सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रधानमंत्री का यह रवैया काफी अजीब?अब कांग्रेस पीछे हटने को तैयार नहीं

संसद के बजट सत्र का दूसरा हिस्सा सोमवार से शुरु हुआ। लेकिन अनुमान के मुताबिक सत्र लगातार हंगामे की भेंट चढ़ रहा है
संसद के बजट सत्र का दूसरा हिस्सा सोमवार से शुरु हुआ। लेकिन अनुमान के मुताबिक सत्र लगातार हंगामे की भेंट चढ़ रहा है। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष हिंडनबर्ग-अडानी मामले में सवाल कर रहा है और संयुक्त संसदीय समिति से इसकी जांच की मांग कर रहा है। लेकिन केंद्र सरकार इस पर न बहस होने दे रही है, न कोई जवाब दे रही है। जैसे चीन की अतिक्रमण नीति पर प्रधानमंत्री मोदी अब तक चीन का नाम सीधे लेने से बचते आए हैं, उसी तरह अडानी प्रकरण पर उन्होंने चुप्पी साध ली है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रधानमंत्री का यह रवैया काफी अजीब है कि विपक्ष आपसे किसी बात पर जवाब चाहे, और आप उसके सवालों को अनसुना ही कर दें, जवाब देना तो दूर की बात है। अडानी प्रकरण पर विपक्ष किसी तरह पीछे नहीं हट रहा है। सत्र चलेगा तो विपक्ष फिर सवाल करना शुरु कर देगा। लेकिन सत्र तो चल ही नहीं पा रहा, क्योंकि भाजपा राहुल गांधी से माफी की मांग पर हंगामा कर रही है।
ब्रिटेन के दौरे पर राहुल गांधी ने केंब्रिज से लेकर ब्रिटिश संसद तक जो कुछ कहा, वह सब ऑन रिकार्ड है। फिर भी उसके चुनिंदा हिस्सों को आधे-अधूरे ढंग से पेश कर माहौल ऐसा बना दिया गया है कि राहुल गांधी ने विदेश जाकर देश की आलोचना की और आंतरिक मामलों में दूसरे देशों से मदद मांगी। सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरों के सहारे ट्रोल करने वालों के लिए यह आम बात है। उनका रोजगार झूठ की इसी दुकानदारी से चलता है। लेकिन संसद के माननीय सदस्यों से यह अपेक्षा नहीं होती कि वे भी इसी तर्ज पर चलेंगे।
मार्च आधा बीत गया, लेकिन राहुल गांधी के ब्रिटेन में दिए बयानों पर आलोचना करने के लिए भाजपा की ओर से रोज कोई न कोई सदस्य उठ खड़ा होता है। मौजूदा मंत्रियों से लेकर पूर्व मंत्रियों और बड़े पद की आस लगाए बैठ कुछ पूर्व नौकरशाह, पत्रकार, सभी राहुल निंदक प्रभाग से जुड़ गए हैं। सोशल मीडिया पर राहुल गांधी की आलोचना के साथ अब संसद में मांग की जा रही है कि राहुल गांधी माफी मांगे। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, तीन दिनों तक लगातार इसी बात पर हंगामा होता रहा और संसद ठप्प होती रही। भाजपा शायद यह मानकर चल रही है कि संसद में अडानी प्रकरण नहीं उठेगा या विपक्ष के सदस्यों पर जांच एजेंसियों की दबिश पड़ेगी, तो विपक्ष की आवाज मद्धिम हो जाएगी। लेकिन भाजपा का यह अनुमान गलत साबित हो रहा है। संसद ठप्प होने से विपक्ष जो मांग वहां नहीं उठा पा रहा है, उसे अब सड़कों पर उतर कर उठाया जा रहा है।
