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तेल, जंग और…अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता के बेस्ट एग्जांपल हैं डोनाल्ड ट्रंप, यकीन नहीं तो देखिए 4 सबूत

टैरिफ के खेल में एक बार फिर अमेरिका का दोहरा चरित्र उजागर हुआ है. डोनाल्ड ट्रंप अपने फायदे के लिए भारत को रूस से तेल न खरीदने का ज्ञान देते हैं, जबकि खुद रूस से कारोबार करते हैं.
हाइलाइट्स
- अमेरिका का रूस से कारोबार, भारत को ज्ञान.
- ट्रंप शांति का नोबेल पाने की बेताबी में हैं.
- भारत-रूस की दोस्ती से अमेरिका को चिढ़ है.
India-US Trade deal: अपने यहां एक कहावत है. अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता. अमेरिका इसका बेस्ट एग्जांपल है. अमेरिका को केवल अपना फायदा दिखता है. डोनाल्ड ट्रंप अपने फायदे के लिए कुतर्क पर कुतर्क कर रहे हैं. अमेरिका खुद रूस से कारोबार करता है और भारत को न करने का ज्ञान देता है. डोनाल्ड ट्रंप के पास अब टैरिफ का हथियार है. वह टैरिफ की धमकी देकर भारत समेत कई देशों को डरा रहे हैं. जी हां, अमेरिका का दोहरा चरित्र बार-बार दुनिया देख रही है. भारत-रूस की दोस्ती से अमेरिका को चिढ़ है. वह चाहता है कि रूस से भारत तेल न खरीदे. अमेरिका कुतर्क यह दे रहा है कि रूस तेल से आने वाले पैसों का इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में कर रहा है. जबकि हकीकत यह है कि भारत को ज्ञान देने वाले अमेरिका की खुद रूस से कारोबारी रिश्ते हैं. ऐसे चार सबूत हैं, जिसमें अमेरिका का दोगलापन साफ दिखता है.
पहला सबूत- तेल का खेल
सबसे पहले तेल के खेल में अमेरिका का दोहरा चेहरा समझते हैं. तेल पर अमेरिका भारत को ज्ञान दे रहा है. वह भारत पर प्रेशर डाल रहा है कि रूस से तेल की खरीद न हो. मगर भारत ने भी बताया है कि वह प्रेशर में नहीं आएगा. खुद अमेरिका के डबल स्टैंडर्ड पर भारत ने कहा कि वो देश हमें क्या नसीहत देंगे, जो खुद रूस से अरबों डॉलर का कारोबार कर रहे हैं. जी हां, अगर हकीकत देखें तो इतने बवाल के बावजूद अमेरिका ने रूस से अपने रिश्ते खत्म नहीं किए हैं. अमेरिका अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, अपनी ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) इंडस्ट्री के लिए पैलेडियम, साथ ही उर्वरक और रसायनों का आयात अब भी करता है. वहीं, यूरोपीय यूनियन ने भी साल 2024 में रूस के साथ 67.5 अरब यूरो मूल्य का वस्तु व्यापार किया. इससे साफ है कि अमेरिका यहां भी अपना उल्लू सीधा कर रहा है. अगर वह इतना ही ईमानदार होता तो पहले खुद रूस से कारोबारी रिश्ते खत्म करता, तब भारत को ज्ञान देता.
दूसरा सबूत- जंग पर भी अमेरिका का डबल स्टैंडर्ड
डोनाल्ड ट्रंप ने उस वक्त भी ज्ञान दिया, जब भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ी थी. अमेरिकी राष्ट्रपति आज तक झूठा क्रेडिट लेते हैं कि उन्होंने भारत और अमेरिका के बीच सीजफायर कराया. जबकि हकीकत इससे कोसों दूर है. खुद संसद में पीएम मोदी कह चुके हैं कि भारत ने अपनी मर्जी से सीजफायर की घोषणा की. पाकिस्तान के गुहार पर यह फैसला हुआ. डोनाल्ड ट्रंप के मुंह से जंग पर ज्ञान अच्छा इसलिए भी नहीं लगता, क्योंकि वह खुद मिडिल ईस्ट में जंग को और भड़का रहे हैं. इजरायल अगर हमास से और यूक्रेन अगर रूस से अब तक युद्ध लड़ रहे हैं तो उसकी वजह अमेरिका ही हैं. अगर अमेरिका यूक्रेन और इजरायल के पीठ से अपना हाथ हटा ले तो जंग कब खत्म हो चुकी होती. मगर यहां भी अपने फायदे के लिए डोनाल्ड ट्रंप जंग की आग को और भड़का रहे हैं.
तीसरा सबूत- हथियार पर भी अमेरिका का दोहरा रवैया
अमेरिका का कहना है कि भारत जब रूस से तेल खरीदता है तो इससे रूस की कमाई होती है. उन पैसों का इस्तेमाल वह यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में करता है. इस तरह अमेरिका यह कहना चाहता है कि भारत रूस को आर्थिक मदद देकर जंग को बढ़ावा दे रहा है. जबकि हकीकत है कि पीएम मोदी रूस और यूक्रेन दोनों को समझा चुके हैं कि जंग में किसी का भला नहीं. युद्ध छोड़ो और शांति से बात निपटाओ. डोनाल्ड ट्रंप जब सत्ता में आए तो उन्होंने वादा किया था कि वह जंग रुकवा देंगे, मगर अब तक वह अपनी बात पर नहीं टिक पाए हैं. अमेरिका खुद यूक्रेन को हथियार की सप्लाई कर रहा है. जब ईरान ने इजरायल की बैंड बजाई तब खुद अमेरिका सुलह कराने की बजाय इजरायल की ओर से जंग में कूदा और ईरान पर मिसाइलों की बरसात कर दी. कुल मिलाकर यह कि अमेरिका अपने फायदे के लिए खुद हथियार सबको देता रहता है.
चौथा सबूत- नोबेल की छटपटाहट
चाहे तेल का खेल हो या जंग-हथियार या फिर नोबेल पाने की बेताबी, ट्रंप सब अपने फायदे के लिए कर रहे हैं. वह शांति का नोबेले पुरस्कार पाने के लिए बेताब हो चुके हैं. यही वजह है कि करीब 29 बार वह भारत-पाक सीजफायर का क्रेडिट ले चुके हैं. एक ओर वह खुद यूक्रेन को पैसा-हथियार दे रहे हैं और राग अलापते हैं शांति का. यह दोहरा चरित्र नहीं है तो क्या है. अगर वह इतने ही शांति के हिमायती होते तो ईरान के ऊपर इजरायल की ओर से मिसाइल अटैक नहीं करते. अगर अमेरिका इतना ही अच्छा होता और वसूलों का पक्का होता तो उस शख्स को अपने घर पर बुलाकर हलाल नहीं खिलाता जिसने पहलगाम में 26 टूरिस्टों की हत्या करवाई. जी हां, नोबेल की चाहत रखने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने पहलगाम अटैक के तुरंत बाद आसिम मुनीर को वाइट हाउस बुलाकर खाना खिलाया था. कुल मिलाकर ट्रंप अपने फायदे के लिए सबकुछ कर रहे हैं.