जमानत के लिए धोखाधड़ी की रकम जमा करने की प्रवृत्ति को सुप्रीम कोर्ट की रोक, कहा- बनती है गलत धारणा

नई दिल्ली
जस्टिस एस रवींद्र भट्ट एवं जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, सीआरपीसी की धारा 438 के तहत जमानत की अर्जी पर सुनवाई के लिए अदालतों को विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में कानून को भी आधिकारिक तौर पर निर्धारित किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वर्षों से चल रही उस ‘अशांतिपूर्ण प्रवृत्ति’ को अस्वीकार कर दिया, जिसमें अदालत धोखाधड़ी के मामलों में आरोपियों को गिरफ्तारी से पहले जमानत की शर्त के रूप में पैसे जमा करने के लिए कहता है। शीर्ष अदालत ने कहा, इससे यह धारणा बनी है कि कथित रूप से धोखाधड़ी किए गए धन को जमा करके जमानत पाई जा सकती है।
जस्टिस एस रवींद्र भट्ट एवं जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, सीआरपीसी की धारा 438 के तहत जमानत की अर्जी पर सुनवाई के लिए अदालतों को विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में कानून को भी आधिकारिक तौर पर निर्धारित किया है। लेकिन हम इस तरह की शर्त लगाने को अस्वीकार करते हैं। पीठ ने कहा, पिछले कुछ वर्षों में उभरी और हाल के दिनों में तेजी से बढ़ी इस चिंताजनक प्रवृत्ति के कारण इस मामले से निपटना जरूरी हो गया है।
पीठ ने कहा, पिछले महीनों में कई मामलों में हमने पाया है कि आईपीसी की धारा 420 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने पर धोखाधड़ी के आरोपी व्यक्तियों की ओर से सीआरपीसी की धारा 438 के तहत न्यायिक कार्यवाही शुरू की जाती है। अनजाने में ये कथित तौर पर धोखाधड़ी की रकम वसूलने की प्रक्रियाओं में तब्दील हो रहे हैं। अदालतों को अग्रिम जमानत देने के लिए पूर्व-आवश्यकता के रूप में उस रकम के भुगतान की शर्तें लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। पीठ ने कहा, सीआरपीसी की धारा 438 हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय को ऐसी शर्तें लगाने का अधिकार देता है।