बुधवार को 18 दलों के विपक्षी नेताओं ने प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर तक मार्च निकालने का फैसला किया और संसद में संयुक्त रणनीति बनाने के बाद एक साथ बाहर निकले। विपक्षी दलों ने विरोध मार्च निकालकर अडानी मामले में जांच एजेंसी को शिकायत सौंपने का फैसला किया। लेकिन उन्हें विजय चौक पर ही रोक दिया गया। पुलिस ने विपक्षी सांसदों को आगे नहीं बढ़ने दिया। जिस पर राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार ने 200 सांसदों को रोकने के लिए दो हजार पुलिस तैनात की है। कितनी डर गई है सरकार अडानी का मुद्दा उठाने से।
देश की राजधानी दिल्ली में संसद सत्र के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव की ये बातें केवल देश की हदों तक सीमित नहीं रहेंगी। पूरी दुनिया ने देखा होगा कि कैसे विपक्षी सांसदों पर दबाव बनाया जा रहा है। क्या इससे देश की बदनामी नहीं होगी कि जो लोग अपने देश को लोकतंत्र की जननी कहते हैं, वे किस तरह लोकतांत्रिक अधिकारों में बाधाएं खड़ी कर रहे हैं। भारतीय जनता भी लोकतंत्र को इस तरह तमाशे में बदलते देख रही है। जब सरकार ने दावा किया है कि भ्रष्टाचार के लिए शून्य सहनशीलता रहेगी, तो उस बात को अमल में क्यों नहीं ला रही है। अडानी प्रकरण में कौन गलत है और कौन सही, इसका पता तो जांच के बाद ही पता चलेगा। चुप लगा जाना तो किसी मुद्दे का समाधान नहीं है। या तो सरकार खुल कर कहे कि अडानी समूह पर जो भी आरोप हिंडनबर्ग रिसर्च फर्म ने लगाए हैं, वे सब गलत हैं और अपनी ओर से क्लीन चिट दे दे। या फिर विपक्ष की तसल्ली के लिए जेपीसी गठित करे, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। ऐसा करने से मोदी सरकार अपनी मजबूती ही साबित करेगी। लेकिन सरकार ऐसा कुछ भी नहीं कर रही है और केवल राहुल गांधी से माफी की मांग पर जोर दे रही है।
राहुल गांधी माफी नहीं मांगेंगे, ये तय है। और ये भी दिख रहा है कि वे चुप नहीं बैठने वाले। दो दिन पहले उन्होंने विदेश नीति को मोडानी संज्ञा से जोड़कर सवाल किए थे, अब फिर उन्होंने देश की रक्षा से जुड़ा एक मुद्दा ट्वीट किया है। उन्होंने एक खबर साझा करते हुए पूछा है कि भारत का मिसाइल और रडार अपग्रेड अनुबंध अडानी समूह के स्वामित्व वाली कंपनी और इलारा नामक एक संदिग्ध विदेशी संस्था को दिया गया है। इलारा को कौन नियंत्रित करता है? अज्ञात विदेशी संस्थाओं को सामरिक रक्षा उपकरणों का नियंत्रण देकर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता क्यों किया जा रहा है। खबर के मुताबिक अडानी समूह के साथ इलारा बेंगलुरु स्थित एक रक्षा फर्म अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड की प्रमोटर है। अल्फा डिजाइन इसरो और डीआरडीओ के साथ मिलकर रक्षा उपकरण बनाती है। अल्फा डिजाइन का स्वामित्व अडानी समूह के पास है और सह मालिक इलारा है। इलारा को कौन नियंत्रित करता है। यही सवाल राहुल गांधी ने किया है।
क्या देश की रक्षा से जुड़े मसले पर सवाल करना भी देशद्रोह कहलाएगा या फिर सरकार राहुल गांधी के सवाल का जवाब देगी, ये देखना होगा। वैसे देश के मौजूदा राजनैतिक माहौल में एक बात समझ आ रही है कि सत्तारुढ़ भाजपा पर लगातार विपक्ष का दबाव बढ़ रहा है। विपक्ष भी अब पहले की तरह बिखरा नहीं है, काफी हद तक एकजुट हो गया है और कांग्रेस भी अब पहले की अपेक्षा अधिक आक्रामक हो गई है। 2024 के पहले का यह घटनाक्रम सियासत में बड़ी उलटफेर के संकेत दे रहा है।