तीनों चुनाव आयुक्तों की प्रेस कांफ्रेंस के जरिये खुद ही घिर गए चुनाव आयोग ?

रविवार को मुख्य चुनाव आयुक्त समेत तीनों चुनाव आयुक्तों की प्रेस कांफ्रेंस से देश में मताधिकार की रक्षा और मत चोरी के सवाल पर नयी हलचल खड़ी हो चुकी है
रविवार को मुख्य चुनाव आयुक्त समेत तीनों चुनाव आयुक्तों की प्रेस कांफ्रेंस से देश में मताधिकार की रक्षा और मत चोरी के सवाल पर नयी हलचल खड़ी हो चुकी है। चुनाव आयोग को यह गलतफहमी रही होगी कि उसकी प्रेस कांफ्रेंस के बाद विपक्ष थोड़ा दब जाएगा।
लेकिन अब विपक्ष दोगुनी ताकत से चुनावी घोटाले पर आवाज उठा रहा है। सोमवार को आठ विपक्षी दलों के सांसदों ने दिल्ली के कॉंस्टीट्यूशन क्लब में प्रेस कांफ्रेंस की। खास बात यह थी कि इसमें आम आदमी पार्टी से सांसद संजय सिंह भी शामिल हुए, जबकि आप ने घोषणा की है कि वह अब इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं है। कांग्रेस से गौरव गोगोई और नासिर हुसैन, सपा से रामगोपाल यादव, राजद से मनोज झा, वामदलों से जॉन ब्रिटास, डीएमके से तिरुचि शिवा, शिवसेना से अरविंद सावंत और टीएमसी से महुआ मोइत्रा इन आठ सांसदों ने पत्रकारों के जरिए देश के सामने फिर से निर्वाचन आयोग पर गंभीर सवाल उठाए। बल्कि कुछ ऐसे सवाल भी उठे, जिनमें निर्वाचन आयोग की सत्तापक्ष की तरफ झुकाव का साफ आरोप था।
हमने इसी जगह कल लिखा था कि निर्वाचन आयोग 7 अगस्त की राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस के बाद केवल वक्तव्य जारी कर रहा था, जबकि उसके पास सामने आकर जवाब देने के लिए पूरा वक्त था। लेकिन आयोग ने सामने आकर अपनी बात रखने के लिए वही दिन चुना जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव बिहार में वोटर अधिकार यात्रा पर निकल रहे थे। फिर भी बड़ी संख्या में पत्रकार चुनाव आयोग की प्रेस कांफे्रस में पहुंचे और यह देखकर अच्छा लगा कि कमोबेश तमाम पत्रकारों ने सीधे-सीधे सवाल चुनाव आयोग से किए। यह खेदजनक है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने एक बार में पांच-पांच सवाल तो सुने, लेकिन किसी का भी सीधा जवाब नहीं दिया।
जलेबी की तरह बात को घुमाया जाता रहा कि वोट चोरी के आरोप लगाना संविधान का अपमान है, हमारे सामने सब समकक्ष हैं, कोई पक्ष-विपक्ष नहीं है, सच सच होता है और सूरज पूरब से निकलता है। 80 मिनट की प्रेस कांफ्रेंस के बाद ज्ञानेश कुुमार अपने सहयोगियों के साथ उठकर चले गए, लेकिन 79 बरसों से जो लोकतंत्र देश में बना हुआ है, उसे बचाए रखने की कोई आश्वस्ति उनके जवाबों से नहीं मिली। लिहाजा सोमवार को पांच दिनों के अंतराल के बाद फिर से जब संसद का मानसून सत्र लगा तो विपक्ष को विरोध के लिए संसद परिसर में उतरना पड़ा। लोकसभा और राज्यसभा के भीतर भी स्पेशल इंटेसिव रिविजन (एसआईआर) पर चर्चा की मांग विपक्ष करता रहा। जिसके कारण सदन बाधित हुआ। आसंदी पर बैठे महानुभावों का कहना है कि एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है इसलिए उस पर चर्चा नहीं हो सकती। तो क्या यही तर्क चुनाव आयोग पर लागू नहीं होता कि जब दो दिन में सुप्रीम कोर्ट फिर से अपनी सुनवाई को आगे बढ़ा रहा है और हो सकता है इस बार कोई फैसला ही आ जाए, तब चुनाव आयोग को छुट्टी के दिन दोपहर में प्रेस कांफ्रेंस क्यों की, क्या आयोग कुछ दिन और नहीं रुक सकता था।
