क्राइम

जब ‘आस्था’, ‘शिक्षा’ और ‘आश्रय’ बने दरिंदगी के अड्डे, स्वामी चैतन्यानंद केस ने याद दिला दी मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की ‘काली कहानी’

Swami Chaitanyanand Case : धर्म और शिक्षा की चादर ओढ़े बैठे कुछ लोग जब अपने ही आश्रितों की अस्मिता से खेलते हैं तो पूरा समाज शर्मसार हो जाता है. दिल्ली में स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती उर्फ पार्थ सारथी पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों ने फिर एक बार मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की काली यादें ताजा कर दीं. आइये जानते हैं चारदीवारी के पीछे छिपे राक्षसों को उजागर करने वाली ‘काली कहानी’ क्या थी.

दिल्ली

… वहां की हवा में दर्द की सिसकियां घुली हुई थीं. बाहर दुनिया की रौनकें चमक रही थीं, लेकिन अंदर 7 से 17 साल की मासूम लड़कियां एक नर्क में सांस ले रही थीं. 42 मासूम बच्चियों की चीखें चारदीवारी के भीतर ही दबकर रह जातीं… यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि बिहार के एक ‘आश्रय स्थल’ की एक ऐसी स्याह सच्चाई है जो समाज के चेहरे पर कालिख पोत गई. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (Tata Institute of Social Sciences) यानी TISS की एक रिपोर्ट ने इस ‘अंधेरे कांड’ को उजागर किया और फिर खुलासा हुआ कि 42 में 34 लड़कियों का यौन शोषण, बलात्कार और यातनाओं का बेरहम क्रम कई वर्षों से जारी था. यहां तक कि एक लड़की की हत्या तक कर दी गई थी. यह मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की काली कहानी है. ठीक ऐसी ही कहानी दिल्ली से भी सामने आई है. यहां एक नामी शिक्षण संस्थान के संचालक रहे स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती उर्फ पार्थ सारथी पर गंभीर आरोप लगे हैं. माथे पर त्रिपुंड लगाकर छद्म रूप धारण करने वाले इस बाबा पर कई लड़कियों की इज्जत पर बुरी नजर डाली है. बाबा के खिलाफ 32 लड़कियों ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं. इनमें से 17 ने स्पष्ट रूप से कहा है कि बाबा ने अश्लील व्हाट्सऐप मैसेज भेजे, अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और जबरन छूने की कोशिश की. 

दिल्ली और मुज़फ्फरपुर, दोनों ही घटनाएं उस काले सच को उजागर करती हैं जिसमें, धर्म, शिक्षा और आश्रय देने का चोला ओढ़कर मासूम जिंदगियों के साथ खिलवाड़ किया जाता है. देश की राजधानी दिल्ली से आई स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती उर्फ पार्थ सारथी की खबर ने फिर एक बार समाज में विश्वास और भरोसे की नींव को हिला दिया है. बताया जाता है कि स्वामी चैतन्यानंद खुद को आध्यात्मिक गुरु बताकर लड़कियों और उनके परिवारों का विश्वास जीतता था. शिक्षण संस्थान के ज़रिए वह खुद को एक ‘संस्कार देने वाले गुरु’ के रूप में प्रस्तुत करता, लेकिन बंद कमरों के भीतर उसकी सोच पूरी तरह गंदी थी. लड़कियों के बयान बताते हैं कि वह धीरे-धीरे उन्हें अपने प्रभाव में लेता और फिर निजी मैसेज और शारीरिक छेड़छाड़ तक बढ़ जाता. यह मामला तत्काल ही वर्ष 2018 के मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड की याद दिलाता है. वहां भी ‘आश्रय’ के नाम पर बच्चियों को सुरक्षित ठिकाना देने का दावा किया गया, लेकिन चारदीवारी के भीतर मासूमियत की चीखें दबा दी गईं. ब्रजेश ठाकुर जैसे रसूखदार ने राजनीति और सत्ता के संरक्षण में 30 से ज्यादा बच्चियों के साथ वर्षों तक यौन शोषण किया.आइये इस पूरी ‘काली कहानी’ को जानते हैं.

मुजफ्फरपुर बालिका गृह का काला साया

बिहार के मुजफ्फरपुर में ‘सेवा संकल्प एवं विकास समिति’ द्वारा संचालित एक बालिका गृह को लेकर 31 मई 2018 को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज एक विशेष रिपोर्ट सामने आई जिसने सभी को स्तब्ध कर दिया. दरअसल, मुजफ्फरपुर के सहू रोड पर बसे एक साधारण से भवन की चारदीवारी के पीछे बिहार सरकार ने सेवा संकल्प एवं विकास समिति को बालिका गृह चलाने का जिम्मा सौंपा था. संस्था के संस्थापक ब्रजेश ठाकुर एक स्थानीय राजनेता और खुद को ‘समाजसेवी’ कहलवाते थे. हर साल 40 लाख रुपये की सरकारी फंडिंग मिलती थी.’बालिका गृह’ के नाम पर गरीब, अनाथ या सड़कों पर भटकती लड़कियों को आश्रय देने का दावा किया जाता था. लेकिन हकीकत कुछ और थी. बलिका गृह के प्रबंधक, कर्मचारी और ठाकुर के करीबी… सभी एक संगठित गिरोह का हिस्सा थे.रिपोर्ट में बात सामने आई कि यहां लड़कियां आतीं तो हैं, लेकिन लौटतीं नहीं. बाहर की दुनिया से कटी वे चारदीवारी के जाल में फंस जातीं.

