारत जिंदगी से भरपूर हो, यह कोई जरूरी नहीं है।
अक्सर खूबसूरत इमारतों में मुर्दे भी दफ्न होते हैं। इस वक़्त सेंट्रल विस्टा के नाम से जो इमारत बनाई जा रही है, वह भी लोकतंत्र में नैतिकता, मर्यादा, जिम्मेदारी, संवेदनशीलता जैसे गुणों की लाश पर बनाई जा रही है। इसलिए इसे सेंट्रल विस्टा कहें या लोकतंत्र का मकबरा, बात एक ही है।
देश में इस वक़्त कोरोना के कारण तबाही का आलम है। सरकार अपनी पीठ ठोंकने में ही लगी है कि ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ा लिया गया है, टीकाकरण की प्रक्रिया तेज हो गई है, रेल के कोचों को अस्पताल के बिस्तर जैसा बना दिया गया है या सेना के अस्पतालों को भी कोविड मरीजों के लिए खोल दिया गया है। लेकिन इन बड़ी-बड़ी बातों से उखड़ती सांसें थम नहीं रही हैं। हर रोज मरीजों और मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और जो लोग ठीक हो रहे हैं या अब तक बीमारी से बचे हुए हैं, वे अपनी किस्मत को सराह रहे हैं, न कि सरकार को श्रेय दे रहे हैं।
बेशक इस वक़्त भी कुछ चमचागिरी करने वाले बड़े लोग आएगा तो मोदी ही, जैसे बयान देने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें शायद यही काम मिला हुआ है कि चाहे जो हो जाए, मोदी सरकार की अजेय छवि को बनाए रखना है और जनता के दिमाग में ये भर देना है कि सरकार गलत करे या सही करे, विजेता पहले ही तय हो चुका है। कई बड़े पत्रकार भी इस वक़्त सिस्टम यानी व्यवस्था का कथानक गढ़ने में सफल हो चुके हैं और वे लगातार लोगों को ये समझा रहे हैं कि अभी जो विपदा आई है, वो व्यवस्था की देन है, मोदीजी की नहीं। हालांकि वे पत्रकार ये नहीं बता पाएंगे कि सिस्टम को सुधारने में मोदी है तो मुमकिन है, वाला जुमला क्यों काम नहीं आया। क्या इसलिए कि सिस्टम सरकार से चलता है और सरकार मोदीजी चला रहे हैं।
जिस व्यवस्था ने पूरे देश में ढेरों नए श्मशान और कब्रिस्तान खड़े कर दिए, शायद वही व्यवस्था अब दिल्ली में सेंट्रल विस्टा भी खड़े करने जा रही है। हालांकि देश की राजधानी लॉकडाउन के दूसरे हफ्ते में है। लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही सैकड़ों प्रवासी मजदूर फिर अपने घर लौटने मजबूर हो गए और वापसी का ये सिलसिला अब भी जारी है। दिल्ली में आवश्यक कामों को छोड़कर बाकी सभी काम बंद हैं। स्कूल-कॉलेज, कई दुकानें बंद हैं, लेकिन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को जरूरी काम मानते हुए इसका निर्माण जोर-शोर से चल रहा है। अभी केवल उन्हीं निर्माण कार्यों को जारी रहने दिया गया, जहां स्थल पर ही मजदूरों के रहने की व्यवस्था हो। मगर यहां भी मोदी सरकार ने पीछे का रास्ता खोज निकाला। दिल्ली पुलिस ने 180 वाहनों के लिए लॉकडाउन पास जारी किए हैं, जिनमें मजदूरों को लाया जा रहा है।
है कि नरेंद्र मोदी सरकार की 20 हजार करोड़ की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य 3.2 किलोमीटर के क्षेत्र को पुनर्विकास करना है। जिसमें आजादी की 75वीं वर्षगांठ यानी अगस्त 2022 तक एक नए त्रिभुजाकार संसद भवन का निर्माण किया जाना है, साथ ही केंद्रीय सचिवालय 2024 तक बनने का अनुमान है। इसके अलावा कई सरकारी और विशिष्ट इमारतों को तोड़कर उन्हें नया रूप दिया जाएगा।
समय देश का राजकोष खाली हो, आत्मनिर्भर भारत की जगह दुनिया भर से मदद लेने की नौबत आ रही हो, अस्पतालों और जीवनरक्षक उपकरणों के लिए धन की कमी पड़ रही हो, उस वक़्त 20 हजार करोड़ के सेंट्रल विस्टा के निर्माण का क्या औचित्य, ऐसे सवाल कई लोग उठा रहे हैं। हालांकि मोदी सरकार आदतन इन सवालों और आपत्तियों पर जवाब देना जरूरी नहीं समझ रही। उसे आजादी की 75वीं वर्षगांठ तक नया संसद भवन बनाने की जिद है, भले इसकी नींव में भारत की आम जनता के अस्थि पंजर दफन हों।