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‘न्यायपालिका संविधान के मूल्यों की रक्षा और जनता के विश्वास की प्रहरी’: सीजेआई

भूटान में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि न्यायपालिका की सबसे बड़ी पूंजी जनता का विश्वास है। उन्होंने कहा कि न्यायालय केवल कानून की व्याख्या करने वाले संस्थान नहीं हैं, बल्कि लोकतंत्र के संरक्षक और संविधान की आत्मा के रक्षक हैं।

नई दिल्ली

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा है कि अदालतों की सांविधानिक शासन प्रणाली में सक्रिय और अपरिहार्य भूमिका है और वे संविधान के उद्देश्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। भूटान के रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्थित जिग्मे सिंगे वांगचुक लॉ स्कूल में आयोजित एक कार्यक्रम में ‘कोर्ट्स एंड कॉन्स्टिट्यूशनल गवर्नेंस’ विषय पर मुख्य भाषण देते हुए सीजेआई गवई ने कहा कि जनता का विश्वास ही न्यायपालिका की सबसे मूल्यवान संपत्ति है। न्यायालय तभी प्रभावी होते हैं जब नागरिक यह मानते हैं कि न्याय बिना किसी भय या पक्षपात के किया जाएगा।

सीजेआई ने कहा कि न्यायपालिका का सबसे मूल्यवान संसाधन जनता का विश्वास है। न्यायालय केवल संविधान की व्याख्या करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे संस्थाओं के मध्य मध्यस्थ, मौलिक अधिकारों के संरक्षक और पर्यावरण एवं सामाजिक कल्याण के रक्षक के रूप में भी कार्य करते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि हर निर्णय, चाहे वह लोकप्रिय हो या न हो, निष्पक्षता और नैतिक साहस प्रदर्शित करना चाहिए। गवई ने कहा कि न्यायपालिका का प्रभाव केवल मुकदमे के पक्षों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक जागरूकता और सांविधानिक शिक्षा का माध्यम भी है। उनके अनुसार, प्रत्येक न्यायिक निर्णय नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों और लोकतांत्रिक मूल्यों की समझ को गहरा करता है।

 

पीआईएल ने कमजोर समुदायों के हितों की रक्षा की
सीजेआई ने यह भी बताया कि न्यायालयों ने पीआईएल (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) के माध्यम से कमजोर और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के हितों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 75 वर्षों में मौलिक अधिकारों की व्यापक व्याख्या की है और संविधान को असमानता, मनमानी और शक्ति के दुरुपयोग से सुरक्षा का ढाल बनाया है। गवई ने 1973 के केसवनंद भारती केस का उदाहरण देते हुए कहा कि बेसिक स्ट्रक्चर सिद्धांत ने संसद की संविधान संशोधन शक्ति पर सीमाएं लगाईं और न्यायपालिका को संशोधनों की समीक्षा करने का अधिकार दिया। सीजेआई ने न्यायपालिका को न केवल न्याय के दायित्व निभाने वाले बल्कि संविधान के नैतिक प्रहरी और सामाजिक चेतना के शिक्षक के रूप में भी महत्व दिया। उन्होंने कहा कि न्यायालय सभी कार्यों को सांविधानिक सिद्धांतों के अनुसार जवाबदेह बनाकर न्याय और लोकतंत्र की रक्षा करता है।

 

 

 

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