सोमवार को विपक्षी दलों की प्रेस कांफ्रेंस में यह मुद्दा भी उठा। इसके अलावा बिहार में एसआईआर की गड़बड़ियों पर पुराने सवालों को विपक्ष ने दोहराया। ज्ञानेश कुमार के लिए सवाल उछाला गया कि जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक मतदान केंद्रों के बाहर महिलाएं खड़ी रहती हैं और उनसे मीडिया बात करता है, तब क्या माताओं-बहनों की निजता का हनन नहीं होता। महुआ मोईत्रा ने बताया कि ममता बनर्जी ने सबसे पहले प.बंगाल में दो-दो एपिक कार्ड की गड़बड़ी पकड़ी थी तो संजय सिंह ने दिल्ली का उदाहरण दिया कि विधानसभा चुनावों से पहले कई सांसदों के घरों पर 15-20 लोगों के मतदान कार्ड बने। जॉन ब्रिटास ने बताया कि केरल की एकमात्र सीट किस तरह बीजेपी ने जीती तो अरविंद सावंत ने बताया कि किस तरह चुनाव आयोग पूरी तरह से सत्ता के पक्ष में है, क्योंकि शिवसेना का नाम और निशान पार्टी तोड़ने वाले एकनाथ शिंदे को दिया गया, जबकि वे इसके पात्र नहीं थे।
गौरव गोगोई ने पूछा कि राहुल गांधी को एफिडेविट दिखाने कहते हैं तो अनुराग ठाकुर से एफिडेविट क्यों नही मांगते। और रामगोपाल यादव ने उन शपथपत्रों की पावती दिखा दी, जो चुनाव आयोग ने सपा के 18 हजार शपथपत्रों पर दी थी। राजद सांसद मनोज झा ने संविधान के अपमान वाले बयान पर ज्ञानेश कुमार को घेरा कि आपसे सवाल करना संविधान का अपमान नहीं है, क्योंकि आप संविधान से हैं, खुद संविधान नहीं हैं। श्री झा ने पहले निर्वाचन आयुक्त सुकुमार सेन का स्मरण ज्ञानेश कुमार को कराया कि उन्होंने जिस तरह का मापदंड स्थापित किया था, चुनाव आयोग को उसके मुताबिक चलना चाहिए, सरकार के निर्देशों पर नहीं।
कुल मिलाकर रविवार को कई चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार की जो आलोचना हो रही थी, सोमवार की विपक्ष की प्रेस वार्ता के बाद वो और तेज होगी, साथ ही मोदी सरकार के रवैये पर भी सवाल की तीक्ष्णता बढ़ेगी, यह तय है।
बेशक रविवार शाम ही उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार के तौर पर सी पी राधाकृष्णन का नाम घोषित कर भाजपा ने चुनाव चोरी के मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश की, लेकिन सोमवार सुबह ही नजर आ गया कि भाजपा अपने मकसद में कामयाब नहीं हुई है। बल्कि विपक्ष की आवाज दबाने के चक्कर में उसने इंडिया गठबंधन को और मजबूत होने का मौका दे दिया है।
आखिरी बात, विपक्षी दलों की प्रेस कांफ्रेंस में सारे सांसद अलग-अलग दलों और राज्यों के थे। उनके हिंदी और अंग्रेजी बोलने का लहजा एक-दूसरे से बिल्कुल अलग था। फिर भी सबने सबकी बात सुनी भी और समझी भी। भाषायी विविधता और दलगत विचारधारा की भिन्नता के बावजूद सबने सबका साथ दिया, यही इंडिया की खूबसूरती है। काश हमेशा एक ही रंग में सबको रंगने की कोशिश करने वाले लोग इसे समझ पाते।