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‘भारत को एक आवाज, एक पार्टी, एक विचारधारा वाला देश नहीं बनने देंगे’, BJP पर अभिषेक मनु सिंघवी हमलावर

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ अदालतों में नहीं लड़ी जाएगी, बल्कि जनता के बीच सड़कों पर भी लड़ी जाएगी। उन्होंने कहा ‘अब ड्रॉइंग रूम की फुसफुसाहटें नहीं, सड़कों की गर्जना चाहिए। सिर्फ बयान नहीं, सतत सत्याग्रह चाहिए।’

 

नई दिल्ली

वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने शनिवार को भारतीय जनता पार्टी पर लोकतंत्र को ‘हुकूमत की एकतरफा शैली’ में बदलने का आरोप लगाया और कहा कि कांग्रेस भारत को ‘एक आवाज, एक पार्टी और एक विचारधारा वाला देश’ बनने नहीं देगी। दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन ‘संवैधानिक चुनौतियां – दृष्टिकोण और रास्ते’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि आज हम ऐसे दौर में हैं जहां संविधान को न केवल नजरअंदाज किया जा रहा है, बल्कि उसे सत्ता की सेवा में मोड़ा जा रहा है।

 

‘जब विरोध को देशद्रोह कहा जाने लगे’
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, ‘लोकतंत्र सिर्फ तब नहीं मरता जब टैंक सड़कों पर उतरते हैं, वह तब भी मरता है जब संस्थाएं झुक जाती हैं। जब संवैधानिक पदों पर बैठे लोग पक्षपाती हो जाएं। जब मीडिया आईना बनने की बजाय माइक बन जाए। जब अदालतें निर्णय देने से नहीं, उसे टालने से डरने लगें। जब विरोध करना देशद्रोह कहा जाए, और सवाल पूछना राष्ट्र-विरोधी ठहराया जाए – तब समझ लीजिए कि गणतंत्र वेंटिलेटर पर है।

कांग्रेस की जिम्मेदारी- संविधान को फिर से जीवित करना
कांग्रेस नेता ने कहा कि भारत को लोकतंत्र केवल संविधान की किताब में नहीं, बल्कि कांग्रेस ने ही व्यवहार में दिया था और अब वही इसे बचाने के लिए फिर से आगे आएगी। उन्होंने वर्तमान संकट को सिर्फ खराब शासन या आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि ‘चुनावी बहुमत की आड़ में संवैधानिक मूल्यों की योजनाबद्ध हत्या’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘संविधान में चेक एंड बैलेंस है, लेकिन आज उसे चेकबुक और बुलडोजर से बदला जा रहा है। अधिकारों और उपायों की जगह छापे और बयानबाजी आ गई है। आजादी की जगह वफादारी की परीक्षा ली जाती है। यह शासन नहीं, बल्कि गणराज्य को भ्रम में डालने की साजिश है।’

‘राजनीतिक साहस और संवैधानिक समझ की जरूरत’
कांग्रेस नेता ने स्पष्ट कहा कि अब जरूरत है राजनीतिक साहस और संवैधानिक समझ की। उन्होंने कहा, संसद को सिर्फ कागजों के बिल पास करने की जगह, असली बहस का मंच बनाना होगा। इसके साथ ही अदालतों से सिर्फ व्याख्या नहीं, हस्तक्षेप भी मांगना होगा। मीडिया को डर और दबाव से मुक्त करना होगा और सबसे अहम, संविधान को आम लोगों से फिर से जोड़ना होगा। उन्होंने आखिरी में कहा, हम ये नहीं होने देंगे कि भारत एक ही रंग का चित्र बन जाए। भारत तो लाखों रंगों वाली भित्तिचित्र है- अगर एक रंग भी मिटा दिया गया, तो पूरी तस्वीर टूट जाएगी।’

 

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