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बिलकीस बानो केसःसुप्रीम कोर्ट का फैसला गुजरात सरकार के मुंह पर तमाचा, भाजपा के खिलाफ हुई न्याय की जीत=प्रमोद तिवारी

गुजरात के बहुचर्चित बिलकीस बानो केस पर सुप्रीम कोर्ट से आए फैसले को लेकर सियासत भी शुरू हो गई है। सोमवार को सिविल लाइन्स स्थित एलगिन रोड आवास पर पत्रकारों से वार्ता के दौरान राज्यसभा में कांग्रेस के डेप्युटी लीडर प्रमोद तिवारी ने कहा कि सुप्रीम…

 

प्रयागराज

गुजरात के बहुचर्चित बिलकीस बानो केस पर सुप्रीम कोर्ट से आए फैसले को लेकर सियासत भी शुरू हो गई है। सोमवार को सिविल लाइन्स स्थित एलगिन रोड आवास पर पत्रकारों से वार्ता के दौरान राज्यसभा में कांग्रेस के डेप्युटी लीडर प्रमोद तिवारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला गुजरात सरकार के मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गुजरात के सीएम को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए…
उन्होंने सियासी निशाना साधते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गुजरात के सीएम को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो केंद्र सरकार को उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए। कहा की गुजरात सरकार को अपने फैसले को लेकर पूरे देश से माफी भी मांगनी चाहिए। प्रमोद तिवारी का कहना है कि बिलकिस बानो की घटना से भारत माता और नारी जाति शर्मिंदा हुई थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने पलटा दोषियों की जेल से रिहाई का गुजरात सरकार का फैसला
गौरतलब है कि गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म के 11 दोषियों की सजा माफी और रिहाई के गुजरात सरकार के फैसले को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। अब उन्हें फिर जेल जाना होगा। 15 अगस्त, 2022 को गुजरात सरकार ने 11 दोषियों की सजा कम करते हुए उन्हें रिहा करने का फैसला किया था। सभी दोषी गोधरा उपकारा में अपनी सजा काट रहे थे। इस मामले में सभी दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में गुजरात सरकार पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप भी लगाया। साथ ही दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल भेजने का निर्देश दिया।

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एक दोषी के साथ सरकार की मिलीभगत थी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले के दौरान कहा कि बिलकिस बानो मामले में समय से पहले रिहाई के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले एक दोषी के साथ गुजरात सरकार की मिलीभगत थी। दो जजों की पीठ ने कहा कि उसे समझ नहीं आ रहा कि गुजरात सरकार ने 13 मई, 2022 के उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल क्यों नहीं की, जिसमें गुजरात सरकार को एक कैदी की समय पूर्व रिहाई की याचिका पर राज्य की 9 जुलाई, 1992 की नीति के अनुरूप विचार करने का निर्देश दिया गया था।

 

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