चारदीवारी के भीतर कैद चीखों का राज खुला

बताया जाता है कि TISS के ऑडिट में 2017 में ही संकेत मिले थे कि वहां कुछ बड़ी और अवैध गतिविधियां हैं. 17 शेल्टर होम्स में ‘गंभीर चिंता’ में मुजफ्फरपुर वाला सबसे खतरनाक की श्रेणी में था. अप्रैल 2018 में रिपोर्ट सरकारी तिजोरी में दब गई, लेकिन 26 मई को एक राज्य-स्तरीय बैठक में इसका ‘काला राज’ खुल गया. फिर 31 मई को FIR दर्ज हुई तो जांच में जो सच सामने आया वह पूरे सिस्टम को शर्मसार करने वाला था. जिन लड़कियों की उम्र दोस्तों के साथ खेलने की होती, उनकी रातें यहां डरावनी होती थीं. गवाहों और कोर्ट डिपोजिशन के मुताबिक, ब्रजेश ठाकुर और उसके साथी-मनोज कुमार, रौशन, आशीष … रात के अंधेरे में आते. लड़कियों को ड्रग्स देकर बेहोश किया जाता और फिर यौन शोषण किया जाता. 34 लड़कियों के मेडिकल टेस्ट में इस बात की पुष्टि हुई कि कुछ को बार-बार गर्भपात कराया गया. एक लड़की ने बताया, वे कहते, ‘चिल्लाओगी तो मार देंगे”.

 

जांच में पता लगा कि गुप्त सीढ़ियां बनी थीं जो ठाकुर के बगल वाले आवास से सीधे गृह तक जातीं. पीटना, भूखा रखना, कैद करना – रोज का रूटीन थ. एक 11 साल की बच्ची ने कोर्ट में कहा, “मुझे चाकू से धमकाया गया”. सबसे भयानक तो यह कि एक लड़की को कथित तौर पर हत्या कर दी गई और परिसर में ही दफना दिया. हालांकि, 23 जुलाई 2018 को पुलिस ने खुदाई की, लेकिन शव नहीं मिला. फिर भी यह कथा इतनी काली थी कि इसने पूरे सिस्टम के काले चेहरों को सामने ला दिया.

 

सिस्टम का काला चेहरा हुआ उजागर

दरअसल, यह सिर्फ एक आश्रय गृह की कहानी नहीं, बल्कि सिस्टम की पोल खोलने वाली दास्तान है. जिला बाल कल्याण समिति की चेयरपर्सन दिलीप वर्मा, सदस्य विकास कुमार, प्रोटेक्शन ऑफिसर रवि रोशन – सभी आरोपी बने. 14 जून को गृह सील कर दिया गया और 46 लड़कियों को मधुबनी, पटना और मोकामा शिफ्ट किया गया. विपक्ष ने हाईकोर्ट मॉनिटर्ड CBI जांच की मांग की और 1 अगस्त 2018 को बिहार गवर्नर ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 20 सितंबर को मीडिया पर रिपोर्टिंग बैन हटाया और CBI ने 21 लोगों पर चार्जशीट दाखिल की.

न्याय की जंग लड़ी, मिला इंसाफ!

केस दिल्ली के साकेत कोर्ट में ट्रांसफर हुआ जहां दो साल तक सुनवाई चली. जनवरी 2020 में ब्रजेश ठाकुर समेत 19 दोषी साबित हो गए और 2 को बरी कर दिया गया. POCSO एक्ट के तहत ब्रजेश ठाकुर को आजीवन की सजा सुनाई गई. इनमें से कई को अलग-अलग धाराओं के तहत 10 से 20 साल की सजा हुई. मुज़फ़्फ़रपुर का बालिका गृह सरकारी निगरानी में चलने वाला शेल्टर होम था, जबकि दिल्ली का मामला एक प्राइवेट संस्थान और तथाकथित बाबा से जुड़ा है. फर्क बस इतना है, लेकिन पीड़िताओं के दर्द और समाज के लिए शर्मिंदगी की तीव्रता दोनों जगह बराबर है. 

 ‘आश्रय’ के काले सच का सबक क्या?

मुजफ्फरपुर में लड़कियों को सालों बाद इंसाफ मिला, जब अदालत ने ब्रजेश ठाकुर को उम्रकैद की सज़ा सुनाई. लेकिन उससे पहले उनकी जिंदगी का सबसे कीमती दौर तबाह हो गया.अब दिल्ली की इन लड़कियों के सामने भी वही चुनौती है. मुजफ्फरपुर और दिल्ली, दोनों कांड हमें एक ही कटु सत्य सिखाते हैं कि बच्चियों की सुरक्षा सिर्फ इमारतें या संस्थान बनाकर नहीं की जा सकती. निगरानी, पारदर्शिता और कठोर कानूनों का सख्ती से पालन जरूरी है. वरना ‘आस्था’ और ‘आश्रय’ के नाम पर दरिंदे अपनी गंदी हरकतें जारी रखेंगे और मासूम जिंदगियां बर्बाद होती रहेंगी.

 

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